भारतीय लोकतंत्र में मीडिया को चौथे खम्भे के तौर पर जाना जाता है ! लेकिन वो चौथे खम्भे के तौर पर ही माना जा सकता है जब तक उसकी विश्वनीयता बची रहे ! लेकिन आज सवाल उसकी इसी विश्वनीयता पर ही उठ खड़े हुयें हैं ! इलेक्ट्रोनिक मीडिया के सामनें तो आज सबसे बड़ा संकट विश्वनीयता का ही है क्योंकि तेजी से ख़बरों को दिखाने की हड़बड़ी और राजनितिक झुकाव नें आज इसके सामनें विश्वनीयता का संकट खड़ा कर दिया है !
इलेक्ट्रोनिक मीडिया के हर चेन्नल का राजनितिक विचारधारा के प्रति झुकाव तो अब कोई नई बात रह ही नहीं गयी है ! लेकिन पिछले दिनों हुयी दादरी और जेनयु जैसी घटनाओं में यह राजनितिक विचारधारा का झुकाव हर सीमा को लांघ गया ! दादरी घटना के बाद असहिष्णुता शब्द को प्रायोजित करनें में इलेक्ट्रोनिक मीडिया के कुछ चेन्न्लों नें हर हद को पार कर दिया ! जहां आमजन के बीच पूरी सहिष्णुता थी वहीँ मीडिया चेन्न्लों के कार्यालयों में असहिष्णुता की मानो बाढ़ ही आ गयी हो ! वर्तमान में पूरी राजनितिक विचारधारा यूपीए और एनडीए दौ तबकों में बंटी हुयी है वैसे ही पूरा मीडिया ही दौ तबकों में बंट गया था !