तुस्टीकरण चाहे किसी भी प्रकार का भी हो वो देश हित में तो कतई नहीं कहा जा सकता है ! अब वो चाहे सत्ता,धर्म,जाति,भाषा और प्रांत में से किसी का भी हो लेकिन अतंत तो उसके कारण देश हि कमजोर होता है और देशवाशियों के बीच वैमनस्यता के बीज पनपते जाते हैं जिसका परिणाम आगे जाकर इतना भयावह हो सकता है कि देश के टुकड़े भी करवा सकता है ! यह भी नहीं है कि तुस्टीकरण का यह खेल नया है ! नया भी नहीं है बल्कि सालों से इसी खेल को दोहराया जाता है !
सताधारी लोग सता का तुस्टीकरण अपनी हि जमात के लोगों को बचाने के लिए रोज करते देखे जा सकते हैं ! वोटों के लिए धर्म के नाम पर तुस्टीकरण भी देश की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी समेत कई छोटी बड़ी सभी पार्टियां आजादी के बाद से करती आई है और आज भी कर रही है ! भाषा के नाम पर भी तुस्टीकरण का खेल राजनैतिक पार्टियों द्वारा देश में खेला गया जिसके परिणामस्वरूप हिंदी को आज भी आधिकारिक रूप से राष्ट्र भाषा का दर्जा अभी तक नहीं मिल पाया है ! प्रांतवाद के तुस्टीकरण का खेल भी वोटों के लिए आज हमारे देश में खेला जा रहा है !
हर प्रकार के तुस्टीकरण के पीछे राजनैतिक पार्टियां हि होती है और मकसद वोटों के जरिये सता तक पहुंचना हि होता है लेकिन अन्त्गोवा उसका दुष्परिणाम समाज के हर वर्ग को भुगतना पड़ता है ! और जो लोग तुस्टीकरण के इस खेल के खिलाड़ी होते हैं वो हमेशा फायदे में हि रहते हैं ! धर्म के नाम पर तुष्टिकरण करने वाली पार्टियां इसी तुस्टीकरण के सहारे सता तक पहुँचती है और इसीलिए आज हर पार्टी धार्मिक तुस्टीकरण का खेल खेलती है और यही कारण है कि इस खेल में एकछत्र दबदबा रखने वाली सबसे बड़ी पार्टी अब कमजोर होती जा रही है क्योंकि अब अन्य पार्टियां भी उसी खेल को खेल रही है जिसको वर्षों से वो अकेली खेलती आई है !
आजादी के बाद से आज तक आप नजर डालेंगे तो पायेंगे कि जिस किसी भी पार्टी नें किसी भी प्रकार का तुस्टीकरण का खेल खेला है उसमें वो सफल रही है और उनको तुस्टीकरण के इस खेल ने अंत में सता तक पहुंचाया है और यही कारण है आज कोई भी पार्टी इस तुस्टीकरण के मौह से बच नहीं पा रही है ! इसी का परिणाम है कि आज राज ठाकरे जैसे लोग भी उसी खेल में उतर रहे हैं जिसको कभी शिवसेना नें शुरू किया था और शिवसेना को कमजोर करने के लिए वहाँ की सतारूढ़ पार्टी द्वारा उसको बढ़ावा दिया जा रहा है लेकिन हर तुस्टीकरण का परिणाम तो एक भारतीय को हि भुगतना पड़ता है और भुगत भी रहा है लेकिन अफ़सोस इस बात का है कि इस तुस्टीकरण के खेल को परिणाम भुगतने वाला वो भारतीय हि नहीं समझ पाता है और जब तक हर भारतीय इस खेल को नहीं समझेगा तब तक यह खेल बंद नहीं होगा !!
15 टिप्पणियां :
तुष्ठिकरण की इस राजनीति ने ही तो देश का बेड़ा गरक कर दिया। अब बांग्लादेश की हाल की घटनाये ही ले लीजिये , चरमपंथी जमात ए इस्लामी के कार्यकर्ताओं द्वारा देश के विभिन्न भागों में हिन्दुओं पर किसबड़े पैमाने पर हमले किये जा रहे है। जमात नेता दिलवर हुसैन सैयदी को पिछले सप्ताह युद्ध अपराध पंचाट द्वारा मृत्युदंड दिये जाने के बाद से इस संगठन ने हिन्दुओं के खिलाफ हमले किये और उनके घरों तथा ७ मंदिरों को जलाया लेकिन क्या मजाल कि यहाँ दानिश कार्टून, असैम में बंगलादेशी घुसपैथियों पर हमले के विरोध में छाती पीटने वाला कोई नेता या संगठन इसके भी खिलाफ आवाज उठाता।
सही लिखा आपने,आभार।
एक एक बात सही कही है आपने .आभार सौतेली माँ की ही बुराई :सौतेले बाप का जिक्र नहीं आज की मांग यही मोहपाश को छोड़ सही रास्ता दिखाएँ .
गंभीर समस्या पर सामयिक और सटीक आलेख...बहुत बहुत बधाई...
सटीक लेख
latest post होली
सामायिक सटीक आलेख,,,,
Recent post: रंग,
आभार !!
आभार !!
आभार !!
यह एक गम्भीर समस्या है,बहुत ही सार्थक आलेख,धन्यबाद.
आभार !!
आभार !!!
आभार !!!
सब मदारी बने जनता का तमाशा बनाए हैं - पर जन की अपनी कमज़ोरी भी इसका कारण है.
सही कहा है आपने !!
आभार !!
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