हमारे देश में सरकारों का अजब हाल है उन्होंने इस देश को फ़ुटबाल का मैदान समझ रखा है और जनता को फ़ुटबाल ,तभी तो वो जब चाहे जो चाहे और उनके मन में जो आये वो करती रहती है ! असल में सरकारों नें इस देश की जनता को मुर्ख समझ रखा है ! अब सरकार खाध सुरक्षा बिल ला रही है जिसके कारण सरकार की नियत पर सवाल उठना लाजमी है !
एक तरफ सरकार कहती है कि ८४ करोड़ लोगों की भूख मिटानें की यह महत्वाकांक्षी योजना है और इस पर एक लाख छब्बीस हजार करोड़ रूपये का खर्च प्रतिवर्ष आएगा ! दूसरी तरफ उसी सरकार का योजना आयोग कहता है कि शहरी क्षेत्र में ३२ रूपये और ग्रामीण क्षेत्र में २६ रूपये से ऊपर कमानें वाला गरीब नहीं है और भरपेट खाना खा सकता है ! योजना आयोग के हिसाब से तो सरकार झूठ बोल रही है क्योंकि उसके आंकड़े को गरीबी रेखा का पैमाना माना जाए तो गरीबों की संख्या बिना कुछ किये अपनें आप बहुत कम हो जाती है ! और अगर सरकार सच बोल रही है तो उसी सरकार का योजना आयोग नें पहले क्यों झूँठ बोल कर गरीबों के असली आंकड़ों को छुपाने की कोशिश की !
जब जनता को पेट्रोल और डीजल पर राहत देनें की बात आती है और जब सरकार की डीजल और रसोई गैस पर से सब्सिडी कम करने पर आलोचना होती है तो हमारे माननीय अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री कहतें हैं कि पैसे पेड़ पर नहीं उगते हैं तो अब माननीय प्रधानमंत्री जी को बताना चाहिए कि इस योजना के लिए पैसे कहाँ से आयेंगे ! और फिर जनता से ही सब्सिडी कम करके और तरह तरह के कर लगा कर इस योजना का खर्च वसूल करना है तो महज चुनावी नौटंकी के तहत पहले से ही महंगाई और सरकारी करों के बोझ से दबी जनता पर यह बोझ और क्यों डाला जा रहा है !