रविवार, 8 सितंबर 2013

तुस्टीकरण का यह खेल कहाँ तक ले जाएगा !!

उत्तरप्रदेश में जहाँ तक बसपा का शासन रहता है तब तक एक भी साम्प्रदायिक दंगे की वारदात नहीं होती है और जब चुनावों के बाद सपा की सरकार बनती है तो वहाँ अचानक से एक के बाद एक साम्प्रदायिक दंगे होना शुरू हो जाते हैं ! यह नहीं माना जा सकता कि ये इतफाक है कि सरकार बदलनें के बाद से ही ऐसी घटनाएं हो रही है बल्कि ऐसा लग रहा है कि शासन के सरंक्षण में इस तरह की घटनाओं को अंजाम दिलवाकर वोट बेंक का ध्रुवीकरण किया जा रहा है ! वही लोग हैं और वही प्रशासन है और बदलें है तो केवल शासन करनें वाले तो फिर दोष तो शासन करनें वालों का ही दिखाई दे रहा है ! 

यह इतफाक नहीं हो सकता कि मार्च २०१२ में सपा सरकार के शासन सँभालने के बाद से अब तक तक़रीबन ३५ से ज्यादा साम्प्रदायिक हिंसा की वारदातें हो चुकी है जिसका जिक्र मैनें अपनें अग्रलिखित आलेख "दंगो का दर्द क्या किसी को पार्टियों की सरकारें देखकर होता है " में भी कर चूका हूँ और अब मुज्जफरनगर का नाम भी उसमें जुड़ चूका है ! इस तरह एक के बाद एक हो रही घटनाओं के बाद भी क्या यह माना जाना चाहिए कि ये सब बिना सोची समझी साजिस के हो रहा है ! मेरा मन तो यह कतई मानने को तैयार नहीं है और मुझे तो साफ़ साफ़ लग रहा है कि यह सब एक सुनियोजित तरीके से किया जा रहा है ! तुस्टीकरण का खेल खुलकर खेला जा रहा है और जब सरकार खुद उसमें शामिल हो तो रोकनें वाला कौन है !

वैसे एक बात यहाँ और गौर करनें वाली है वो यह है कि आजम खान की हैसियत इस सरकार में उच्च दर्जे की है और किसी मुद्दे पर मुख्यमंत्री का बयान आये या ना आये लेकिन आजम खान का बयान जरुर आएगा ! और उनके बयानों में तुस्टीकरण का पुट साफ़ नजर आएगा ! ये वही आजम खान है जिन्होनें कभी भारत माता को डायन कहा था ! वैसे देखा जाए तो उतरप्रदेश में तुस्टीकरण की शुरुआत तो चुनावों के समय ही हो गयी थी और कांग्रेस और सपा में इसी तुस्टीकरण की होड़ मची हुयी थी जिसके कारण दोनों पार्टियां बयानबाजी में सब कुछ भूल सी गयी और कांग्रेसी के केन्द्रीय मंत्री को तो चुनाव आयोग को जबाब तक देना पड़ा था ! लेकिन इस खेल में बाजी सपा मारकर ले गयी ! 

शुक्रवार, 23 अगस्त 2013

राजनितिक नफ़ा नुकशान के हिसाब से विवाद पैदा किया जा रहा है !!

विश्व हिंदू परिषद और राम मंदिर जन्मभूमि आंदोलन से जुड़े हुए संतो द्वारा उद्घोषित ८४ कोसी परिक्रमा को लेकर उतरप्रदेश सरकार और संतों के बीच टकराव की जो स्थति बन रही है वो निश्चय ही दुखद: और निराशाजनक है ! इस तरह से विवाद पैदा करके जहाँ एक और राजनितिक फायदे के लिए कदम उठाये जा रहें हैं वहीँ दूसरी तरफ लगातार उतरप्रदेश के साम्प्रदायिक सद्भाव को भी नुकशान पहुंचाया जा रहा है ! जिसका परिणाम कतई अच्छा मिलनें वाला नहीं है !

उतरप्रदेश की समाजवादी पार्टी की सरकार अपनें गठन के बाद से ही उतरप्रदेश में साम्प्रदायिक सद्भाव को बनाए रखनें में नाकाम रही है और उस पर मुस्लिम तुस्टीकरण के आरोप लगातार लगते रहें हैं !  उतरप्रदेश में लगातार हुए दंगों से उसकी नाकामी साफ़ दिखाई पड़ रही है जिनका जिक्र मैनें अपनें पिछले आलेख "अखिलेश सरकार अपनीं विफलताओं को तुस्टीकरण की आड़ में छुपाना चाहती है " में भी किया था ! हालांकि ऐसा नहीं है कि इस यात्रा को लेकर उँगलियाँ वीएचपी की तरफ नहीं उठ रही है उंगलियां उसकी तरफ भी उठ रही है और उसके निर्णय के पीछे भी भाजपा का राजनितिक फायदा देखा जा रहा है ! सपा और भाजपा के वोटबेंक ध्रुवीकरण के तौर पर इस यात्रा का इस्तेमाल किया जा रहा है लेकिन इससे सन्देश गलत जा रहा है !

जहाँ तक मेरा मानना है उतरप्रदेश सरकार को इस यात्रा पर रोक नहीं लगानी चाहिए थी जिसके कारण ये यात्रा ना तो विवादित होती और ना ही इस तरह से सुर्ख़ियों में आती ! लेकिन यहाँ उतरप्रदेश सरकार नें अपने फायदे को आगे रखा और इस यात्रा पर रोक लगानें की घोषणा करने के साथ ही उन छ: जिलों में धारा १४४ लगाकर वीएचपी नेताओं की धरपकड करनें में लग गयी ! देश के अन्य भागों से इन धार्मिक स्थलों के लिए धार्मिक यात्रा पर आये लोगों को भी २४ जनवरी से पहले इन स्थानों से वापिस चले जाने के निर्देश जारी कर दिए गए ! उतरप्रदेश सरकार द्वारा यात्रा को रोकनें के लिए जिस तरह से भारी मात्रा में सुरक्षाबलों की तैनाती की गयी है उतनें सुरक्षाबलों की जरुरत तो यात्रा होती तो भी उसकी सुरक्षा व्यवस्था संभालने में भी नहीं लगती !

रविवार, 10 मार्च 2013

दरगाह दीवान भी भारत सरकार से तो अच्छे हैं !!


पाकिस्तान के प्रधानमंत्री कि ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती कि दरगाह पर जियारत करने को लेकर की गयी यात्रा खासी विवादास्पद रही और पाकिस्तान नें भारत के साथ जिस तरह का व्यवहार किया और जिस तरह से पाकिस्तानी सेना के द्वारा दो भारतीय सैनिकों के बेरहमी से सिर काटकर उनको शहीद किया गया था और उस पर पाकिस्तान कि सरकार नें किसी तरह कि कोई कारवाई नहीं की ! उसके बाद पाकिस्तानी प्रधानमंत्री का भारत दौरे का विरोध होना अवश्यम्भावी था !

भारत सरकार का ढुलमुल रवैया हर बार की तरह इस बार भी दिखाई दिया और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री का यह निजी दौरा होने के बावजूद भारतीय विदेश मंत्री का वहाँ जाना और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के भोज में शामिल होना भारत सरकार के रवैये पर कई तरह के प्रश्नचिन्ह लगा रहा है ! अगर यह पाकिस्तानी प्रधानमंत्री का निजी दौरा था तो किसी भी भारतीय मंत्री को वहाँ जाने कि क्या आवश्यकता थी ! वो भी उस हालत में जब हर भारतवासी के सीने में पाकिस्तानी सेना द्वारा दिए गए घाव नासूर कि तरह चुभ रहें है !

मंगलवार, 5 मार्च 2013

तुष्टीकरण के बहाने राष्ट्रीय एकता को चुनौती दी जा रही है !!

तुस्टीकरण चाहे किसी भी प्रकार का भी हो वो देश हित में तो कतई नहीं कहा जा सकता है ! अब वो चाहे सत्ता,धर्म,जाति,भाषा और प्रांत में से किसी का भी हो लेकिन अतंत तो उसके कारण देश हि कमजोर होता है और देशवाशियों के बीच वैमनस्यता के बीज पनपते जाते हैं जिसका परिणाम आगे जाकर इतना भयावह हो सकता है कि देश के टुकड़े भी करवा सकता है ! यह भी नहीं है कि तुस्टीकरण का यह खेल नया है ! नया भी नहीं है बल्कि सालों से इसी खेल को दोहराया जाता है !

सताधारी लोग सता का तुस्टीकरण अपनी हि जमात के लोगों को बचाने के लिए रोज करते देखे जा सकते हैं ! वोटों के लिए धर्म के नाम पर तुस्टीकरण भी देश की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी समेत कई छोटी बड़ी सभी पार्टियां आजादी के बाद से करती आई है और आज भी कर रही है ! भाषा के नाम पर भी तुस्टीकरण का खेल राजनैतिक पार्टियों द्वारा देश में खेला गया जिसके परिणामस्वरूप हिंदी को आज भी आधिकारिक रूप से राष्ट्र भाषा का दर्जा अभी तक नहीं मिल पाया है ! प्रांतवाद के तुस्टीकरण का खेल भी वोटों के लिए आज हमारे देश में खेला जा रहा है !

हर प्रकार के तुस्टीकरण के पीछे राजनैतिक पार्टियां हि होती है और मकसद वोटों के जरिये सता तक पहुंचना हि होता है लेकिन अन्त्गोवा उसका दुष्परिणाम समाज के हर वर्ग को भुगतना पड़ता है ! और जो लोग तुस्टीकरण के इस खेल के खिलाड़ी होते हैं वो हमेशा फायदे में हि रहते हैं ! धर्म के नाम पर तुष्टिकरण करने वाली पार्टियां इसी तुस्टीकरण के सहारे सता तक पहुँचती है और इसीलिए आज हर पार्टी धार्मिक तुस्टीकरण का खेल खेलती है और यही कारण है कि इस खेल में एकछत्र दबदबा रखने वाली सबसे बड़ी पार्टी अब कमजोर होती जा रही है क्योंकि अब अन्य पार्टियां भी उसी खेल को खेल रही है जिसको वर्षों से वो अकेली खेलती आई है !