किसी भी देश कि भाषा और संस्कृति ही उस देश को गौरवान्वित करने वाली होती है लेकिन यह भारत का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि भारत की राष्ट्र भाषा को अपने ही देश में दोयम दर्जे का अधिकार मिला हुआ है और हिंदी अपने ही देश में राजनीतिक चालों का शिकार बन गयी और आज भी अपनें उस गौरव को नहीं पा सकी जिसकी वो हकदार थी ! यह पीड़ा हिंदी प्रेमियों को सदैव उद्वेलित करती है और जब १४ सितम्बर को हिंदी दिवस को मनाते हैं तो ये घाव हरे हो जाते हैं !
जब १९३६ में गांधीजी के नेतृत्व में राष्ट्र भाषा प्रचार समिति की स्थापना की गयी और इससे उस समय के बड़े नेता जब इससे जुड़े जिनमें जवाहर लाल नेहरु ,नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ,सरदार वल्लभ भाई पटेल ,जमना लाल बजाज ,चक्रवर्ती राजगोपालाचारी आदि थे जो चाहते थे कि हिंदी को राष्ट्र भाषा का दर्जा मिले लेकिन उस समय तो अंग्रेजो का राज था उसके बाद जब भारत आजाद हुआ और जब संविधान सभा ने एकमत से १४ सितम्बर १९४९ को हिंदी को राष्ट्र भाषा के रूप में स्वीकार कर लिया तब से लेकर आज तक हम इस दिन को हिंदी दिवस के रूप मनाते आ रहे हैं ! हिंदी को राष्ट्र भाषा का दर्जा तो मिला हुआ है लेकिन उसको उसका उचित सम्मान आज तक नहीं मिला !!
इसका सबसे बड़ा कारण यही है कि राष्ट्र भाषा का दर्जा तो मिला लेकिन राज भाषा का दर्जा उसको आज तक नहीं मिला जिस पर आज देश आजाद होने के छियासठ साल बाद भी विदेशी भाषा अंग्रेजी अपना कब्ज़ा जवायें बैठी है ! भारत को भाषाई तौर पर जोड़े रखनें में हिंदी का कोई विकल्प है नहीं और हिंदी अपना ये दायित्व बखूबी तौर पर निभा भी रही है और आज भी अलग अलग प्रान्तों के लोगों के आपसी वार्तालाप की भाषा हिंदी ही है ! एक जमाने में हिंदी का विरोध करनें वाले दक्षिण भारतीय राज्यों में भी हिंदी का प्रभाव स्पष्ट तौर पर उस समय देखनें को मिल जाता है जब वहाँ के लोग अपनीं बात हिंदी में कहने लगे हैं !
आज हिंदी का बढ़ता प्रभाव तो हर जगह देखा जा सकता है लेकिन विश्व की दूसरी बड़ी बोली जानें वाली भाषा होनें के बावजूद इसे हिंदी का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि हमारे ही देश में हम हिंदी को आजादी के ६६ वर्षों के बाद भी राजभाषा के रूप में स्थापित नहीं कर पाए हैं ! हमारे देश में अभी भी हाल हमारा सर्वोच्च न्यायालय अपनें फैसलों का प्रकाशन हिंदी में करनें को तैयार नहीं है और मामला केन्द्रीय सुचना आयोग तक में जा पहुंचा है !
जब सभी कानूनों की जानकारी रखनें वाला सर्वोच्च न्यायालय भी हिंदी के मामले में राजभाषा नियम १९७६ जिसमें सभी मेन्युअल,सहिन्ताएं,नियम और फैसले हिंदी और अंग्रेजी दोनों में देनें की बात कही गयी है को मानने की बजाय संविधान के अनुछेद -३४८ की उस दलील को दोहराता है जिसमें सुप्रीम कोर्ट और हाइकोर्ट की कार्यवाही की भाषा अंग्रेजी कही गयी है ! तो आप हिंदी को उसका असली गौरव को पानें में आ रही चुनौतियों को समझ सकते हैं ! फिर भी सुकून देनें वाली बात यह है कि कुछ हिंदी सेनानीयों द्वारा हिंदी को उसका गौरव दिलानें की कोशिशें लगातार की जा रही है जिससे हम आशान्वित तो रह ही सकते हैं !
15 टिप्पणियां :
बहुत ही बेहतरीन और सार्थक प्रस्तुती,धन्यबाद।
सहर्ष आभार !!
आभार राजेंद्रजी !!
नमस्कार आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (15-09-2013) के चर्चामंच - 1369 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
बहुत ही सुंदर सार्थक सृजन ! बेहतरीन प्रस्तुति,!!
RECENT POST : बिखरे स्वर.
सहर्ष आभार !!
सादर आभार !!
बहुत ही सार्थक और विस्तृत चर्चा..
आभार रीना जी !!
आभार !!
बहुत सुन्दर भाषा
सुन्दर प्रस्तुति
जंगल की डेमोक्रेसी
आभार !!
सुंदर लेख ....
सही लिखा आपने पूरण जी, हिंदी की उपेक्षा में सरकार भी कम दोषी नहीं है। जब चीन जैसे देश में कंप्यूटर निर्माता कम्पनियाँ चीनी भाषा को प्राथमिकता देती हैं। वहां बिक्री का लाइसेंस ही इसी शर्त पर दिया जाता है कि डिवाइस में प्राथमिक भाषा चीनी ही हो तो हमारे देश में में इसे लागू करने में क्या दिक्कत है।
सरकारों में तो इच्छाशक्ति है ही नहीं !!
आभार !!
एक टिप्पणी भेजें