हमें सपना तो दिखाया जा रहा है कि २०२० तक भारत एक महाशक्ति बन जाएगा लेकिन ये समझ में नहीं आता कि हमें दिखाए जा रहे इस सपनें का आधार क्या है ! क्योंकि आज के समय में ताकतवर वही देश माना जा सकता है जो आर्थिक रूप से समृद्ध हो और आर्थिक रूप से समृद्ध होने के लिए उस देश के आयात से निर्यात अधिक होना पड़ेगा ! जिसके कारण ही उस देश के विदेशी मुद्रा भण्डार में वृद्धि होती है लेकिन भारत के मामले में तो स्थतियाँ उलटी दिखाई पड़ रही है और हमारा निर्यात लगातार घट रहा है और आयात लगातार बढ़ रहा है ! जिसके कारण विदेशी मुद्रा तो हमारे पास आने कि बजाय हमारे पास से जा रही है !
हमारा देश अपनी जरूरतों का साठ फीसदी से ज्यादा पेट्रोलियम पदार्थों का आयात करता है जिसका कारण तो समझ में आता है क्योंकि अभी तक हम इस मामले में आत्मनिर्भर नहीं हो पाए हैं ! लेकिन यूरिया और कीटनाशकों का भी अपनी जरूरतों का अस्सी फीसदी बाहर से आयात करते हैं जिसका विकल्प भी हम अपनें देश में अभी तक नहीं तैयार कर पाये हैं ! यूरिया और कीटनाशकों का घरेलु विकल्प तैयार कर सकते थे जिससे पर्यावरण को भी किसी तरह कि हानि नहीं होती लेकिन हमारी सरकारों कि कमजोर इच्छाशक्ति के कारण अभी तक हम इस दिशा में नहीं बढ़ पाये हैं ! जिसका सबसे बड़ा कारण सरकारों का दोहरा रवैया ही नजर आता है क्योंकि एक तरफ तो हमारी सरकारें ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने कि बात करती है दूसरी और वही सरकारें यूरिया और कीटनाशकों कि बिक्री को प्रोत्साहित करने का काम करती हैं !
पेट्रोलियम पदार्थों और यूरिया आदि का तो हम शुरू से आयात करते रहें हैं लेकिन हैरानी कि बात तो यह है कि कृषि प्रधान देश होनें के बावजूद हमको खाध तेलों का भी आयात करना पड़ रहा है ! जिसके लिए केवल और केवल सरकारी नीतियां जिम्मेदार है क्योंकि १९९३-१९९४ तक हमारा देश इस मामले में अच्छी स्थति में था और अपनी जरुरत का महज पांच फीसदी खाध तेलों का आयात करना पड़ता था ! लेकिन आज हम अपनी जरूरतों का सतावन फीसदी खाध तेलों का आयात करने को मजबूर हैं ! और इसके लिए सरकारों कि आयात नीतियां ज्यादा जिम्मेदार रही जिन्होंने विदेशी तेलों के आयात के मामले में तात्कालिक फैसले लिए और हमारे किसानों के हितों की चिंता नहीं की जिसका प्रभाव यह पड़ा कि किसानों को तिलहनी फसलों से नुकशान होने लगा और उन्होंने तिलहनी फसलें ज्यादा उगाने कि बजाय तिलहनी फसलों से दूर होना ही अच्छा समझा ! किसी भी सरकार को कृषि पर नीति बनाने के लिए दीर्घकालिक परिणामों कि और ध्यान देना होता है लेकिन हमारे यहाँ नीतियां तात्कालिक तौर पर बनती है !