रविवार, 4 अगस्त 2013

लोकतंत्र को छद्म लोकतंत्र में परिवर्तित कर दिया है !!

हमारे देश में शासन व्यवस्था के आज के हालत देखें तो लोकतंत्र के नाम पर छद्म लोकतंत्र ही दिखाई देता है जिसमें लोकतंत्र होनें का आभास तो होता है लेकिन हकीकत स्थति उसके उलट दिखाई देती है !  संविधान नें भारतीय लोकतंत्र को सही तरीके से चलाने के लिए तीन स्तंभों विधायिका ,न्यायपालिका और कार्यपालिका को इसकी जिम्मेदारी दी गयी है और इसके लिए विधायिका को सबसे ज्यादा अधिकार प्रदान किये गये थे और उसका कारण था विधायिका का सीधा जनता द्वारा चुनाव होना लेकिन संविधान निर्माताओं नें कभी इस बात की सपनें में भी कल्पना नहीं की होगी कि विधायिका को दी गयी ज्यादा शक्तियां ही लोकतंत्र को छद्म लोकतंत्र में परिवर्तित करनें में उसके लिए मददगार होगी !

आजादी के बाद से ही विधायिका नें अपनें अधिकारों का दुरूपयोग करके ना केवल  न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र में दखलंदाजी की बल्कि कार्यपालिका को भी अपनें कब्जे में कर लिया ! और संविधान की मूल भावना का भी दोहन इसी विधायिका नें ही किया है ! संविधान की प्रस्तावना ( हम भारत के लोग ,भारत को सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन ,समाजवादी,पंथनिरपेक्ष ,लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को : सामाजिक,आर्थीक और राजनितिक न्याय ,विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,धर्म और उपासना की स्वतंत्रता,प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करनें के लिए तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करनें वाली बंधुता बढाने के लिए दृढ संकल्प होकर अपनीं इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ई० ( मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी , संवत दौ हजार छ: विक्रमी ) को एतद द्वारा इस संविधान को अंगीकृत ,अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं  ) को पढ़िए जो हमारे देश के संविधान की मूल भावना है ! जो हमारी शासन व्यवस्था के मूल से ही गायब हो चुकी है !

संविधान की प्रस्तावना में दिए गये एक एक शब्द की धज्जियां विधायिका नें अपने तरीके से उडाई है ! संविधान की प्रस्तावना में भारत को सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन ,समाजवादी,पंथनिरपेक्ष ,लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए  लिखा गया है लेकिन हमारे देश की विधायिका नें इसके उलट कार्य किये हैं !  चीन ,पाकिस्तान जैसे देश हमारी सम्प्रभुता को लगातार चुनौती देते आ रहें हैं लेकिन हमारी विधायिका घोड़े बेचकर सो रही है ! हमारे देश के लोगों के विरुद्ध विदेशों में अन्याय होता है तो भी हमारी विधायिका मौन धारण किये बैठे रहती है ! फिर कैसे सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन होनें की बात कही जा सकती है ! समाजवाद का हाल तो ऐसा है कि देश की तीन चौथाई जनता कुपोषण का शिकार है पूंजी महज कुछ लोगों तक सिमट कर रह गयी है !  

सबसे पहले तो पंथ निरपेक्षता को ही धर्मनिरपेक्षता में बदलकर इसका अर्थ का अनर्थ कर दिया गया और उसके बाद पंथनिरपेक्षता की हवा तो आजादी के महज चंद सालों बाद ही निकालनी शुरू कर दी थी जब पहली बार हिंदू कोड बिल लाया गया था ! शाहबानो प्रकरण में तो पंथनिरपेक्षता की धज्जियां उड़ाने के साथ साथ न्यायपालिका के अधिकारक्षेत्र में भी दखलंदाजी की गयी ! लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था की हालत तो सबके सामनें ही है !  कार्यपालिका तो आज पूरी तरह से विधायिका के चंगुल में है और उसको विधायिका नें अपनें भ्रष्ट तंत्र का पूरी तरह से हिस्सा बना लिया है और उससे जुड़े जो लोग उनका हिस्सा नहीं बनते है उनको रास्ते से हटानें और दंडित करनें का कार्य भी विधायिका ही करती है ! जिसके अशोक खेमका ,दुर्गा शक्ति नागपाल जैसे कई उदाहरण आपको देखनें को मिल जायेंगे !

न्यायपालिका भले ही अभी तक विधायिका के भ्रष्टतंत्र में शामिल नहीं हुयी हो लेकिन उसके जो भी निर्णय विधायिका के भ्रष्टतंत्र के आड़े आते हैं उन पर विधायिका अपनें अधिकार क्षेत्र का दुरूपयोग करके उनको बदलनें का कार्य करती है जिसके कारण आज ऐसा लग रहा है कि लोकतंत्र की सारी शक्ति जनता द्वारा जनता के लिए के बदले विधायिका द्वारा विधायिका के लिए ही होकर रह गयी है क्योंकि जनता के पास तो कोई ऐसा रास्ता बचा ही नहीं जिसमें वो न्याय पा सके ! विधायिका से जुड़े लोगों नें एक ऐसा छद्म लोकतंत्र विकसित कर दिया है जिसमें जनता का कोई स्थान ही नहीं है !

कुछ लोग अख सकते हैं कि चुनावों द्वारा जनता इसको बदल सकती है लेकिन इस तंत्र में तो ऐसा सामंजस्य है कि सब ही एक थैली के चट्टे बट्टे हैं जिसमें जनता के सामनें उनमें से ही किसी एक को चुनने का विकल्प ही रहता है और उसको सांपनाथ अथवा नागनाथ में से किसी एक को चुनना है और उनमें से छोडकर किसी और को चुन भी लिया तो भी उसको भी ये अपनें जैसा ही बना लेते हैं इसलिए जनता के सामनें तो केवल इस छद्म लोकतंत्र में ही अपनें को बचाए रखने की जद्दोजहद करनी पड़ रही है ! विधायिका नें हमारे देश के लोकतंत्र को छद्म लोकतंत्र में बदल दिया है और संविधान की मूल भावना को भी कुचल सा ही दिया है और इसको बदलनें के लिए अब एक ही रास्ता है जनता को मुखर होना होगा और इनको जनता की ताकत से अवगत करवाना होगा !

20 टिप्‍पणियां :

रविकर ने कहा…

सटीक प्रस्तुति-
देश की दुर्दशा का सबसे बड़ा कारण-
छद्म धर्म निरपेक्षता-

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

सार्थक लेख
काश लोगों तक पहुंचे

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

आपने सटीक हालात बयान किये हैं. बहुत ही मुश्किल है.

रामराम.

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

सादर आभार !!!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आभार ताऊ !!
राम राम !!

virendra sharma ने कहा…

अजी काहे का लोक तंत्र

मालिक मेरे ये वोट तंत्र

दे दे दो रोटी लोक तंत्र

तन पे कपड़ा तू लोकतंत्र

जीवें तेरे सेकुलर बच्चे

निकलें सब बेहद के टुच्चे।

virendra sharma ने कहा…

अजी पूरण खंडेल वाल साहब !देश सीमाओं की माप जोख से नहीं वोट से चलता है चीन हमारे

इलाके में आके शौक से हेलिकोप्टर उड़ाए ,

इधर के लोगों से नैना लड़ाए -

बस हमारे सेकुलरों के रास्ते में न आये।

लोकतंत्र की ना -जायज़ औलाद हैं ये सेकुलर लौंडें

वर्ण संकर तन्त्र है यह

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

एक समसामयिक आलेख ! देश विरोधी तत्व (नेतागण ) तो यही चाहते है कि यह एक पंगु-तंत्र बन कर रह जाए ताकि इनकी दूकान खूब फूले फले ! अब आर टी आई या २ साल से अधिक की सजा पर योग्य घोषित करने वाली बात ही देख तो सारी पार्टियों के सब नमक हराम एक स्वर में गुनगुना रहे है ! देखा जाए तो इनका मकसद पर्त्दे के आगे जनता को बेवकूफ बनाना है , परदे के पीछे सब चोर-चोर मौसेरे भाई !

Unknown ने कहा…

बेहद शानदार आलेख पूरण जी।

Rajendra kumar ने कहा…

बेहतरीन समसामयिक सार्थक आलेख।

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आपकी बात सत्य है !!
सादर आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आभार राजेन्द्र जी !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

सही कहा है !!
सादर आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

सादर आभार !!

ZEAL ने कहा…

well said !

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

सहर्ष आभार !!

Madan Mohan Saxena ने कहा…

सुन्दर ,सटीक और प्रभाबशाली रचना।

kebhari ने कहा…

aap ke lekh bahut hi prabhav saali hain.