गुरुवार, 26 सितंबर 2013

राजनैतिक पार्टियों द्वारा की जाने वाली चुनाव सुधार की बातें खोखली हैं !!

हमारे देश में गाहे बगाहे हर पार्टी चुनाव सुधारों की बातें करती रहती है लेकिन उनकी ये बातें बातों तक ही सिमित रहती है ! असल में तो हर पार्टी वर्तमान लुंजपुंज व्यवस्था को बनाए रखना चाहती है और अब ये भी साफ़ हो चूका है कि इसी व्यवस्था को बनाए रखनें के लिए ये पार्टियां किसी भी सीमा तक जा सकती है ! हालिया दिनों में आये दो फैसलों और उनको उलटने की प्रक्रिया नें दिखा दिया कि सभी राजनैतिक पार्टियों की कथनी और करनी में बहुत बड़ा फर्क है और इस ढुलमुल व्यवस्था को बनाए रखनें की हरसंभव कोशिश ये पार्टियां करेगी !

केन्द्रीय सुचना आयोग और सर्वोच्च न्यायालय की और से दौ अच्छे फैसले राजनैतिक पार्टियों को आरटीआई के दायरे में लाने और संसद में अपराधियों कि पहुँच को रोकने को लेकर आये थे जो अगर लागू हो जाते तो अच्छे परिणाम मिल सकते थे ! वैसे तो इन फैसलों के आने के बाद से ही राजनैतिक पार्टियों के मंसूबे साफ़ दिखाई पड़ रहे थे जिसका जिक्र मैनें अपनें अग्रलिखित आलेख "इस भ्रष्टाचार और अपराधपोषित व्यवस्था को बदलनें का रास्ता आखिर क्या है " में किया था ! जो पहले मंसूबे इनके दिखाई पड़ रहे थे अब उन्ही को अमलीजामा पहनाया जा रहा है ! 

हमारे संविधाननिर्माताओं नें विधायिका को ज्यादा अधिकार इसलिए दिए थे कि ये जनता के प्रति जबाबदार होंगे तो जनता के डर से इन अधिकारों का दुरूपयोग नहीं करेंगे ! उन्होंने कभी सपने में भी यह नहीं सोचा होगा कि विधायिका अपनें अधिकारों का इस तरह से दुरुपयोग करेगी जैसा आज किया जा रहा है ! एक फैसले को आर्टीआई कानून में संशोधन करके बदल दिया गया तो दूसरे को अध्यादेश के जरिये बदलने की कोशिशें अपनें अंतिम चरण में है ! ऐसे में सुधार की रौशनी आये तो आये किधर से क्योंकि किसी भी तरह के सुधार को तो पार्टियां आने ही नहीं देना चाहती है और इसमें उनको सफलता दिलाने के लिए उनको प्राप्त संविधानप्रदत अधिकार उनके लिए एक मजबूत ढाल का काम कर रहे हैं ! 

शुक्रवार, 2 अगस्त 2013

इस भ्रष्टाचार और अपराध पोषित व्यवस्था को बदलनें का रास्ता आखिर क्या है !!

पिछले दिनों में दो अच्छे फैसले आये थे जिनकी सराहना हर किसी नें की थी जिनमें पहला फैसला केन्द्रीय सुचना आयोग से आया था जिसमें राष्ट्रीय पार्टियों को सूचना के दायरे में लानें के हक में दिया था और दूसरा फैसला राजनीति में अपराधीकरण को रोकनें के पक्ष में सर्वोच्च न्यायालय नें दिया था जिसमें दो साल की सजा पानें वाले व्यक्ति को चुनाव लडनें के लिए अयोग्य घोषित किया गया था और जेल से चुनाव लडनें पर भी रोक लगाई गयी थी ! दोनों फैसले जनता को तो अच्छे लगे लेकिन राजनैतिक पार्टियों के लिए ये फैसले आँख की किरकिरी बन गए थे जिसका जिक्र मैनें अपनें आलेख "राजनैतिक पार्टियां आरटीआई से इतनी डरती क्यों है " में किया था !

इसीलिए उन फैसलों के विरुद्ध सभी राजनैतिक पार्टियां पहले दिन से ही एकजुट नजर आ रही थी और कुछ इन फैसलों का दबे स्वरों में विरोध कर रही थी तो कुछ खुलकर इन फैसलों के विरुद्ध में बोल रही थी ! लेकिन अब इन पार्टियों और सरकार नें इन फैसलों की धज्जियां उड़ानें का मन बना लिया है ! सुचना के अधिकार के अंतर्गत पार्टियों को आनें से बचानें के लिए तो सुचना के अधिकार कानून में संसोधन का प्रस्ताव तो केबिनेट से पास हो चूका है और जैसा पार्टियों का रुख है उससे लगता है कि यह संसद में भी पास हो जाएगा ! इसी तरह सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को भी विधेयक के जरिये बदलनें की मांग सभी राजनैतिक पार्टियों द्वारा की जा रही है !

इस तरह से जन आकांक्षाओं से जुड़े हुए फैसलों को बदलनें में हमारे देश की राजनैतिक पार्टियों को बिलकुल भी जनता का डर नहीं है ऐसे में यह सवाल तो उठेगा ही कि क्या देश में वास्तव में लोकतंत्र है ! या फिर छद्म लोकतंत्र के सहारे जनता को बहलाया जाता है क्योंकि लोकतंत्र में जनता सर्वोच्च होती है लेकिन यहाँ तो ऐसा लग रहा है कि राजनैतिक दल ही सर्वोच्च हो गए हैं ! पुरे को पुरे लोकतंत्र को इन राजनैतिक पार्टियों नें बंधक सा बना लिया है और इनकी मर्जी के बिना कुछ भी हो नहीं सकता है ! मुझे तो लगता है कि जनता को केवल छद्म लोकतंत्र के सहारे बहलाया जाता है ताकि जनता बगावत पर नहीं उतरे और लोकतंत्र के भूलभुलैया में जीती रहे !