शनिवार, 17 मई 2014

"अच्छे दिन आने वाले है" स्लोगन का जादू खूब चला !!

"अच्छे दिन आने वाले है" स्लोगन का जादू इस बार लोकसभा चुनावों में जमकर चला है जिसका परिणाम सबके सामने हैं ! भाजपा अकेले दम पर स्पष्ट बहुमत को पार कर गयी और एनडीए सवा तीन सौ सीटों को पार कर गया ! मोदी के नेतृत्व में मिले इस जनादेश का विश्लेषण तो राजनैतिक पंडित अगले कुछ दिनों तक करते रहेंगे लेकिन इतना तो मानना ही पड़ेगा कि जनता ने  मोदी पर बेतहाशा भरोसा किया है ! यही कारण है कि आजादी के बाद पहली बार किसी गैर कांग्रेसी पार्टी को जबरदस्त बहुमत दिया है और इस तरह का स्पष्ट बहुमत भी कांग्रेस तब तक ही पाती रही है जब तक उसके सामने मजबूत चुनौती देनें लायक पार्टियां नहीं थी और जब अन्य पार्टियां मजबूती के साथ उभरी तो कांग्रेस को भी स्पष्ट बहुमत के लाले पड़ गए !

इस बार जनता नें खुलकर कई मसलों पर स्पष्ट राय दे दी जिसको अगर राजनैतिक पार्टियां समझ जाए तो उनके लिए भी अच्छा ही होगा ! तुस्टीकरण की राजनीति के सहारे सत्ता तक पहुँचने वाली पार्टियों पर लगाम लगाकर उनको स्पष्ट सन्देश दे दिया कि उनको तुस्टीकरण के सहारे साधना बंद कीजिये ! उनकी पसंद तुस्टीकरण की राजनीति नहीं बल्कि विकास की राजनीति है ! यही कारण है कि छद्म धर्मनिरपेक्षता के सहारे सत्ता तक पहुँचने का खवाब दखने वाली पार्टियों के पर जनता नें कुतर दिए ! उनको जनता नें इस लायक ही नहीं छोड़ा कि वो ऐसी कोई कोशिश ही कर सके !

गटबंधन की मजबूरियों का गलत फायदा उठाने वाली पार्टियों को भी जनता नें उनकी औकात दिखा दी ! डीएमके, सपा,बसपा ,राजद जैसी पार्टियों को मतदाताओं नें स्पष्ट सन्देश दे दिया कि वे उनको मुर्ख समझने की भूल कतई ना करें ! अगर उनके पास मजबूत विकल्प होगा तो वो उनको किनारे लगाने में कोई कोताही नहीं बरतेंगे !  उसने ऐसी सभी पार्टियों को इस बार उन सभी पार्टियों को सबक सिखाया है जो केन्द्र में तो गलबहियां डालकर सत्तासुख भोगते हैं और राज्यों में लड़ने का नाटक करते हैं ! अबकी बार जनता उनकी असलियत समझ गयी और उनको उस लायक ही नहीं छोड़ा कि वो जनता को मुर्ख बनाने की कोई कोशिश भी कर सके ! 

शुक्रवार, 12 अप्रैल 2013

सुचना माध्यमों (media ) का नमो नम: और रागा गान !!

आजकल सुचना माध्यमों में जिस बात पर सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है वो  नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनने को लेकर है ! समाचार चैंनल पुरे दिन इन दोनों से जुडी छोटी से छोटी बातों को दिखा रहे हैं और उन्ही बातों को लेकर नयी बहस शुरू कर देते हैं ! और उन्ही बातों पर नई  बयानबाजी शुरू हो जाती है जिसके कारण मीडिया को मसाला मिलता रहता है और मीडिया तो चाहता भी यही है कि उसे बैठे बिठाए मुद्दे मिलते रहे और उन्हें वो चक्करघिन्नी की तरह घुमाता रहे ! दरअसल इसको मीडिया ही शुरू करता है ,हवा देता है और अंतिम निष्कर्ष भी वो ही निकालता है ! लेकिन इसका फायदा मीडिया को यह होता है कि उसको समाचारों के लिए भागदौड़ नहीं करनी पड़ती है ! लेकिन नुकशान जनता को होता है और इस तरह कि चक्करघिन्नी कि तरह चलने वाले समाचारों के कारण असल मुद्दे कहीं पीछे छुट जाते हैं !!

हमारे सुचना माध्यम एक ऐसी सुलभ मानसिकता से ग्रसित हो गए हैं जिसके तहत उनका पूरा जोर उन्ही इलाकों के आस पास ही ज्यादा रहता है जहां पर उनके स्टूडियो होते हैं ! और इसी मानसिकता के चलते आज इलेक्ट्रोनिक मीडिया के लिए दिल्ली और इसके आसपास के इलाके ही सम्पूर्ण भारत में तब्दील हो गए हैं और शेष भारत जैसे उनके लिए कोई मायने ही नहीं रखता है ! इलेक्ट्रोनिक मीडिया कि इसी मानसिकता का  प्रभाव यह हुआ कि आज मीडिया के पास अपार साधन होते हुए भी वो उन इलाकों से कट गया जहां पर देश कि आबादी का महत्वपूर्ण हिस्सा निवास करता है ! इसके अलावा विकट परिस्थतियों वाले सुदूर इलाके तो जैसे मीडिया के लिए विदेशों से ज्यादा दूर हो गए हैं ! देश के सीमान्त इलाकों में मीडिया कि पहुँच की तो आप कल्पना भी नहीं कर सकते हैं !

इसी तरह कुछ चुनिन्दा क्षेत्र से जुड़े लोग ही मीडिया के लिए पसंदीदा रह गए हैं जिनमें राजनीतिज्ञ उसके लिए सबसे पसंदीदा क्षेत्र है और उसके बाद उधोगपतियों को मीडिया वरीयता देता है ! किसान,मजदुर आदि तो उसकी वरीयता सूची में तो क्या सामान्य सूची में भी शामिल नहीं है जिसके कारण इनसे जुडी हुयी बातें मीडिया के लिए जैसे कोई बात होती ही नहीं है ! इसी का परिणाम है कि हमारा मीडिया उधोगों कि प्रगति को ही देश के विकास का पैमाना मान लेता है लेकिन किसानों कि बदहाली को लेकर वो विकास के इस मौजूदा अपने ही बनाए हुए विकास के पैमाने पर कोई प्रश्नचिन्ह नहीं लगाता है ! जिसका सीधा कारण यह है कि उसको पता है कि विकास के इस पैमाने पर प्रश्नचिन्ह लगाने से उन पर सीधा प्रश्नचिन्ह लग जाएगा जो उसकी वरीयता सूचि में सबसे ऊपर है !

बुधवार, 6 मार्च 2013

मोदी के कारण पार्टियों के बनते बिगड़ते समीकरण !!

देश का अगला प्रधानमंत्री कौन होगा इसको लेकर बुद्धिजीवी वर्ग अपने अपने कयास लगा रहें हैं और संभावनाओं के आधार पर विश्लेषण भी कर रहें हैं ! पार्टियां भी अपने अपने हिसाब से समीकरण बैठा रही है और जोड़ बाकी गुणा भाग करके सता के समीकरणों का हिसाब लगा रही है और केवल पार्टियां हि क्यों पार्टियों के नेता तक अपनी संभावनाओं को तलाश रहे हैं ! वैसे देश की पुरानी पार्टी कांग्रेस तो अपने वंशवादी परम्परा का निर्वहन करते हुए अपने नए नवेले युवराज राहुल को प्रधानमन्त्री के उम्मीदवार के रूप में देख रही है तो दूसरी तरफ भाजपा अभी तक निर्विवादित रूप से किसी को प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में स्वीकार नहीं कर पा रही है ! और उसके कई नेता इस कतार में खड़े हैं ! दूसरी कई पार्टियों के नेता भी अपनी संभावनाओं को जिन्दा रखे हुए हैं लेकिन जिस तरह से मोदी कद्दावर होकर उभर रहें है उससे दोनों हि पार्टियों के समीकरण बिगड़ते नजर आ रहें हैं ! 

भाजपा के कई नेता भले हि प्रधानमंत्री बनने का सपना पाले हुए हो लेकिन भाजपा अब एक ऐसे मोड़ पर खड़ी है जहां उसके सामने दो हि रास्ते है ! या तो वो मोदी को अगला प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित करके सता तक पहुँचने की संभावनाओं को बनाए रखते हुए चुनावों में जाए और दूसरा रास्ता उसके पास यही है कि गटबंधन कि चिंता करते हुए तथा अपनी हि पार्टी के दूसरे नेताओं की प्रधानमंत्री बनने कि इच्छाओं को जीवित रखते हुए चुनावों में जाए ! जहां पहले रास्ते में मोदी भाजपा पर हावी होते नजर आते हैं वहीँ भाजपा के सत्ता तक पहुँचने कि संभावनाएं भी इसी रास्ते से ज्यादा नजर आती है लेकिन इस रास्ते पर चलने से हो सकता है कि कुछ दलों के साथ उसका गटबंधन भी टूट जाए लेकिन फिर भी जमीनी हकीकत और हाल हि में आये सर्वे के नतीजे देखें तो उस कमी को वो शायद मोदी के नाम के सहारे अधिक सीटें जीतकर पूरा भी कर सकती है ! 

गुरुवार, 20 दिसंबर 2012

मोदी अब भाजपा के नये संकटमोचक की भूमिका में !!

गुजरात चुनावों के परिणाम आने के बाद यह तो साफ़ हो चूका है कि एक बार फिर मोदी ही गुजरात के मुख्यमंत्री का पद संभालेंगे और यह उनका लगातार तीसरा कार्यकाल होगा लेकिन मोदी की जीत कई मायनों में अहम मानी जा सकती है ! एक तो इस बार भाजपा के बागी और भूतपूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल भी मोदी के सामने चुनाव मैदान में थे जिसके कारण जातिगत समीकरण उनके खिलाफ लग रहे थे ! दूसरी और लगातार सता में रहने के कारण वोटरों की नकारात्मकता भी उनके लिए सिरदर्द साबित हो रही थी ! और मोदी के पास इस बार कोई भावनात्मक मुद्दा भी नहीं था जिसके सहारे मोदी वोटों का धुर्वीकरण कर पाते इसलिए मोदी के पास जनता में जाने के लिए विकास ही अहम मुद्दा था ! ऐसे में गुजरात चुनावों में मोदी के विकास के दावों की अग्निपरीक्षा होने वाली थी और मोदी उसमें ना केवल पास हुए बल्कि विरोधियों को माकूल जबाब भी दिया जिसके लिए मोदी जाने जाते हैं !!

गुजरात चुनाव कई लोगों के लिए अहम थे खुद मोदी के लिए जहां प्रतिष्ठा का प्रश्न था वहीँ राहुल गांधी के लिए भी बिहार और उतरप्रदेश चुनावों में हुयी हार के बाद गुजरात चुनाव खास महत्व रखते थे ! लेकिन जहां मोदी ने अपना जलवा बरकरार रखा वहीँ कांग्रेस के युवराज कोई खास करिश्मा नहीं कर पाए और वो अपनी पार्टी को हार से नहीं बचा पाए ! जहां मोदी ताकतवर होकर उभरें हैं वहीँ राहुल के हिस्से में हार में एक और राज्य शुमार हो गया है जो निश्चित रूप से उनके लिए निराशाजनक तो जरुर होगा !