रविवार, 22 जुलाई 2012

लोगों का विश्वास खोता मीडिया !!


आम लोगों का मीडिया पर जिस तरह से अविश्वास बढ़ता जा रहा है वो अच्छा तो कतई नहीं कहा जा सकता क्योंकि मजबूत और स्वंतत्र मीडिया ही समाज में बदलाव ला सकता है लेकिन इसके लिए कहीं ना कहीं खुद मीडिया ही जिम्मेदार है . पिछले कई वर्षों से देखा जाए तो जिस तरह राजनेताओ का चरित्र का ग्राफ नीचे आता जा रहा है वैसे ही मीडिया का ग्राफ भी नीचे की और अग्रसर है !!
अब अगर आप मीडिया का विश्लेषण करने बैठेगे तो आपको लगेगा की वाकई मीडिया विश्वशनीय नहीं है क्योंकि जिस तरह से घोटाले हो रहे है और मीडिया केवल तमाशा देख रहा है और एक भी घोटाला मीडिया के द्वारा नहीं उजागर किया और उजागर करना तो दूर मीडिया द्वारा तो घोटाले की ख़बरों को भी तब तक नहीं दिखाया जब तक कोई सरकारी एजेंसी द्वारा प्रेस कांफ्रेंस करके नहीं बताया गया हो ऐसे में आप ही बताइये जिस मीडिया का दायित्व है ऐसे मामलों को उजागर करना था उसी मीडिया ने उसको दिखाना जरुरी नहीं समझा !!
ऐसे बहुत से मामले है जिन पर मीडिया को कठघरे में खड़ा किया जा सकता है नीरा राडिया टेप ,अभिषेक मनु सिंघवी जैसे मामले भी सामने आये जिनको मीडिया ने दिखाना ही उचित नहीं समझा जबकि सोशल मीडिया में ये टेप चलते रहे लेकिन जो समाचार माध्यम समाचारों की जगह ज्योतिष ,सीरियल और ना जाने कितने तरह कि सामग्री दिखाते है उनको इन सब मामलों को उठाने का समय ही नहीं मिला और तो और नीरा राडिया के टेप तो खुद आयकर विभाग ने जारी किये थे लेकिन क्योंकि उसको दिखाने से मीडिया वालों के नाम ही सामने आने थे इसीलिए मीडिया ने पक्षपात किया और दिखाना उचित नहीं समझा !!


मीडिया वही दिखाता है जो उसके हितों के अनुरूप हो इसका उदाहरण आपको देखना हो तो अभी देश में चल रहे दो बड़े आंदोलनों को लेकर देख सकते है एक है जन लोकपाल पर अन्ना हजारे का आंदोलन और दूसरा है कालेधन पर बाबा रामदेव द्वारा चलाया जा रहा आंदोलन जिसमे अन्ना हजारे वाले आन्दोलन से तो मीडिया कि सेहत पर कोई विशेष फर्क नहीं पड़ने वाला है इसलिए इस आंदोलन को तो मीडिया बेहिचक दिखाता है लेकिन बाबा रामदेव वाले आंदोलन से मीडिया को फर्क पड़ता है क्योंकि मीडिया भी कालेधन के इस्तेमाल में लिप्त है इसलिए उस आंदोलन को मीडिया द्वारा हतोत्साहित करने के प्रयास ही ज्यादा होते है और अन्ना हजारे वाले आंदोलन को ज्यादा कवरेज देने के पीछे भी शायद मीडिया कि यही सोच काम कर रही है कि इस आंदोलन से जितने ज्यादा लोग जुडेंगे उतने ही लोग बाबा के आंदोलन से दूर होते जायेंगे !!

साम्प्रदायिक सोच को मीडिया द्वारा नकारा जाना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं हो रहा बल्कि मीडिया खुद साम्प्रदायिक सोच में लिप्त है मीडिया ना तो छद्म धर्मनिरपेक्षतावादी लोगों को उजागर कर पा रहा है बल्कि मीडिया भी उन्ही लोगों के पक्ष में खड़ा है जो साम्प्रदायिक सोच को बढ़ावा देते है यही मीडिया है जो हिंदू का नाम आते ही साम्प्रदायिक साम्प्रदायिक चिलाने लगता है लेकिन अगर कोई चीख चीख कर भी दूसरे धर्मों के विषय में बात करते है तब मीडिया को साम्पदायिक नजर नहीं आता है ! वरुण गाँधी या प्रवीण तोगडिया कुछ भडकाऊ भाषण देते है तब तो मीडिया आसमान सर पे उठा लेता है और इनकी गिरप्तारी के लिए दबाव बनाता है लेकिन वही जब इमाम बुखारी या गिलानी जैसे लोग भडकाऊ भाषण देते है तब मीडिया दुबककर बैठ जाता है तथा उनकी गिप्तारी के लिए दबाव बनाना तो दूर बल्कि अदालत में मामला जाने के बाद भी और अदालत द्वारा बार बार गिरप्तारी वारंट जारी होने पर भी मीडिया दबाव नहीं बनाता है और तब मीडिया को उसमे कुछ भी साम्प्रदायिक नजर नहीं आता है जबकि मीडिया का रवैया भेदभाव वाला नहीं होना चाहिए और गलत चाहे कोई भी हो उसका डटकर विरोध करना चाहिए लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो रहा है !!

इसी तरह का भेदभाव सामाजिक बुराइयों के साथ किया जा रहा हिंदुओं कि सब सामाजिक बुराइयों पर तो मीडिया अपनी पैनी नजर रखता है और जागरूक मीडिया को रखनी भी चाहिए लेकिन वहीँ मीडिया को दूसरे धर्मों में व्याप्त सामाजिक बुराइयां नजर नहीं आती तब उसकी पैनी नजर गायब हो जाती है इसका सीधा मतलब यही निकलता है कि हिंदू धर्म आसान निशाना है और मीडिया भी आसान निशाने पर ही तीर चला रहा है इसका सीधा अर्थ यही है कि मीडिया बिना पक्षपात के काम नहीं कर रहा है !!
ऐसे और भी बातें है जो मीडिया पर सवालिया निशान लगाती है जो आप खुद देखेंगे तो समझ में आ जाएगा और ऐसा भी नहीं है की मीडिया में निर्भीक और पक्षपात रहित लोग नहीं है लेकिन उनको हाशिए पर रखा जाता है और उनकी सोच को आगे नहीं बढ़ाया जाता है !!
जय हिंद !!

कोई टिप्पणी नहीं :