शुक्रवार, 2 अगस्त 2013

इस भ्रष्टाचार और अपराध पोषित व्यवस्था को बदलनें का रास्ता आखिर क्या है !!

पिछले दिनों में दो अच्छे फैसले आये थे जिनकी सराहना हर किसी नें की थी जिनमें पहला फैसला केन्द्रीय सुचना आयोग से आया था जिसमें राष्ट्रीय पार्टियों को सूचना के दायरे में लानें के हक में दिया था और दूसरा फैसला राजनीति में अपराधीकरण को रोकनें के पक्ष में सर्वोच्च न्यायालय नें दिया था जिसमें दो साल की सजा पानें वाले व्यक्ति को चुनाव लडनें के लिए अयोग्य घोषित किया गया था और जेल से चुनाव लडनें पर भी रोक लगाई गयी थी ! दोनों फैसले जनता को तो अच्छे लगे लेकिन राजनैतिक पार्टियों के लिए ये फैसले आँख की किरकिरी बन गए थे जिसका जिक्र मैनें अपनें आलेख "राजनैतिक पार्टियां आरटीआई से इतनी डरती क्यों है " में किया था !

इसीलिए उन फैसलों के विरुद्ध सभी राजनैतिक पार्टियां पहले दिन से ही एकजुट नजर आ रही थी और कुछ इन फैसलों का दबे स्वरों में विरोध कर रही थी तो कुछ खुलकर इन फैसलों के विरुद्ध में बोल रही थी ! लेकिन अब इन पार्टियों और सरकार नें इन फैसलों की धज्जियां उड़ानें का मन बना लिया है ! सुचना के अधिकार के अंतर्गत पार्टियों को आनें से बचानें के लिए तो सुचना के अधिकार कानून में संसोधन का प्रस्ताव तो केबिनेट से पास हो चूका है और जैसा पार्टियों का रुख है उससे लगता है कि यह संसद में भी पास हो जाएगा ! इसी तरह सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को भी विधेयक के जरिये बदलनें की मांग सभी राजनैतिक पार्टियों द्वारा की जा रही है !

इस तरह से जन आकांक्षाओं से जुड़े हुए फैसलों को बदलनें में हमारे देश की राजनैतिक पार्टियों को बिलकुल भी जनता का डर नहीं है ऐसे में यह सवाल तो उठेगा ही कि क्या देश में वास्तव में लोकतंत्र है ! या फिर छद्म लोकतंत्र के सहारे जनता को बहलाया जाता है क्योंकि लोकतंत्र में जनता सर्वोच्च होती है लेकिन यहाँ तो ऐसा लग रहा है कि राजनैतिक दल ही सर्वोच्च हो गए हैं ! पुरे को पुरे लोकतंत्र को इन राजनैतिक पार्टियों नें बंधक सा बना लिया है और इनकी मर्जी के बिना कुछ भी हो नहीं सकता है ! मुझे तो लगता है कि जनता को केवल छद्म लोकतंत्र के सहारे बहलाया जाता है ताकि जनता बगावत पर नहीं उतरे और लोकतंत्र के भूलभुलैया में जीती रहे !


छोटी छोटी बातों पर विरोध करनें वाले और हायतौबा मचाने वाले सारे राजनितिक दल आज अपनें फायदे के लिए एक ही थैली के चट्टे बट्टे नजर आ रहें हैं ! लोकपाल,कालेधन,महिला आरक्षण जैसे मुद्दों से जुड़े हुए कानूनों पर अपनें अलग अलग रवैये के कारण ये राजनितिक दल संसद में खेल खेलते मिल जायेंगे और उनको पास नहीं होनें देते और सरकार वर्षों तक सब राजनैतिक दलों से साँठगाँठ करके इन्हें लटकाती आ रही है लेकिन आज देखिये दागियों को बचाने और अपनी पार्टियों का हिसाब किताब सार्वजनिक करनें से बचनें के लिए धुरविरोधी पार्टियां भी आज एक दूसरे की गलबहियाँ करती नजर आती है ! 

सवाल जनता के लिए भी है कि अब उसके सामनें रास्ता क्या है क्योंकि वो व्यवस्था में सुधार चाहती है और उसके सुधार के रास्ते में ये राजनैतिक दल सबसे बड़े अवरोधक बनकर खड़े हैं जिनके नाम तो अलग अलग है लेकिन उनका ध्येय एक ही है और वो है  इसी भ्रष्टाचार और अपराध पोषित व्यवस्था को जनता के ऊपर लादे रखना ! इसिलिए एक को हटाकर दूसरे को सत्ता सौंपने से भी इसका समाधान नजर आता नहीं है और उसकी लड़ाई का नतीजा शून्य ही रहनें वाला है ! न्यायालयों से भी रास्ता नजर आता नहीं है क्योंकि वहाँ से कोई अच्छा फैसला आएगा भी तो उसको बदलनें की शक्ति इनको संविधान से प्राप्त है ! ऐसे में जनता के सामनें इस व्यवस्था को सुधारनें का रास्ता है क्या ?

14 टिप्‍पणियां :

रविकर ने कहा…

हिस्ट्री शीटर हैं भरे, एक तिहाई हाय |
संसद की गरिमा गिरी, पर नेता मुसकाय |
पर नेता मुसकाय, दिखाए सबको ठेंगा |
ले चुनाव में भाग, करे जन-गन मन-रेगा |
केस साल दर साल, सुलझ ना पाए मिस्ट्री |
बदल रहा भूगोल, बदल के अपनी हिस्ट्री ||

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

असल स्वतंत्रता की एक और जंग नितांत आवश्यक हो गई है, उसके वगैर सुधार संभव नहीं !

कविता रावत ने कहा…

RTI से काला पीला सामने जो आने लगा है ...जिस दिन RTI से बच निकलने का माकूल तरीका निकल आएगा उस दिन कहाँ डरने वाले फिर ....

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

सुन्दर और सटीक लिखा है !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

सहर्ष सादर आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

इन्होनें लोकतंत्र को ही अपनें कब्जे में कर रखा है अब आरटीआई से भी इनको कोई फर्क नहीं पड़ता है !!

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…


आपने बिलकुल सही प्रश्न पूछा , सुधरने का एक मात्र रास्ता एक और आज़ादी की लड़ाई असहयोग आन्दोलन जबतक जनता के हित में क़ानून लागू ना किये जाय
latest post,नेताजी कहीन है।
latest postअनुभूति : वर्षा ऋतु

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बिल्कुल सटीक कहा आपने.

रामराम.

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

सबको बस बच निकलना है..... सटीक विचार

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आपनें सही कहा है अब जनता के पास एकमात्र रास्ता इनको मजबूर करने का ही छोड़ रहें है ये लोग !!
सादर आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आभार ताऊ !!
राम राम !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

ये अपनें रास्ते खोज रहें हैं और जनता को अपना रास्ता खोजना होगा !!

Unknown ने कहा…

बेहद शानदार आलेख पूरण जी,सब एक ही थैली के चट्ते बट्टे है जिसे चाहें चुने लें।

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आभार !!