शुक्रवार, 12 अप्रैल 2013

सुचना माध्यमों (media ) का नमो नम: और रागा गान !!

आजकल सुचना माध्यमों में जिस बात पर सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है वो  नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनने को लेकर है ! समाचार चैंनल पुरे दिन इन दोनों से जुडी छोटी से छोटी बातों को दिखा रहे हैं और उन्ही बातों को लेकर नयी बहस शुरू कर देते हैं ! और उन्ही बातों पर नई  बयानबाजी शुरू हो जाती है जिसके कारण मीडिया को मसाला मिलता रहता है और मीडिया तो चाहता भी यही है कि उसे बैठे बिठाए मुद्दे मिलते रहे और उन्हें वो चक्करघिन्नी की तरह घुमाता रहे ! दरअसल इसको मीडिया ही शुरू करता है ,हवा देता है और अंतिम निष्कर्ष भी वो ही निकालता है ! लेकिन इसका फायदा मीडिया को यह होता है कि उसको समाचारों के लिए भागदौड़ नहीं करनी पड़ती है ! लेकिन नुकशान जनता को होता है और इस तरह कि चक्करघिन्नी कि तरह चलने वाले समाचारों के कारण असल मुद्दे कहीं पीछे छुट जाते हैं !!

हमारे सुचना माध्यम एक ऐसी सुलभ मानसिकता से ग्रसित हो गए हैं जिसके तहत उनका पूरा जोर उन्ही इलाकों के आस पास ही ज्यादा रहता है जहां पर उनके स्टूडियो होते हैं ! और इसी मानसिकता के चलते आज इलेक्ट्रोनिक मीडिया के लिए दिल्ली और इसके आसपास के इलाके ही सम्पूर्ण भारत में तब्दील हो गए हैं और शेष भारत जैसे उनके लिए कोई मायने ही नहीं रखता है ! इलेक्ट्रोनिक मीडिया कि इसी मानसिकता का  प्रभाव यह हुआ कि आज मीडिया के पास अपार साधन होते हुए भी वो उन इलाकों से कट गया जहां पर देश कि आबादी का महत्वपूर्ण हिस्सा निवास करता है ! इसके अलावा विकट परिस्थतियों वाले सुदूर इलाके तो जैसे मीडिया के लिए विदेशों से ज्यादा दूर हो गए हैं ! देश के सीमान्त इलाकों में मीडिया कि पहुँच की तो आप कल्पना भी नहीं कर सकते हैं !

इसी तरह कुछ चुनिन्दा क्षेत्र से जुड़े लोग ही मीडिया के लिए पसंदीदा रह गए हैं जिनमें राजनीतिज्ञ उसके लिए सबसे पसंदीदा क्षेत्र है और उसके बाद उधोगपतियों को मीडिया वरीयता देता है ! किसान,मजदुर आदि तो उसकी वरीयता सूची में तो क्या सामान्य सूची में भी शामिल नहीं है जिसके कारण इनसे जुडी हुयी बातें मीडिया के लिए जैसे कोई बात होती ही नहीं है ! इसी का परिणाम है कि हमारा मीडिया उधोगों कि प्रगति को ही देश के विकास का पैमाना मान लेता है लेकिन किसानों कि बदहाली को लेकर वो विकास के इस मौजूदा अपने ही बनाए हुए विकास के पैमाने पर कोई प्रश्नचिन्ह नहीं लगाता है ! जिसका सीधा कारण यह है कि उसको पता है कि विकास के इस पैमाने पर प्रश्नचिन्ह लगाने से उन पर सीधा प्रश्नचिन्ह लग जाएगा जो उसकी वरीयता सूचि में सबसे ऊपर है !


इन सब बातों का हल मीडिया को नजर आता है वो है इस तरह के मुद्दे जिनसे उसे दिखाने के लिए मसाला भी मिल जाए और किसी भी तरह से उसकी सोच पर भी कोई फर्क नहीं पड़े और इसी सोच के तहत ही तो मीडिया लगातार ऐसे ही मुद्दे बनाता रहता है ! अभी राहुल बनाम मोदी का है तो कल कोई और मुद्दा आ जाएगा लेकिन उसके लिए वंचित और बदहाल तबके से जुड़े कोई मुद्दे बहस के लिए उपलब्ध नहीं होंगे !

11 टिप्‍पणियां :

मन के - मनके ने कहा…

सूचने के क्षेत्र में हो रही,अनियमितता को आपने
खुलकर खोला है,वैसे यह विषय सर्वविदित है,बिकती
हर वो चीज है जो बेचने योग्य हो न हो पर बेची जा सके.

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

जब चैनल वालो को शहरों में मसाला दिखाने के लिए मिल जाता है,तो विकट परिस्थितियों वाले सुदूर गावों में जाने की क्या जरूरत है बहुत बढ़िया सटीक प्रस्तुति,आभार पूरण जी,,
Recent Post : अमन के लिए.

लोकेन्द्र सिंह ने कहा…

अति सुंदर आलेख...

Rajendra kumar ने कहा…

सच कहूँ तो बोर कर देते है,बेहतरीन प्रेरक आलेख.

Unknown ने कहा…

सुन्दर आलेख।

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

सादर आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आभार !!

HARSHVARDHAN ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति। धन्यवाद।

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