मेरे प्रिय कवि राजबुन्देली जी कि रचना.........
बावरी मीरा की प्रॆम-तपस्या, राधा की प्रीत लिखूं !!
कुसुम कली कॆ कानों मॆं,मधुर भ्रमर संगीत लिखूं !
जीवन कॆ एकांकी-पन का,कॊई सच्चा मीत लिखूं !!
एक भयानक सपनॆं नॆं, चित्र अनॊखा खींच दिया !
श्रृँगार सृजन कॊ मॆरॆ, करुणा क्रंदन सॆ सींच दिया !!
यॆ हिंसा का मारा भारत, यह पूँछ रहा है गाँधी सॆ !
कब जन्मॆगा भगतसिंह, इस शोषण की आँधी सॆ !!
राज-घाट मॆं रोता गाँधी, अब बॆवश लाचार लिखूंगा !
दिनकर का वंशज हूं मैं, श्रृँगार नहीं अंगार लिखूंगा !!
चिंतन बदला दर्शन बदला, बदला हर एक चॆहरा !
दही दूध कॆ छींकों पर, लगा बिल्लियॊं का पहरा !!
भ्रष्टाचारों की मंडी मॆं, बर्बाद बॆचारा भारत देखो !
जलती हॊली मे फंसा,प्रह्लाद हमारा भारत देखो !!
जीवन का कटु-सत्य है, छुपा हुआ इन बातॊं मॆं !
क्रान्ति चाहिए या शॊषण,चयन तुम्हारॆ हाथॊं मॆं !!
जल रही दहॆज की ज्वाला मॆं,नारी की चीख सुनॊं !
जीवन तॊ जीना ही है, क्रांति चुनॊं या भीख चुनॊं !!
स्वीकार तुम्हॆं समझौतॆ, मुझकॊ अस्वीकार लिखूंगा !
बरदाई का वंशज हूं मैं, श्रृंगार नहीं अंगार लिखूंगा !!
दिनकर का वंशज हूं मैं, श्रृँगार नहीं अंगार लिखूंगा !!
उल्टी-सीधी चालें दॆखॊ, नित शाम सबॆरॆ कुर्सी पर !
शासन कर रहॆ दुःशासन, अब चॊर लुटॆरॆ कुर्सी पर !!
सुविधाऒं पर बस अपना, अधिकार जमायॆ बैठॆ हैं !
गांधी बाबा की खादी कॊ, यॆ हथियार बनायॆ बैठॆ हैं !!
कपट-कुटी मॆं बैठॆ हैं जॊ, परहित करना क्या जानॆं !
संगीनॊं कॆ सायॆ मॆं यॆ, सरहद का मरना क्या जानॆं !!
अनगिनत घॊटालॆ करकॆ भी,जॊ पा जायॆं बहाली यॆ !
अमर शहीदॊं कॆ ताबूतॊं मॆं, क्यूं ना खायॆं दलाली यॆ !!
इन भ्रष्टाचारी गद्दारॊं का, मैं काला किरदार लिखूंगा !
नज़रुल का वंशज हूं मैं, श्रृँगार नहीं अंगार लिखूंगा !!
दिनकर का वंशज हूं मैं, श्रृँगार नहीं अंगार लिखूंगा !!
कण-कण मॆं सिसक रही,आज़ाद भगत की अभिलाषा !
अब्दुल हमीद की साँसॆं पूंछ रहीं आज़ादी की परिभाषा !!
फिर सॆ भारत की नारी, कब दामिनी बन कर दमकॆगी !
कब चूडी वालॆ हाँथॊं मॆं फ़िर से,तलवार पुरानी चमकेगी !!
अपनॆं अपनॆं बॆटॊं कॊ आओ, दॆश भक्ति का पाठ पढा दॆं !
जिस माँ की गॊदी मॆं खॆलॆ, उसकॆ चरणॊं मॆं भॆंट चढा दॆं !!
भारत माँ कॆ इन बॆटॊं कॊ ही, उसका हर कर्ज चुकाना है !
आऒ मिलकर करॆं प्रतिज्ञा,इस माँ की लाज बचाना है !!
सिसक रही भारत माँ की, मैं बहती अश्रुधार लिखूंगा !
कवि-भूषण का वंशज हूं मैं,श्रृँगार नहीं अंगार लिखूंगा !!
दिनकर का वंशज हूं मैं, श्रृँगार नहीं अंगार लिखूंगा !!
( वीर रस के कवि-राजबुंदॆली जी कि कविता )
21 टिप्पणियां :
शानदार रचा है कवि ने !
बहुत ही भावपूर्ण एव क्रन्तिकारी रचना जितनी तारीफ की जय कम है,सादर आभार मान्यवर।
जोशीली कविता -
आज के माहौल में अंगार ही उगले जायेंगे-
राजबुंदेले जी , की बड़ी सार्थक व्यंजना पढवाई आपने रूपकात्मक अभिव्यक्ति सुलगती हुई ज्वाल सी ,आज की मशाल सी ,निर्भया की प्रवाल सी .शुक्रिया आपकी निरंतर टिप्पणियों का .
सादर आभार !!
आभार !!
सही कहा है आपनें !!
आपका कहना शतप्रतिशत सही है !!
बहुत खूब ...
बधाई !
सादर आभार !!
क्या खूब कहा हैं अपने बहुत सुन्दर
मैं आपके ब्लॉग पर पहली बार आया हूँ आगे निरंतर आता रहूगा
आप से आशा करता हूँ की आप एक बार मेरे ब्लॉग पर जरुर अपनी हजारी देंगे और
दिनेश पारीक
मेरी नई रचना फरियाद
एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ
सुन्दर रचना
आभार !!
बहुत सुंदर..पहले भी पढ़ा था मैंने इस सुंदर रचना को..
समय की पुकार को सुनना कवि का सच्चा धर्म है!
behatareen swgat yogy aur sarahniy prastuti "smiritio ke aanchal par,dinkar ka mai bhav likhugi,syam narayan ke jauhar se haldighati ka safar likhugi,mai apne is kal khand ka ek nya itihas likhugi,tum oso ka hamma likhoge,mai chrtak ka gungan likhugi,(Madhu "muskan")
आभार !!
आदरेया आपने सही कहा है !!
आभार !!
वास्तव में दिनकर की परम्परा को जिया है।
सुन्दर रचना।
धवल दीक्षित
आभार !!
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