रविवार, 1 सितंबर 2013

न्याय होना और न्याय होते हुए दिखना दोनों जरुरी है !!

दिल्ली दामिनी सामूहिक बलात्कार और हत्या के मामले में अठारह वर्ष से कम आयु के अपराधी के मामलें में जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ( बाल न्यायालय ) की तरफ से आये फैसले नें पुरे देश को निराश हो किया है ! जिसका कारण यह है कि उसनें जो अपराध किया है वो कहीं से भी किसी बाल अपराधी जैसा नहीं है और जिस दिन उसनें यह जघन्य अपराध किया था उस दिन अठारह वर्ष का होनें में महज कुछ ही महीनें बाकी थे ! उन अपराधियों नें जो अपराध किया था उसके लिए लोग कड़ी सजा की मांग कर रहे थे लेकिन एक अपराधी का कानूनन नाबालिग ( ? ) निकल जाना और सजा से बच जाना कई सवाल खड़े करता है !

जिस तरह जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड नें उस अपराधी को तीन साल सुधार गृह भेजनें का फैसला सुनाया है उसनें एक बार इस बहस की तो शुरुआत कर ही दी कि ऐसे संगीन अपराधों में लिप्त लोगों के अपराधों की सुनवाई जुवेनाइल जस्टिस एक्ट ( किशोर न्याय कानून ) के अंतर्गत होनी चाहिए अथवा नहीं ! वैसे इसमें जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड की बात करें तो उसनें तो फैसला कानून के हिसाब से ही दिया है और जुवेनाइल जस्टिस एक्ट में सजा का तो प्रावधान तो है ही नहीं बल्कि अपराध की श्रेणी के आधार पर सुधार गृह भेजनें के ही प्रावधान है और बोर्ड नें उसी आधार पर उसे तीन साल के लिए सुधार गृह भेजनें की व्यवस्था दी है जो की इस कानून के तहत अधिकतम सजा है ! 

इस फैसले के बाद अब जरुरत इस बात की है इस तरह के अपराधी अगर इस कानून की आड़ में सजा से बचकर निकल रहे हैं तो इस कानून में सुधार की आवश्यकता तो अवश्य है ! बालिग़ होनें में बचे हुए समय और अपराध की श्रेणी में तालमेल करते हुए इस कानून में सुधार किया जाना चाहिए क्योंकि इसी मामले को देखिये अपराध के आठ महीनें बाद आये इस फैसले में वो अपराधी आज की तारीख में नाबालिग नहीं है लेकिन उसे जो सजा मिली है उसमें उसको नाबालिग होनें का फायदा मिल गया है ! इसलिए इस पर दुबारा विचार करते हुए सुधार किया जाना चाहिए और आशा है कि सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई पूर्ण होनें पर सर्वोच्च न्यायालय से जरुर कुछ निकलेगा !


पुलिस जांच में जो सामने आया था उसके हिसाब से इस अपराधी नें ना केवल दामिनी का बलात्कार किया था बल्कि लोहे के सरिये से उसकी आंतों को भी बाहर निकाल दिया था जो उसकी मौत का कारण बना था ! और उसके इस अपराध के लिए इस तरीके की सजानुमा राहत ही लोगों को हजम नहीं हो रही है ! वैसे भी न्याय का शास्वत सिदान्त है कि अच्छी न्याय व्यवस्था वही मानी जा सकती है जिसमें ना केवल न्याय होना चाहिए बल्कि न्याय होते हुए लोगों को दिखना भी चाहिए ! जिसका इस मामले में पूर्णतया अभाव है !

16 टिप्‍पणियां :

indu chhibber ने कहा…

Aisa na ho ki jaghanya apradhi is kanoon ka fayda uthane ke liye 15-16 saal ki umra se hi is tarah ke kaand karne shuru kar den--sajaa nahin to dar bhi kya?

indu chhibber ने कहा…

Aisa na ho ki jaghanya apradhi is kanoon ka fayda uthane ke liye 15-16 saal ki umra se hi is tarah ke kaand karne shuru kar den--sajaa nahin to dar bhi kya?

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…


फैसला न्याय पूर्ण होना चाहिए ,,,

RECENT POST : फूल बिछा न सको

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बिल्कुल सही और सटीक बात कही आपने.

रामराम.

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

पूरी तरह सहमत !

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आभार ताऊ !
राम राम !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

सहर्ष आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

सादर आभार !!

Unknown ने कहा…

सार्थक लेख ! आपको बहुत बहुत बधाई !

हिंदी
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कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

फैसला न्याय संगत होना चाहिए
latest post नसीहत

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आभार !!

Kartikey Raj ने कहा…

सजा तो दोषी को मिलनी ही चाहिए चाहे वो बालिग हो या नाबालिग और कानून मे तो शतप्रतिशत सुधार की जरूरत है..........

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

सही कहा है आपनें !
आभार !!

राजीव कुमार झा ने कहा…

बालिग की उम्र सीमा में संशोधन आवश्यक है.नहीं तो बहुत से किशोरवय अपराधी इससे बच निकलते हैं. http://dehatrkj.blogspot.com

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आपका कहना अक्षरशः सत्य है !!
आभार !!