मंगलवार, 25 जून 2013

संवेदनशून्य राजनीति को झेलने को मजबूर है लोग !!

उतराखण्ड की आपदा नें पहले ही देश के लोगों को दुःख के सागर में धकेल दिया था और उसके बाद लचर आपदा प्रबंधन नें लोगों के दिलों में दुःख के साथ गुस्सा भर दिया ! और ऊपर से  राजनितिक नेताओं  द्वारा की जा रही राजनीति नें दुःख और गुस्से में डूबे देशवाशियों की भावनाओं को जबरदस्त आघात पहुंचाया है ! निर्ल्ल्जता की हद तो देखिये जिनके चहरे इस आपदा की कालिख से पुते हुए हैं वो अपना चेहरा छुपाने कि बजाय प्रचार पाना चाहते हैं ! लाशों के अम्बार पर बैठकर राजनीतिक रोटियां सेंकने कि कोशिश कर रहे हैं !

इस आपदा के लिए उतराखण्ड की सरकार और उसका प्रशासन जिम्मेदार है जिसनें मौसम विभाग की चेतावनी के बावजूद ध्यान नहीं दिया और ना ही यात्रा को स्थगित किया और ना ही स्थानीय लोगों के लिए कोई दिशा निर्देश जारी किये ! और पर्यावरणविदों की तमाम चेतावनियों को नजरअंदाज करते हुए विनाशकारी विकाश का प्रारूप अपनाया गया ! उतराखण्ड की वर्तमान सरकार का आपदा के बाद भी जो संजीदगी दिखानी चाहिए थी वो उसनें नहीं दिखाई और आपदा के हर गुजरते दिन वो अपनें राजनितिक मंसूबे पालती हुयी दिखाई दी !

आपदा के नौ दिनों में उतराखण्ड सरकार के कई ऐसे फैसले देखने को मिले जो यह दर्शाते हैं कि उतराखण्ड सरकार के लिए लोगों के प्राणों से ज्यादा अपनी पार्टी का सियासी नफ़ा नुकशान ज्यादा प्यारा हो गया ! जबकि हजारों लोगों के प्राण संकट में हो तो राजनितिक द्वेषता नहीं देखी जाती लेकिन उतराखण्ड सरकार इससे बाहर निकल ही नहीं पायी ! जब गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी नें २४ हेलिकॉप्टर देने की पेशकश की तो उतराखण्ड सरकार नें उस पेशकश को इस डर से ठुकरा दिया कि कहीं मोदी बढ़त नहीं ले ले ! अब सवाल यह उठता है कि उतराखण्ड सरकार के पास हेलिकोप्टर मौजूद थे तो लगाए क्यों नहीं गए और अगर नहीं थे तो मोदी के प्रस्ताव को क्यों ठुकरा दिया गया ! उतराखण्ड के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को आपदाग्रस्त इलाकों का जमीनी दौरा करनें की इजाजत नहीं देते है और वहीँ राहुल गांधी को ना केवल जमीनी दौरे की गुपचुप इजाजत देते हैं बल्कि आईटीबीपी के शिविर में रात भी गुजारने की व्यवस्था करते हैं ! भाई ये भेदभाव क्यों !  

आपदा के छटवें दिन जब दिल्ली में भगत सिंह कोश्यारी अपने स्तर पर इकट्ठी की गयी राहत सामग्री अपने सचिव के जरिये उतराखण्ड भवन के अधिकारियों को देनें गए तो वहाँ के अधिकारियों नें कहा कि उतराखण्ड सरकार का फरमान आया है की मदद करनी है तो नकद अथवा चेक के माध्यम से ही की जाए ! उनको राहत सामग्री लेनें से मना किया है ! जबकि इसका भी मूल कारण राजनैतिक सोच ही थी क्योंकि भगत सिंह कोश्यारी भाजपा के थे और जब आठवें दिन सोनिया गांधी और उनके लाडले कांग्रेस के युवराज नें राहत सामग्री को पुरे दिखावी तामझाम के साथ रवाना किया तो क्यों नहीं उतराखण्ड के मुख्यमंत्री नें कहा की हमें राहत सामग्री की आवश्यकता नहीं है ! 


आपदा के आठवें दिन ही उतराखण्ड के मुख्यमंत्री नें कहा कि जिनको भी सहायता करनी है वो उतराखण्ड सरकार के माध्यम से ही करनी होगी और अलग से किसी को सहायता की अनुमति नहीं दी जा सकती है ! अब अगर उतराखण्ड सरकार के पास इतने संसाधन मौजूद है जिनके द्वारा वो लोगों को राहत पहुंचा सकती है तो फिर इतनी देरी क्यों की !  क्या उतराखण्ड सरकार के पास केवल धन और राहत सामग्री की ही कमी है जो लोग उसको देंगे तो वो लोगों तक पहुंचा सकती है ! और इसी फैसले के मद्देनजर हरिद्वार रेलवे स्टेशन के बाहर आपदा से प्राण बचाकर आये लोगों को मदद पहुँचाने के लिए बाबा रामदेव के पतंजली योगपीठ के सहायता शिविर को प्रशासन नें हटवा दिया ! मतलब साफ़ है कि उतराखण्ड के मुख्यमंत्री के लिए अपनी पार्टी का नफ़ा नुकशान ज्यादा अहम रहा बनिस्पत इसके की लोगों के प्राण बचाने के ! जबकि लोगों को इससे राहत के नाम पर बन्दरबाँट का का अंदेशा ज्यादा हो रहा है !

ऐसा नहीं है की ऐसी सोच केवल उतराखण्ड के मुख्यमंत्री की ही है बल्कि इसी सोच का प्रमाण कांग्रेस के तमाम नेताओं और केन्द्र सरकार नें भी दिया है ! नरेंद्र मोदी नें जब उतराखण्ड का दौरा किया तो कांग्रेस के प्रवक्ताओं नें उसको आपदा पर्यटन ( उनके शब्दों में डिजास्टर ट्यूरिज्म ) का नाम दिया था ! लेकिन उन्ही नेताओं के मुहं से तब ये शब्द नहीं निकला जब राजस्थान ,हरियाणा और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्रियों नें उतराखण्ड का दौरा किया और अब तो उनके पार्टी महासचिव भी उसी आपदा पर्यटन के लिए निकल लिए ! देश के गृहमंत्री नें मोदी के दौरे के तुरंत बाद सवाल उठाते हुए कहा की वीवीआईपी लोगों को उतराखण्ड नहीं जाना चाहिए परन्तु यही बात गृहमंत्री उन्ही की पार्टी के महासचिव राहुल गांधी को समझा पानें में नाकाम रहते हैं और वो उतराखण्ड का दौरा करते हैं ! 

मोदी के दो करोड़ रूपये की सहायता पर सवाल उठाने वाली कांग्रेस नें आपदाग्रस्त इलाकों में भेजी जानें वाली राहत सामग्री को केवल इसलिए रोके रखा ताकि उनकी पार्टी के युवराज विदेश से जन्मदिन की छुट्टियाँ पूरी करके आये और राहत सामग्री को झंडी दिखाकर रवाना करे ताकि उनके  युवराज की फोटो मीडिया में आ सके ! विडम्बना देखिये आफत की इस घड़ी में भी राजनैतिक प्रसिद्धि पानें की ख्वाहिस को कांग्रेस पार्टी रोक नहीं पायी  ! इसी सोच का परिणाम देखिये लोग प्रधानमंत्री राहत कोष में पैसा देनें की बजाय स्वंयसेवी संस्थाओं को चंदा देना ज्यादा पसंद कर रहे है ! 

हालांकि ऐसा नहीं है की भाजपा इससे बची हुयी रही है उसनें भी एक दो मौकों पर ऐसी ही अपनी राजनैतिक सोच को आगे रखा ! भाजपा की और से ऐसी सोच का मोर्चा संभाला नरेंद्र मोदी नें और उन्होंने हिंदू वोट बैंक को साधने की कोशिश करते हुए केदारनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण की पेशकश कर डाली ! लाशों के अम्बार पर बैठकर उनको ऐसा करनें की क्या आवश्यकता थी ! यह सवाल देश उनसे जरुर पूछ रहा है ! दूसरी बात मोदी द्वारा यह बात फैलाने की क्या आवश्यकता थी की वो गुजरातियों को लेकर जा रहे हैं ! ऐसा करनें के पीछे मोदी का उद्देश्य बाकी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को नाकारा साबित करना था ! और अपनी उस कुशल प्रशासकीय क्षमता का प्रदर्शन करना था जिसके लिए उनको जाना जाता है ! मोदी कितनें लोगों को निकाल कर ले गए ये भी एक प्रश्न उठ खड़ा हुआ है ! हालांकि मोदी नें ऐसा कुछ कहा नहीं है लेकिन मीडिया ये संख्या १५००० बता रही है जिस पर प्रश्न उठना लाजमी है !

भाजपा के प्रवक्ता लगातार राहुल की विदेश यात्रा को लेकर सवाल उठाते रहे हैं ! जिन सवालों का कोई महत्व नहीं था क्योंकि राहुल पहले होते तो अपनें दौरों से राहत कार्य में बाधा ही डालते ! और इसके अलावा मुझे नहीं लगत्ता की राहुल कुछ कर सकते थे ! वैसे अभी तक देश नें उनमें कोई काबिलियत की झलक देखी नहीं है ! इसलिए वो नहीं थे तो कम से कम कुछ लोगों का तो भला हुआ ! कुल मिलाकर इस आपदा से एक बात साफ़ हो गयी की राजनीतिज्ञ लाशों के अम्बार पर बैठकर भी राजनीति कर सकते हैं ! 

21 टिप्‍पणियां :

Unknown ने कहा…

sahi kaha, rajneeti ki rotiyan har jahag seki jaa rahi hain...

Unknown ने कहा…

सही लिखा आपने पूरण जी,यह राजनीति के पतन की निशानी है।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

बेशर्मों को अगर शर्म आती तो इतने से ही आ जानी चाहिए थी कि सुप्रीम कोर्ट बार-बार उन्हें राहत में तेजी लाने के निर्देश दे रहा है ! क्यों क्या इन्हें खुद की अक्ल नहीं है ?

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बेहद सटीक और सामयिक संतुलित आलेख.

रामराम.

Shikha Kaushik ने कहा…

SABHI TATHY BHALI BHANTI JUTAYEN HAIN AGAR TO VAAKAI LAJJA KI BAT HAI PAR NETA SAMVEDNAHEEN HI HOTE HAIN -GUJRAT DANGON KE SAMAY SHRI NARENDR MODI JIS TARAH MUSLIM BHAI-BAHANON KE KHULEAAM KATL PAR CHUP RAHE VO YAHI SABIT KARTA HAI .

बेनामी ने कहा…

अपनैं लैख मैं हकीकत का सामना करवाया है !

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत बढ़िया,सटीक प्रस्तुति,,,

Recent post: एक हमसफर चाहिए.

Satish Saxena ने कहा…

सच कहा आपने ...

Abhijit Ray ने कहा…

As an outsider, I do not know politics being played by different parties. But it is certain that every one is trying to milk this disaster to benefit their poll prospect. It is outrageous to claim a chief minister rescued 15000 people in a day. It is utterly condemnable that Vice President of another party flouts home ministers directive on VIP visit to Uttarakhand. About chief minister of the state, less said is better.

रविकर ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति-
बधाई-

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

सही कहा आपने !!
सादर आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आभार ताऊ !!
राम राम !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

तथ्य एकदम सत्य है ! जहां तक दंगो की बात है तो हर किसी के चेहरे कालिख से पुते हुए हैं किसी पर गोधरा और गुजरात का दाग है तो किसी पर सिखों की हत्या का कलंक है !!
आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

सादर आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

लोगों की मौतों से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता ,सब अपनी राजनितिक रोटियां सेकने में आगे है !!
आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

सादर आभार आदरणीय !!

dr.mahendrag ने कहा…

ये सभी नेता अपनी राजनितिक रोटियां लाशों के ढेर पर सेंक रहें है.इन्हें जनता के दुःख तकलीफ से कोई लेना देना नहीं.उनके बयान,एक दुसरे की टांग खींचने खींचने के तरीकों ने इनके राजनितिक पतन की तस्वीर उजागर करदी है.ऐसा लगता है कि इन्हें तो ऐसे हादसे कि जरूरत थी, और वे इसके लिए ही प्रार्थना कर रहे थे ताकि चुनाव हेतु कुछ पैंठ बन सके.उन्होंने पांच साल में क्या किया है यह तो जनता जानती ही है, अब कुछ नया कर के लाभ मिले तो क्या बुरा है.वैसे भी राजनीती में नैतिकता नाम कि कोई चीज ही भी नहीं,संवेदना तो तो बिलकुल ही नहीं.

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

सही कहा है आदरणीय !!