शनिवार, 6 अप्रैल 2013

आयात का बढ़ता दबाव कहीं भारी ना पड़ जाए !!

हमें सपना तो दिखाया जा रहा है कि २०२० तक भारत एक महाशक्ति बन जाएगा लेकिन ये समझ में नहीं आता कि हमें दिखाए जा रहे इस सपनें का आधार क्या है ! क्योंकि आज के समय में ताकतवर वही देश माना जा सकता है जो आर्थिक रूप से समृद्ध हो और आर्थिक रूप से समृद्ध होने के लिए उस देश के आयात से निर्यात अधिक होना पड़ेगा ! जिसके कारण ही उस देश के  विदेशी मुद्रा भण्डार में वृद्धि होती है लेकिन भारत के मामले में तो स्थतियाँ उलटी दिखाई पड़ रही है और हमारा निर्यात लगातार घट रहा है और आयात लगातार बढ़ रहा है  ! जिसके कारण विदेशी मुद्रा तो हमारे पास आने कि बजाय हमारे पास से जा रही है ! 

हमारा देश अपनी जरूरतों का साठ फीसदी से ज्यादा पेट्रोलियम पदार्थों का आयात करता है जिसका कारण तो समझ में आता है क्योंकि अभी तक हम इस मामले में आत्मनिर्भर नहीं हो पाए हैं ! लेकिन यूरिया और कीटनाशकों का भी अपनी जरूरतों का अस्सी फीसदी बाहर से आयात करते हैं जिसका विकल्प भी हम अपनें देश में अभी तक नहीं तैयार कर पाये हैं ! यूरिया और कीटनाशकों का घरेलु विकल्प तैयार कर सकते थे जिससे पर्यावरण को भी किसी तरह कि हानि नहीं होती लेकिन हमारी सरकारों कि कमजोर इच्छाशक्ति के कारण अभी तक हम इस दिशा में नहीं बढ़ पाये हैं ! जिसका सबसे बड़ा कारण सरकारों का दोहरा रवैया ही नजर आता है क्योंकि एक तरफ तो हमारी सरकारें ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने कि बात करती है दूसरी और वही सरकारें यूरिया और कीटनाशकों कि बिक्री को प्रोत्साहित करने का काम करती हैं !

पेट्रोलियम पदार्थों और यूरिया आदि का तो हम शुरू से आयात करते रहें हैं लेकिन हैरानी कि बात तो यह है कि कृषि प्रधान देश होनें के बावजूद हमको खाध तेलों का भी आयात करना पड़ रहा है ! जिसके लिए केवल और केवल सरकारी नीतियां जिम्मेदार है क्योंकि १९९३-१९९४ तक हमारा देश इस मामले में अच्छी स्थति में था और अपनी जरुरत का महज पांच फीसदी खाध तेलों का आयात करना पड़ता था ! लेकिन आज हम अपनी जरूरतों का सतावन फीसदी खाध तेलों का आयात करने को मजबूर हैं ! और इसके लिए सरकारों कि आयात नीतियां ज्यादा जिम्मेदार रही जिन्होंने विदेशी तेलों के आयात के मामले में तात्कालिक फैसले लिए और हमारे किसानों के हितों की चिंता नहीं की जिसका प्रभाव यह पड़ा कि किसानों को तिलहनी फसलों से नुकशान होने लगा और उन्होंने तिलहनी फसलें ज्यादा उगाने कि बजाय तिलहनी फसलों से दूर होना ही अच्छा समझा ! किसी भी सरकार को कृषि पर नीति बनाने के लिए दीर्घकालिक परिणामों कि और ध्यान देना होता है लेकिन हमारे यहाँ नीतियां तात्कालिक तौर पर बनती है !

जनसंख्या बढ़ने का भी एक कारण हो सकता है और हो सकता है कि इसके कारण हमें मजबूर होकर आयात करना पड़ता है लेकिन लंबे समय तक आयात करना हमारी मज़बूरी नहीं हो सकती क्योंकि अगर हम लंबे समय तक उसी वस्तु का आयात करतें हैं तो जाहिर है कि कमी हमारी नीतियों में ही है क्योंकि हम दूरगामी सोच रखनें में असमर्थ हैं तभी तो हमको लगातार आयात करनें पर मजबूर होना पड़ता है ! और अधिक आयात का खामियाजा तो हमें भुगतना ही होगा और विदेशी निवेश के बहानें भुगत भी रहें हैं जिसका कारण यही है कि अपनें आयातित वस्तुओं का भुगतान करनें के लिए हमें विदेशी मुद्रा कि आवश्यकता है और उसका तात्कालिक उपाय यही है कि विदेशी निवेश के जरिये विदेशी मुद्रा जुटाई जाए ! और हमारी सरकारों कि सोच तो तात्कालिक ही रहती है !

10 टिप्‍पणियां :

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत उम्दा सटीक प्रस्तुति!!!

RECENT POST: जुल्म

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

सरकार की खुद की प्राथमिकता हर महीने बदलती है तो नीतियाँ तो बदलेगी ही
LATEST POST सुहाने सपने
my post कोल्हू के बैल

Unknown ने कहा…

शानदार आलेख पूरण जी।

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

सादर आभार आदरणीय !!

Neetu Singhal ने कहा…

कुकुरमुत्ता के जैसे उगते उद्योग कृषि भूमि को ग्रसते चले जा रहे हैं
और उद्योग पति, भूमि स्वामीयों को बंधुवा श्रमिक बनाते जा रहे है,
परिणाम स्वरूप कृषि विकास दर, लगातार पतन की और अग्रसर है |
सरकारे, सत्ता सिद्ध होते ही उसे साधने के साधन एकत्र करने में लगी
रहती है, नीतियाँ बनाने के लिए उसके पास समय ही कहाँ है.....
एक बात तो बताइए ऐसा कौन सा श्रृंगार सदन है जहां
चुनावी दल,चुनाव के लिए 'तैयार' होते हैं.....और तैयार होकर इन्हें
किसकी 'जनेत' में चढ़ना है.....

Neetu Singhal ने कहा…

कुकुरमुत्ता के जैसे उगते उद्योग कृषि भूमि को ग्रसते चले जा रहे हैं
और उद्योग पति, भूमि स्वामीयों को बंधुवा श्रमिक बनाते जा रहे है,,
परिणाम स्वरूप कृषि विकास दर, लगातार पतन की और अग्रसर है |
सरकारे, सत्ता सिद्ध होते ही उसे साधने के साधन एकत्र करने में लगी
रहती है, नीतियाँ बनाने के लिए उसके पास समय ही कहाँ है.....
एक बात तो बताइए ऐसा कौन सा श्रृंगार सदन है जहां
चुनावी दल, चुनाव के लिए 'तैयार' होते हैं.....और तैयार होकर इन्हें
किसकी 'जनेत' में चढ़ना है.....

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

सही कहा है आपनें !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आभार !!

Dr. VIKRAM D. SHARMA ने कहा…

Om. Ye ek bahut badi sajish hai jamin hadpne aur desh ki sabhyata sankriti k sath khatarnak khel ki. Jarurat jagrukta ki taki nasur bane danvi sanskriti ka akaon (bhrasht netaon) ko satta v vyavastha se ukhad fenkne ki. 18th Century tak Bharat Vishwa ki sabse badi arthik takt(Sone ki chidiya tha, to kya udyog , dhandhe nahi tha us waqt ivkas ka kaun sa Model tha? ghar2 udhyog kutir udyog k roop the, kisi prakar k bhumi adhigrahan ki jarurat nahi thi aur nahi naukri ki talash!"Cong hatao desh bachao. Modi lao vikas karao".

Dr. VIKRAM D. SHARMA ने कहा…

"Jai Guru Dev" sabhyata sankriti k sath khatarnak khel ki. Jarurat jagrukta ki taki nasur bane danvi sanskriti ka akaon (bhrasht netaon) ko satta v vyavastha se ukhad fenkne ki. 18th Century tak Bharat Vishwa ki sabse badi arthik takt(Sone ki chidiya tha, to kya udyog , dhandhe nahi tha us waqt ivkas ka kaun sa Model tha? ghar2 udhyog kutir udyog k roop the, kisi prakar k bhumi adhigrahan ki jarurat nahi thi aur nahi naukri ki talash!"Cong hatao desh bachao. Modi lao vikas karao".--DrKrantivir