शुक्रवार, 16 अगस्त 2013

निराशा के माहौल में हर जश्न औपचारिकता ही लगता है !!

आज देश जब स्वतंत्रता दिवस की सड़सठवीं वर्षगाँठ मना रहा है उस समय क्या कारण है कि लोगों में उत्साह नहीं है बल्कि निराशा का वातावरण है ! ज्यों ज्यों आजादी मिलनें के वर्ष बीतते जा रहें है उसी तरह लोगों की यह सोच बलवती होती जा रही है कि उन्हें तो केवल आजादी के नाम पर छला जा रहा है और केवल सत्ता का हस्तांतरण भर हुआ है ! जहाँ केवल शासन करने वाले बदले है और कुछ नहीं बदला है ! नीतियां वही,कानून वही ,भाषा वही तो फिर बदला क्या है !

देश में पूंजी की असमानता तेजी से बढती जा रही है और सत्ताओं में बैठे लोग हकीकत से मुहं चुराते नजर आते हैं ! गरीबी अमीरी की बढती खाई को दूर करने के बजाय आंकड़ों के मायाजाल में उलझा रहे हैं ! देश का सांप्रदायिक सद्भाव बिगड़ता जा रहा है और सत्तानशीं उसको गंभीरता से लेनें के बजाय उल्टा बयानबाजी करके उसको प्रोत्साहित कर रहें हैं ! पिछले दौ सालों में देश भर में पच्चास से ज्यादा साम्प्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने वाली घटनाएं हो चुकी है ! अर्थव्यवस्था रसातल में चली जा रही है और हमारी मुद्रा में लगातार गिरावट का दौर जारी है जिसके कारण हमारे सताधारी हमारे बाजार को आर्थिक सुधार के नाम पर लगातार विदेशियों के हवाले करते जा रहें हैं !

आजादी से पहले भी किसानों की हालत ज्यादा अच्छी नहीं थी लेकिन आज तो उससे भी बदतर होती जा रही है और कृषिप्रधान देश में किसानों की आत्महत्याओं के समाचार लगातार सुनने को मिल रहे हैं ! और इसके लिए हमारे सत्ताधारियों की विदेशों से आयातित वो नीतियां जिम्मेदार है जिनको कठघरे में खड़ा करना तक हमारे सत्ताधारियों को पसंद नहीं है ! कानून व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा चुकी है जिसके कारण हर किसी के अंदर भय का माहौल व्याप्त है ! सुरसा के मुहं की तरह बढती महंगाई नें लोगों की जेब को खोखला करनें में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी है और जो लोग सत्ताओं पर बैठे हैं और देश की दशा और दिशा तय करनें की जिम्मेदारी जिन लोगों पर है उनके तमाम वायदे खोखले साबित हो चुके हैं !

हमारी सीमाओं की सुरक्षा का भरोसा देनें में भी हमारे सताधिश आजादी के बाद से ही नाकाम हुए हैं और हमारा क्षेत्रफल १९४७ के बाद से ही घटता जा रहा है और वैसी कोशिशें आज भी जारी है ! जिनका सही जबाब देनें में नाकामी साफ़ दिखाई दे रही है ! आजादी के महानायकों और शहीदों का सम्मान करना तो जैसे भूल चुके हैं उनको पहले शैक्षिक पाठक्रमों से दूर करते गए और अब संबोधनों से भी गायब करते जा रहें हैं ! आज के सत्ताधारियों के पास तो उन महान क्रांतिवीरों के परिजनों से मिलनें का समय तक नहीं है ! आजादी पानें में जिन शहीदों नें अपने प्राणों का उत्सर्ग किया उनको उचित सम्मान देनें और उनकी निशानियों को संजोने में नाकामी साफ़ दिखाई दे रही !
 
जब चारों और इस तरह से निराशा का वातावरण हो तो उत्साह कहाँ से आएगा ! और जब मन में उत्साह नहीं होता तो जश्न कोई सा भी हो महज खानापूर्ति ही लगता है ! आजादी के शुरू शुरू में ऐसा लगता था कि धीरे धीरे सब ठीक हो जाएगा लेकिन अब गुजरते समय के साथ बदतर होती स्थतियाँ जनता में निराशा का भाव ही पैदा कर रही है ! अब ऐसे में कोई कहे कि लालकिले से दिए गए भाषण पर प्रश्नचिन्ह नहीं लगाए जाने चाहिए तो अजीब सा ही लगता है और हकीकत से मुहं चुराने जैसा लगता है ! 

12 टिप्‍पणियां :

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बिल्कुल सही कहा आपने.

रामराम.

Unknown ने कहा…

सटीक आलेख पूरण जी।

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आभार !!

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

समय के अलावा बदला क्या है सब कुछ तो वही है ,,,
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाए,,,
RECENT POST: आज़ादी की वर्षगांठ.

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

लगता ही नहीं है बल्कि हो गया है ! सटीक !

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

बदला कुछ नहीं ,केवल गोरे के बदले काले लोग कुर्सी पर बैठ गए है
latest os मैं हूँ भारतवासी।
latest post नेता उवाच !!!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

सहर्ष सादर आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

सही कहा है आपनें !!
सादर आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

सादर आभार !!

Rajput ने कहा…

बिलकुल सही, सार्थक लेख.

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आभार !!

Asha Joglekar ने कहा…

विचारणीय प्रस्तुति ।