शुक्रवार, 7 जून 2013

मोदीमय होती भाजपा में अलग थलग पड़ते आडवाणी !!

भाजपा में जहां नरेंद्र मोदी जी की ताकत लगातार बढती जा रही है वहीँ भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व भाजपा अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी जी अलग थलग पड़ते जा रहे हैं ! पिछले दिनों शिवराजसिंह चौहान के पक्ष में दिए गए अपने बयानों को लेकर आडवाणी जी किरकिरी झेल ही रहे थे वहीँ उपचुनावों के आये नतीजों नें मोदी जी को एक सम्बल प्रादन किया वहीँ आडवाणी जी को नेपथ्य में धकेलने का काम किया है ! एक तरफ शिवराजसिंह चौहान नें उनके बयानों का अपने तौर पर खंडन किया तो दूसरी तरफ गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पारिकर जी नें यह कहकर कि "मोदी देश के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता है " गोवा में होने वाली पार्टी कार्यकारिणी की बैठक से पहले मोदी के पक्ष में हवा बनाने का काम ही किया है !

आडवाणी जी हवा का रुख भांपने में नाकाम साबित हुए हैं और अभी भी उनके मन में कहीं ना कहीं खुद प्रधानमन्त्री बनने अथवा किसी अपने चहेते को प्रधानमंत्री बनवाने की इच्छा बलवती है ! और आडवाणी जी को इस राह में मोदी सबसे बड़े गति अवरोधक लग रहे हैं इसीलिए उनको मोदी का बढ़ता कद रास नहीं आ रहा है ! लेकिन अब वे भाजपा में अकेले ऐसे नेता बचे हैं जो यह सोचते हैं कि वो मोदी को दूर रख पायेंगे और नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनने से रोक लेंगे ! जबकि भाजपा के बाकी सब नेता अब ये मान चुके है कि अब मोदी को रोकना नामुमकिन है और यही कारण है कि आडवाणी जी को छोडकर किसी अन्य बड़े नेता का अब मोदी विरोधी रवैया देखने को काफी समय से नहीं मिला है !

वैसे भी देखा जाए तो आडवाणी जी २००९ में एनडीए की और से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार थे और यूपीए सरकार की तमाम नाकामियों के बावजूद देश की जनता नें उन पर भरोसा नहीं किया था और सत्ता फिर यूपीए को ही मिली थी ! उसके बाद तो आडवाणी जी को खुद ही अपनें मन से ऐसी किसी इच्छा को किनारे कर देना चाहिए था लेकिन वो ऐसा नहीं कर पाए हैं ! अब जिस तरह से तेजी से पार्टी के भीतर की स्थतियाँ मोदी जी के पक्ष में होती जा रही है और तमाम सर्वेक्षणों में जिस तरह से मोदी जी की लोकप्रियता प्रदर्शित हो रही है ! उसके बाद अब आडवाणी जी के पास इस सच्चाई को स्वीकार करने के सिवा कोई रास्ता भी नहीं बचा है !

मोदी जी को लेकर जेडीयू का विरोध अपनी जगह पर है लेकिन असल में भाजपा अपने भीतर ही अभी तक बड़े नेताओं के इस तरह के रवैये के कारण ही मोदी जी के मामले में अनिर्णय कि स्थति में है ! लेकिन उसके बावजूद भी मोदी जी लगातार भाजपा में स्वीकार्य होते जा रहे हैं ! अब देखना ये होगा कि भाजपा की कार्यकारिणी की आगामी होने वाली बैठक में क्या कुछ निकल कर आता है !  

12 टिप्‍पणियां :

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बिल्कुस सही...
सुन्दर प्रस्तुति..।
साझा करने के लिए आभार...!

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

आदमी पर्फ़ार्मेंस ही उसकी काबिलियत साबित करता है. इस मामले में मोदीजी काफ़ी आगे हैं.

रामराम.

Unknown ने कहा…

सही लिखा आपने पूरण जी,अच्छा आलेख आभार।

Shalini kaushik ने कहा…

vaise bhi bhajpa me bade bujurgon se fayda लेने की ही रीत hai aur fayda neembu की tarah nichodkar door faink diya jata hai isliye ab advani ke sath bhi vahi hoga jo atal ji ke sath hua .

अज़ीज़ जौनपुरी ने कहा…

सुंदर रचना ,बढिया जानकारी

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

सादर आभार आदरणीय !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

सही कहा है ताऊ !!
राम राम, आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

शालिनी जी , बुजुर्ग लोगों को भी अपनी इज्जत का ख्याल रहना चाहिए और ससम्मान आगे का रास्ता दूसरों के लिए भी खुला छोडना चाहिए ! वैसे ये केवल भाजपा में ही नहीं हो रहा है बल्कि इसके उदाहरण आपको कांग्रेस में भी मिल जायेंगे ! आपको याद नहीं आ रहा हो तो में बता दूँ कि सीताराम केसरी और कुंवर नटवरसिंह सिंह के उदाहरण देख लीजिए ! वही सीताराम केसरी जो कांग्रेस के अध्यक्ष और कोषाध्यक्ष रह चुके थे और उनके कोषाध्यक्ष रहते हुए ये कहा जाता था कि ना खाता ना बही जो केसरी कहे वही सही और बाद में सोनिया गांधी को अध्यक्ष बनाने के लिए सीताराम केसरी को कांग्रेस से इस कदर बेदखल किया गया कि उनके अंतिम संस्कार में भी किसी बड़े कांग्रेसी को जाना तक गवारा नहीं हुआ ! उसी तरह कुंवर नटवर सिंह के मार्फ़त जब तेल कूपन घोटाले की आंच सोनिया तक पहुँचने लगी तो उनको भी रुसवा कर दिया जो आज कहाँ है किसी को ही पता हो ! हालांकि कभी विदेशी मामलों में उनकी राय को मीडिया वाले दिखाकर उनके होने का अहसास तो कराते हैं !!
आभार !!

रविकर ने कहा…

बढ़िया है भाई जी-
आभार आपका-

dr.mahendrag ने कहा…

आडवानी को खुद ही समझदारी से सरंक्षक की भूमिका ले लेनी चाहिए.अब तक नेताओं की जो दूसरी पंक्ति बीजे पी में होनी चाहिए त५हि,वह नहीं बनी,अब यदि ऐसा हो रहा है तो उन्हें इसका स्वागत करना चाहिए.और ऐसा नहीं करते हैं , तो हाशिये में जाने को भी तैयार रहना चाहिए.जब बच्चे बड़े हो जाते हैं तो मातापिता का यही फर्ज होता है कि वे उनकी भी बात सुने,उन्हें अपने पांवों पर खड़ा होने दे,पर अब भी अडवाणी ऐसा अड़ियल रुख अपनाते हैं तो पार्टी को नुकसान ही पंहुचा रहे है,उस से भी ज्यादा खुद को.वे किसी अपने चेले को बैठना चाह रहें है तो यह भी गलत होगा..पार्टी का लोकतंत्र कहाँ रह जायेगा.

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आपका कहना शतप्रतिशत सही है आदरणीय !!
सादर आभार !!