सोमवार, 22 जुलाई 2013

हिंदी की बात करना ही क्या इस देश में गुनाह हो गया है !!


हमारे देश में इससे बड़ी विडम्बना क्या हो सकती है कि हिंदी को मातृभाषा का दर्जा तो मिल गया लेकिन आज भी उसको राजभाषा के तौर पर लागू नहीं करवा पाए हैं और उसके लिए आज भी आंदोलन करना पड़ता है और उसके लिए शांतिपूर्ण आंदोलन करनें वाले लोगों को सरकार तिहाड़ जेल भिजवा देती है ! कैसे कह दें कि ये भारतीय राज है क्योंकि आज भी कारनामें अंग्रेजी राज के ही है ! ऐसा लगता है हिंदी की बात करना ही इस देश में गुनाह हो गया है ! 

पिछले दिनों भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह द्वारा हिंदी के पक्ष में बोलनें पर मीडिया और सरकार चला रही पार्टी के नेताओं का आक्रामक रुख देखनें को मिला जैसे राजनाथ सिंह नें कोई बहुत ही जघन्यकारी बात कह दी हो और उसके पक्ष में और विपक्ष में बोलनें वालों की लाइन लग गई ! लेकिन जब दिल्ली की पुलिस नें हिंदी के जुनूनी सेनानी श्यामरुद्र पाठक जी को गिरप्तार करके तिहाड़ जेल भेज दिया तो उन्ही सब लोगों की जबान पर ताला लग गया और किसी की जुबान से एक शब्द तक नहीं निकला ! शब्द निकलना तो दूर बल्कि मीडिया नें इसकी भनक तक नहीं लगनें दी !

श्यामरुद्र जी पाठक पिछले २६० दिनों से अदालतों में हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओँ के पक्ष में अपना आंदोलन कर रहे थे और उन्होंने अपनें आंदोलन का दायरा दस जनपथ के आसपास तय कर रखा था जिसके कारण उन्हें पुलिस पकड़ कर ले जाती और दिल्ली के तुगलक रोड़ थानें में बिठाकर दिन भर रखती और रात को छोड़ देती और ये हिंदी का जुनूनी सेनानी फिर उसी तरह से अपनें आंदोलन में लग जाता ! यह सिलसिला लगातार चल रहा था लेकिन पिछले २०-२५ दिनों से श्यामरूद्र पाठक जी नें आमरण अनशन चालु कर दिया था ! जिसके बाद दिल्ली पुलिस नें उन्हें उठाकर तिहाड़ जेल में डाल दिया है !

दरअसल श्यामरुद्र पाठक जी नें अपनी मांग के पक्ष में एक ज्ञापन दिया था जिसमें उन्होंने संविधान के अनुच्छेद ३४८ में संशोधन चाहते हुए सर्वोच्च न्यायालय और राज्यों के उच्चतम न्यायालयों में भारतीय भाषाओं को स्थान दिए जानें की मांग की थी जिसको बाद में तत्कालीन कानून मंत्री सलमान खुर्शीद को भेजा गया लेकिन उस पर अभी तक कोई कारवाई नहीं हुयी है ! श्यामरुद्र पाठक जी नें आम आदमी के हित की बात उठायी थी लेकिन ऐसा लग रहा है कि जिन लोगों के हितों को लेकर पाठक जी संघर्ष कर रहें हैं उनको तो इससे कोई सरोकार ही नहीं है !

सवाल उठना लाजमी है कि हिंदी के हितों को लेकर हम कितनें जागरूक है ! हम ऐसे तो हिंदी को लेकर बड़ी बड़ी बातें करते हैं लेकिन जब कभी हिंदी के लिए खड़े होनें का वक्त आता है तो हम हिन्दीभाषी लोग मुहं चुरा लेते हैं और यही हमारी उदासीनता हिंदी पर भारी पड़ती जा रही है और महज हमारे देश में १२.५ करोड़ अंग्रेजी बोलनें वाले लोगों के यहाँ हमनें हिंदी को घुटने टिकवा दिए हैं ! हिंदी के लिए संघर्ष कर रहे इस जुनूनी आंदोलनकारी के पक्ष में किसी तरफ से कोई आवाज नहीं उठी और किसी नें भी उनकी गिरप्तारी पर एक शब्द तक लिखना और कहना जरुरी नहीं समझा ! यहाँ तक कि हिंदी के नाम पर कमाई खाने वाला मीडिया भी खामोश रहा और बस महज कुछ गिनती के लोग उनके पक्ष में आवाज उठानें को आगे आये हैं ! 

27 टिप्‍पणियां :

Rajesh Kumari ने कहा…

आपकी इस शानदार प्रस्तुति की चर्चा कल मंगलवार २३/७ /१३ को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है सस्नेह ।

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

यही तो दुर्भाग्य है कि हिंदी की कमाई खाने वाले भी अंग्रेजी की टांग तोडते नजर आते हैं.

रामराम.

Unknown ने कहा…

सच लिखा आपने पूरण जी,यह मानसिकता सत्ता धारी दल की तब से है। जब से देश को आज़ाद मिली है, बढ़िया आलेख।

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

देश का शासन जिसके हाथ, उसकी भाषा उसकी बात !

HARSHVARDHAN ने कहा…

आप बिल्कुल ठीक कह रहे हैं "हिंदी में बात करना क्या इस देश में गुनाह हो गया है!!"। नि: सन्देह एक सार्थक लेख। धन्यवाद।

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पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

सहर्ष आभार आदरेया !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

सही कह रहें हैं ताऊ !!
आभार ,राम राम !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

हाँ आपका कहना सही है लेकिन अब इस मानसिकता को कठघरे में खड़ा किया जाना जरुरी है !!
आभार मनोज जी !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

वही हो रहा है आदरेया !!
सादर आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आभार !!

रविकर ने कहा…

जानकारी उपलब्ध कराने के लिए आभार-
सटीक विश्लेषण-
तथ्यपूरक प्रस्तुति-

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

हालात ये है कि बीजेपी वाले कही पब्लिक प्लेस में छींक भी मार लेंगे तो वह भी कौंग्रेस और बिकाऊ मीडिया के लिए एक मुद्दा बन जाएगा। मगर मुझे अफ़सोस इन जोकरों पर भी होता है कि ये ऐसी छेंके मारते ही क्यों है ? सिर्फ महंगाई भ्रष्टाचार और विकास के मुद्दों पर ही बात करो !

बेनामी ने कहा…

हिन्दी के बजाय संस्कृत को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। हिन्दी भी तो विदेशी भाषा से मिलकर बनी है। मूल भाषा तो हमारी संस्कृत है। अथवा संस्कृत को प्राथमिकता दें।

Maheshwari kaneri ने कहा…

यही तो हमारे देश का दुर्भाग्य है....सटीक प्रस्तुति..शुभकामनाएं

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

लगता तो ऐसा ही है !!
सादर आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

कहना तो आपका भी सही है लेकिन अभी तो हिंदी की ही कोई बात नहीं कर रहा है तो संस्कृत को सांप्रदायिक रंग देकर ये कभी लागू ही नहीं होनें देंगे !

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

सादर आभार !!

संजय भास्‍कर ने कहा…

ये बिलकुल सच है .

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

इंसान परिचित कैसे हो सकता है क्योंकि वह अख़बार पढ़ता है या फिर टीवी देखता है . मैं स्वयं इसा बारे में पहली बार आपके सौजन्य से इस बारे में जानकारी प्राप्त हो रही है . इसके लिए एक पेज फेसबुक पर इस जानकारी बना दीजिये ताकि ये आवाज सब तक पहुँच सके

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

सही कह रही है आप और आपका सुझाव भी प्रशंशनीय है !!
सादर आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

सहर्ष आभार !!

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

सार्थक सवाल खड़े किए हैं आपने
सहमत हूं आपसे


मुझे लगता है कि राजनीति से जुड़ी दो बातें आपको जाननी जरूरी है।
"आधा सच " ब्लाग पर BJP के लिए खतरा बन रहे आडवाणी !
http://aadhasachonline.blogspot.in/2013/07/bjp.html?showComment=1374596042756#c7527682429187200337
और हमारे दूसरे ब्लाग रोजनामचा पर बुरे फस गए बेचारे राहुल !
http://dailyreportsonline.blogspot.in/2013/07/blog-post.html

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आभार महेंद्रजी !!

Pallavi saxena ने कहा…

बात तो आपकी एकदम खरी है और यही हमारे देश का दुर्भाग्य भी है लेकिन वर्तमान में माहौल ही ऐसा बना दिया गया है कि अँग्रेजी के बिना काम भी तो नहीं चलता। कोई करे भी तो क्या करे...

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

काम तो आज भी चल सकता है बशर्ते अंग्रेजी से किनारा किया जाए !
आभार !!

बेनामी ने कहा…

इसके लिए हमको स्वयं संस्कृत सीखना चाहिए और अपने स्तर पर ही प्रयास करना चाहिए, न कि सरकार से आशा करना चाहिए। इसलिए मै इस ब्लॉग के admin अथवा सभी पाठकों से आग्रह करूंगा की हिन्दी व अँग्रेजी को त्याग कर केवल संस्कृत ही सीखे और निजी जीवन मे भी प्रयोग करें।

जयतु संस्कृतम, जयतु भारतम।