मुंबई हमले के एकमात्र जीवित आतंकवादी अजमल आमिर कसाब को आखिरकार उसके किये कि वो सजा मिल गयी जो भारतीय कानून के अनुसार मिल सकती थी और उसको फांसी पर लटका दिया गया लेकिन जिस तरह से गुपचुप तरीके से उसको फांसी दी गयी वो कई सवालों को जन्म दे गयी !
किसी भी अपराध के लिए दण्डित करना केवल उसी अपराधी को दण्डित करना भर नहीं होता बल्कि बाकी उसी तरह के अपराधियों के मन में भय बैठाना भी होता है कि आगे जाकर उनका भी यही हश्र हो सकता है इसलिए अपराध से दूर रहने में ही भलाई है और इसी सोच को ध्यान में रखकर दण्ड प्रक्रिया बनाई जाती है और बात अगर मृत्युदंड कि हो तो जाहिर है कि यह उसी को दिया जाता है जिसने इस तरह का अपराध किया हो जो किसी भी तरह से क्षमा के योग्य नहीं हो और ना ही वो समाज में जीवित रहने का अधिकारी हो !!
जिस तरह से कसाब के मामले में पूरी कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए उसके अंजाम तक पंहुचाया गया वो काबिलेतारीफ था और सम्पूर्ण विश्व ने भारत की न्यायिक प्रक्रिया कि खूबसूरती और पारदर्शिता को देखा और विश्व में यह सन्देश भी गया कि कोई कितना भी बड़ा अपराधी हो उसको अपना बचाव करने का प्रयाप्त अवसर भारत की न्यायिक प्रक्रिया में मिलता है !