सोमवार, 21 मार्च 2016

इलेक्ट्रोनिक मीडिया की विश्वनीयता !!

भारतीय लोकतंत्र में मीडिया को चौथे खम्भे के तौर पर जाना जाता है ! लेकिन वो चौथे खम्भे के तौर पर ही माना जा सकता है जब तक उसकी विश्वनीयता बची रहे ! लेकिन आज सवाल उसकी इसी विश्वनीयता पर ही उठ खड़े हुयें हैं ! इलेक्ट्रोनिक मीडिया के सामनें तो आज सबसे बड़ा संकट विश्वनीयता का ही है क्योंकि तेजी से ख़बरों को दिखाने की हड़बड़ी और राजनितिक झुकाव नें आज इसके सामनें विश्वनीयता का संकट खड़ा कर दिया है ! 

इलेक्ट्रोनिक मीडिया के हर चेन्नल का राजनितिक विचारधारा के प्रति झुकाव तो अब कोई नई बात रह ही नहीं गयी है ! लेकिन पिछले दिनों हुयी दादरी और जेनयु जैसी घटनाओं में यह राजनितिक विचारधारा का झुकाव हर सीमा को लांघ गया ! दादरी घटना के बाद असहिष्णुता शब्द को प्रायोजित करनें में इलेक्ट्रोनिक मीडिया के कुछ चेन्न्लों नें हर हद को पार कर दिया ! जहां आमजन के बीच पूरी सहिष्णुता थी वहीँ मीडिया चेन्न्लों के कार्यालयों में असहिष्णुता की मानो बाढ़ ही आ गयी हो ! वर्तमान में पूरी राजनितिक विचारधारा यूपीए और एनडीए दौ तबकों में बंटी हुयी है वैसे ही पूरा मीडिया ही दौ तबकों में बंट गया था ! 


जेएनयू घटना के बाद तो हालात ऐसे हो गए कि मीडिया के कुछ चेन्नल इशारों और दबे शब्दों में तो कुछ खुलकर एक दूसरे पर ही आरोप लगानें शुरू कर दिए ! राजनितिक धड़ेबाजी ही मीडिया की धड़ेबाजी बन गयी जिसमें अपनें धड़े की हर बात को सही साबित करनें में मीडिया एड़ी चोटी का जोर लगा रहा था ! हालांकि राजनीतिक पार्टियों की और झुकाव तो मीडिया का पहले ही लोगों को समझ में आ रहा था लेकिन इस बार खुलकर मीडिया राजनितिक हाथों में खेलता हुआ नजर आ रहा था ! 

फर्जी  स्टिंग और शराब के लालच के सहारे मनचाही बात कहलवाने की बातें तो पहले ही सामनें आ चुकी थी ! ऐसे में इस तरह से खुलकर धड़ेबाजी में तब्दील मीडिया भला कैसे अपनीं विश्वनीयता का दावा कर सकता है ! शोसल मीडिया के इस दौर में इलेक्ट्रोनिक मीडिया की ये कारगुजारियां छुप नहीं सकती ! हालांकि शोसल मीडिया में कुछ लोगों द्वारा फैलाई गयी कुछ झूठी बातों को आधार बनाकर यह आरोप तो लगाता है कि वहाँ झूठ फैलाया जाता है ! 



2 टिप्‍पणियां :

Dr.Dayaram Aalok ने कहा…

बहुत उपयोगी जानकारी !

Gyanesh kumar varshney ने कहा…

खण्डेलवाल सहाब, सादर प्रणाम- बहुत ही अच्छा विषय संज्ञान में लाए वास्तव में लोकमान्य तिलक, गणेश शंकर विद्यार्थी वाली परम्परा को नष्ट करते हुये मीडिया समाज का सबसे भ्रष्ट स्थान बन गया है। जहाँ कुछ भी बिकता है कुछ नोटों में-
कैसे आजकल कम लिख रहै हैं क्या मेरे पास तो मेरा लेपटाप खराव हो गया था लैकिन आज देख रहा हूँ कि मित्र कम ही लिख रहे हैं ।