सोमवार, 28 नवंबर 2016

केशलेश पालिसी अनिवार्य हो या एच्छिक !!

नोटबंदी पर सरकार को व्यापक जनसमर्थन मिला और यह कोई साधारण बात नहीं थी कि इतने बड़े फैसले पर देश की जनता प्रधानमंत्री के साथ खड़ी हो गयी ! लालबहादुर शास्त्री जी के बाद मोदी जी पहले प्रधानमंत्री होंगे जिन्होनें देश से एक अपील की और जनता साथ खड़ी हो गयी ! लेकिन मुझे अब ये समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर मोदी सरकार इस समर्थन को गंवाना क्यों चाह रही है ! आखिर मोदी सरकार इतनी हड़बड़ी में क्यों है कि नोटबंदी की समस्या से जनता उबर ही नहीं पायी है और सरकार ई वालेट,केशलेश इकोनोमी और लेशकेश इकोनोमी को लागू करनें की दिशा में आगे बढ़ने लग गयी है !

अगर सरकार केशलेश इकोनोमी को प्रोत्साहित करती और लोग उससे अपनी इच्छा से जुड़ते चले जाते तब तो ये भी स्वागत योग्य बात होती लेकिन सरकार तो इसको जबरदस्ती लागू करवाना चाह रही है बिना इस बात की परवाह किये कि जनता इसके लिए तैयार है भी या नहीं ! हालांकि मोदी जी नें सीधे जनता से कभी यह नहीं कहा कि वो इसको अनिवार्य रूप से लागू कर रहें हैं लेकिन उन्ही की सरकार के कई मंत्रालयों नें इस तरह के फरमान जारी कर दिए ! अब सवाल उठता है कि क्या केवल सरकारी फरमानों से केशलेश अर्थव्यवस्था लागू हो जायेगी !

प्रधानमंत्री जी नें कल कहा था कि ई वालेट बस व्हाट्सअप चलाने जैसा ही है तो प्रधानमंत्रीजी अभी तक तो देश में कई लोगों को तो यही पता नहीं है कि मोबाइल कैसे चलता है तो व्हाट्सअप क्या होता है उनको यह जानकारी कैसे होगी ! हाँ यह अलग बात है कि आप ऑनलाइन जुडना ज्यादा पसंद करते हैं और लोग आपसे ऑनलाइन जुड़ते भीं है तो आपनें मान लिया हो कि सभी केशलेश लेनदेन कर सकते हैं ! वैसे प्रधानमंत्रीजी ई वालेट का उपयोग करनें के लिए इतना तो जरुरी ही होगा कि वो लिखा हुआ पढ़ पाए तो पहले पता तो कीजिये देश में कितनें निरक्षर हैं !

शुक्रवार, 18 जुलाई 2014

मोदी सरकार विवादित मुद्दों पर रक्षात्मक क्यों !!

चुनावी घोषणापत्र में मुद्दे इसीलिए शामिल किये जाते हैं ताकि जनता को यह पता लग सके कि उस पार्टी की सरकार बनी तो उसकी कार्ययोजना क्या होगी और उन्ही मुद्दों के आधार पर ही चुनावी सभाओं में भाषण दिए जाते हैं ! लेकिन क्या हकीकत में सत्ता में आने के बाद उन वादों और चुनावी घोषणापत्रों में शामिल मुद्दों का कोई महत्व सत्तारूढ़ पार्टी के लिए रह भी जाता है ! अगर मोदी सरकार के इस शुरूआती दौर को देखें तो सबकुछ उल्टा उल्टा सा ही दिखाई दे रहा है ! वादे और मुद्दे कुछ और थे और सरकार का रवैया कुछ और दिखा रहा है ! 

जम्मू काश्मीर से धारा ३७० को हटाने के पक्ष में भाजपा सदा से रही है और ये मुद्दा भाजपा के हर घोषणापत्र में शामिल रहा है ! वाजपेयी सरकार के समय में इसको नहीं हटा पानें को लेकर भाजपा हमेशा यही दलील देती रही कि गटबंधन की मजबूरियों के कारण उसको इस मुद्दे को ठन्डे बस्ते में डालना पड़ा लेकिन अब भी उसके लिए ये मुद्दा है ! लेकिन अब जब भाजपा फिर पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में है तो उसको ये क्यों कहना पड़ रहा है कि धारा ३७० को हटाने का अभी कोई इरादा नहीं है ! जब प्रधानमंत्री कार्यालय के राज्य मंत्री जितेन्द्रसिंह नें धारा ३७० को हटाने को लेकर बयान दिया था तभी सरकार नें उस बयान को उनका निजी बयान कहकर पीछा छुडाया था और अब गृह राज्यमंत्री किजिजू भी कह रहें हैं कि धारा ३७० को हटाने का सरकार का कोई इरादा नहीं है !

मोदी जी नें अपनें चुनावी भाषणों में पिंक रिवोल्यूशन के नाम पर कत्लखानों को मिलने वाली सब्सिडी को लेकर तत्कालीन मनमोहन सरकार और सबसे ज्यादा सत्तासीन पार्टी कांग्रेस पर जबरदस्त हमला बोला था ! लेकिन हैरानी की बात है कि जब मोदी सरकार का खुद का बजट संसद में प्रस्तुत हुआ तो कत्लखानों को लेकर वही नीति अपनाई गयी जिसकी आलोचना करते हुए मोदी जी सत्ता तक पहुंचे थे ! वैसे भी गौहत्या भाजपा का सदैव मुद्दा रहा है फिर क्या कारण था कि मोदी सरकार को उन्ही नीतियों पर आगे बढ़ना पड़ रहा है जिन को लेकर वो कांग्रेस पर हमेशा से आक्रामक रहे हैं ! 

मंगलवार, 20 मई 2014

नई सरकार की राह आसान तो कतई नहीं है !!

नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में नयी सरकार २६ मई को शपथ लेगी लेकिन जिस दिन से नई सरकार शपथ लेगी उसी दिन से उसके लिए चुनौतियां भी शुरू हो जायेगी ! सभी वर्गों और सभी लोगों के लिए मोदी आकांक्षाओं के केन्द्र बन गए हैं जिसमें मोदी जी की खुद की भूमिका भी है क्योंकि उन्होंने ही लोगों को अपनी चुनावी सभाओं में बहुतेरे सपने दिखाए थे ! जिनको पूरा कर पाना मोदीजी के लिए आसान तो कतई नहीं होगा !

नई सरकार के सामने पिछले कुछ समय से खराब अर्थव्यवस्था को पटरी पर लानें की चुनौती होगी ही साथ में विकास को तेजी प्रदान करनें की चुनौती से भी उसे जूझना पड़ेगा ! युवाओं को रोजगार प्रदान करनें का रास्ता भी नयी सरकार को बनाना होगा ! भ्रस्टाचार पर लगाम लगाने की आशा भी लोग मोदी जी से कर रहें हैं ! मोदी जी नें जो जनाकांक्षाएं लोगों के भीतर जगाई है उनको पूरा करना होगा और ये सब आकांक्षाएं मोदीजी की ही देन है जिनके सहारे वे सत्ता तक तो पहुँच गए लेकिन उनकी असली चुनौती अब ही शुरू होगी ! कालाधन वापिस लाने का वादा भी मोदी जी कर चुके हैं अब देखना ये है कि वो अपनें वादों पर खरे उतरते हैं !

महंगाई वो मुद्दा है जिस पर जनता ज्यादा इन्तजार के मुड में कतई नहीं है और रातों रात महंगाई से निजात दिलाने की आशा भी नहीं की जा सकती लेकिन जनता को तो इससे कोई सरोकार नहीं है ! वो तो हर हाल में महंगाई से निजात चाहती है ! जनता को महंगाई से निजात दिलाने के लिए मोदीजी की सरकार को पहले दिन से ही जुट जाना होगा और ना केवल जुट जाना होगा बल्कि अपेक्षित परिणाम भी लाने होंगे ! जो आसान तो कतई नहीं है !

शनिवार, 17 मई 2014

"अच्छे दिन आने वाले है" स्लोगन का जादू खूब चला !!

"अच्छे दिन आने वाले है" स्लोगन का जादू इस बार लोकसभा चुनावों में जमकर चला है जिसका परिणाम सबके सामने हैं ! भाजपा अकेले दम पर स्पष्ट बहुमत को पार कर गयी और एनडीए सवा तीन सौ सीटों को पार कर गया ! मोदी के नेतृत्व में मिले इस जनादेश का विश्लेषण तो राजनैतिक पंडित अगले कुछ दिनों तक करते रहेंगे लेकिन इतना तो मानना ही पड़ेगा कि जनता ने  मोदी पर बेतहाशा भरोसा किया है ! यही कारण है कि आजादी के बाद पहली बार किसी गैर कांग्रेसी पार्टी को जबरदस्त बहुमत दिया है और इस तरह का स्पष्ट बहुमत भी कांग्रेस तब तक ही पाती रही है जब तक उसके सामने मजबूत चुनौती देनें लायक पार्टियां नहीं थी और जब अन्य पार्टियां मजबूती के साथ उभरी तो कांग्रेस को भी स्पष्ट बहुमत के लाले पड़ गए !

इस बार जनता नें खुलकर कई मसलों पर स्पष्ट राय दे दी जिसको अगर राजनैतिक पार्टियां समझ जाए तो उनके लिए भी अच्छा ही होगा ! तुस्टीकरण की राजनीति के सहारे सत्ता तक पहुँचने वाली पार्टियों पर लगाम लगाकर उनको स्पष्ट सन्देश दे दिया कि उनको तुस्टीकरण के सहारे साधना बंद कीजिये ! उनकी पसंद तुस्टीकरण की राजनीति नहीं बल्कि विकास की राजनीति है ! यही कारण है कि छद्म धर्मनिरपेक्षता के सहारे सत्ता तक पहुँचने का खवाब दखने वाली पार्टियों के पर जनता नें कुतर दिए ! उनको जनता नें इस लायक ही नहीं छोड़ा कि वो ऐसी कोई कोशिश ही कर सके !

गटबंधन की मजबूरियों का गलत फायदा उठाने वाली पार्टियों को भी जनता नें उनकी औकात दिखा दी ! डीएमके, सपा,बसपा ,राजद जैसी पार्टियों को मतदाताओं नें स्पष्ट सन्देश दे दिया कि वे उनको मुर्ख समझने की भूल कतई ना करें ! अगर उनके पास मजबूत विकल्प होगा तो वो उनको किनारे लगाने में कोई कोताही नहीं बरतेंगे !  उसने ऐसी सभी पार्टियों को इस बार उन सभी पार्टियों को सबक सिखाया है जो केन्द्र में तो गलबहियां डालकर सत्तासुख भोगते हैं और राज्यों में लड़ने का नाटक करते हैं ! अबकी बार जनता उनकी असलियत समझ गयी और उनको उस लायक ही नहीं छोड़ा कि वो जनता को मुर्ख बनाने की कोई कोशिश भी कर सके ! 

शनिवार, 19 अक्तूबर 2013

कालेधन पर मोदी का सवाल और कांग्रेस का जबाब !!

कल बेंगलुरु से नरेंद्र मोदी ने सरकार द्वारा सपनें के आधार पर खजाने की खुदाई करवाने को आधार बनाकर सरकार पर निशाना साधा और उसके बाद जो कांग्रेस का जबाब आया वो वाकई हास्यास्पद ही कहा जाएगा ! मोदी नें कहा था कि सरकार एक आदमी के सपनें को आधार बनाकर खुदाई करवा रही है लेकिन इससे कई गुना ज्यादा खजाना तो स्विस बैंकों में जमा है जिसको लानें में सरकार की दिलचस्पी क्यों नहीं दिखा रही है ! उनका कहना सत्य भी है क्योंकि यह खजाना तो ३००० करोड का ही है जबकि कालाधन लाखों करोड का है !

जिसके जबाब में कांग्रेस प्रवक्ता रेणुका चौधरी यह कहना कि "कालेधन को लेकर नरेंद्र मोदी के पास अगर जानकारियाँ है तो वो सरकार को देनी चाहिए ! सरकार उन पर भी कारवाई करेगी " उनको ही हंसी का पात्र बना दिया है और कांग्रेस की वो मंशा भी साफ़ हो गयी जो कालेधन को लेकर पहले भी कई बार जाहिर हो चुकी है ! वैसे रेणुका जी किन जानकारियों की बात कर रही है यह तो उनको बताना ही चाहिए ! तत्कालीन वितमंत्री और वर्तमान राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी द्वारा कालेधन पर स्वेत पत्र लाया जा चूका है क्या उसका कोई महत्व कांग्रेस की नजर में है भी या नहीं ! वैसे भी उसमें कई बातों को गौण कर दिया गया था लेकिन जितनी जानकारियाँ उसमें थी उनके आधार पर कोई कारवाई क्यों नहीं हुयी !

कालेधन का मामला ऐसा तो है नहीं कि यह पहली बार मोदी नें ही उठाया है ! बाबा रामदेव इस मुद्दे पर लगातार २००४ से संघर्षरत है और कई बड़े बड़े आंदोलन सरकार की नाक के निचे दिल्ली में आयोजित कर चुके हैं ! देश भर में घूम घूम कर जनता को बता चुके हैं ! २७ फरवरी २०११ और ४ जून २०११ को दिल्ली में बड़े आंदोलनों को अंजाम दे चुके हैं जिसमें ४ जून वाले आंदोलन पर तो पुलिसिया कारवाई भी हुयी थी ! यह सब कांग्रेस को याद है कि नहीं और क्या उसको यह भी याद नहीं कि उसके चार चार मंत्री इसी कालेधन के मुद्दे पर बाबा रामदेव से बात करनें हवाईअड्डे तक गए थे ! फिर सरकार क्यों सोती रही क्यों नहीं कालेधन वाले मामले पर सरकार गंभीर दिखाई दी !

बुधवार, 17 जुलाई 2013

साम्प्रदायिकता की आड़ में नाकामियों पर पर्दा डालनें की कोशिश !!

मोदी के बयानों पर जिस तरह से बयानबाजी हो रही है उससे लगता है कि साम्प्रदायिकता की आड़ में कांग्रेस अपनी नाकामियों को छुपाना चाहती है ! मोदी जिन मुहावरों और जुमलों का प्रयोग कर रहें हैं उन्ही का सहारा लेकर कोंग्रेस के तमाम नेता उन पर हमलावर हो रहें है ! और उन्ही जुमलों का सहारा लेकर कांग्रेस मुसलमानों के बीच भ्रम फैलाने की कोशिश कर रही है !

मोदी लगातार अपनें बयानों में कांग्रेस पर निशाना साध रहे हैं और उसकी नीतियों पर और यूपीए सरकार की नाकामियों पर बरस रहे हैं लेकिन कांग्रेस उसका जबाब देने की बजाय वो जुमलों के शब्दों को पकड़कर सांप्रदायिक भावनाएं भड़काने की कोशिश कर रही है ! दरअसल कांग्रेस के पास मोदी की बातों के जबाब में कुछ कहनें को है नहीं क्योंकि यूपीए सरकार के माथे पर नाकामियों के इतने दाग लगे हुए है कि उससे कुछ कहते नहीं बन रहा है ! भ्रष्टाचार के इतनें मामले इस सरकार के शासनकाल में हुए है कि अब देश कोंग्रेस की इमानदारी को ही संदिग्ध मानने लग गया है ! हालत यह हो गयी कि सर्वोच्च न्यायालय तक को सरकार पर भरोसा नहीं रहा और टूजी घोटाले और कोयला घोटाले की जांच को अपनी निगरानी में ही करवाना उचित समझा !

घोटालों की जांच करने वाली एजेंसी सीबीआई को सरकार नें पालतू तोते की तरह इस्तेमाल करके उसकी विश्वनीयता को तार तार करनें में कोई कसर नहीं छोड़ी ! सरकार और उसके नेताओं नें केग जैसी सवैधानिक संस्था पर प्रहार करनें और उसकी विश्वनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगाकर उसको कठघरे में खड़ा करनें की कोशिशें की गयी लेकिन जब टूजी पर फैसका सर्वोच्च न्यायालय नें दिया तो केग की रिपोर्ट पर मुहर लग गयी और सरकार की विश्वनीयता और प्रतिष्ठा दोनों रसातल में चली गयी !

शनिवार, 13 जुलाई 2013

नरेंद्र मोदी के बयान पर बेवजह का बवाल !!

समाचार एजेंसी राइटर्स को दिए गए इंटरव्यू को लेकर मीडिया में नरेंद्र मोदी की आलोचना की जा रही है ! और तरह तरह के मंतव्य दिए जा रहे हैं लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या किसी नें उस इंटरव्यू को पढ़ा भी है या महज एक शब्द को ही गलत मानकर उसके अर्थ निकाले जा रहें हैं ! मुझे तो यही लगता है कि जो भी मोदी की आलोचना कर रहें हैं उन्होंने या तो उस इंटरव्यू को पढ़ा नहीं है या फिर वो जानबूझकर उस इंटरव्यू के अर्थ का अनर्थ केवल और केवल इसलिए कर रहें है क्योंकि वो इंटव्यू नरेंद्र मोदी का है !!

वो पूरा इंटरव्यू अंग्रेजी में है और उसको यहाँ जाकर पूरा पढ़ा जा सकता लेकिन इंटरव्यू के जिस हिस्से पर विवाद खड़ा किया गया है उस हिस्से को मै हिंदी में आपके सामनें प्रस्तुत कर रहा हूँ ! जिससे आप खुद पढकर फैसला कर सके कि उसमें क्या गलत है और क्या सही है ! मुझे तो उसमें कुछ गलत नजर नहीं आ रहा है शायद आपकी पारखी नजरें उसमें कुछ गलत खोज सके तो कृपया मुझे भी बताने का कष्ट अवश्य करें !




सोमवार, 17 जून 2013

जेडीयू नें कहीं आत्मघाती कदम तो नहीं उठा लिया है !!

आखिरकार एनडीए से जेडीयू का रिश्ता नितीश कुमार जी की हठधर्मिता की भेंट चढ ही गया ! हालांकि नितीश कुमार जी के तेवरों को देखते हुए यह पहले ही हो जाना चाहिए था लेकिन शरद यादव जी और भाजपा की गटबंधन बनाए रखने कि चाहत नें ही इसे इतने दिनों तक इसको बनाए रखा था ! लेकिन अबकी बार नितीशजी  शरद यादवजी  पर भारी पड़े और अपनी जिद को अंजाम दे ही दिया जिसकी छटपटाहट उनके दिल में पिछले दो सालों से उबाल मार रही थी ! लेकिन क्या ऐसा करके नितीश जी फायदे में रहेंगे या फिर जेडीयू एक बार सिमट जाएगा और राजद फिर से बिहार पर काबिज हो जाएगा !

जेडीयू के एनडीए गटबंधन से बाहर होने से भले ही इसे शुरूआती तौर पर भाजपा के लिए झटका माना जा रहा हो और इसका नुकशान तो भाजपा को भी होगा लेकिन इसकी एक हकीकत ये भी है कि भाजपा को जितना नुकशान होगा उससे कई गुना नुकशान जेडीयू को होगा ! आज की तारीख में नितीश सरकार पर इससे कोई खतरा नहीं हो और अपना कार्यकाल भी यह सरकार पूरा कर ले तो भी नितीश के लिए अग्निपरीक्षा आगामी लोकसभा चुनाव और ढाई साल बाद होने वाले बिहार विधानसभा चुनावों में होगी ! अभी तक नितीश नें भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़े थे तब भी जेडीयू भाजपा गटबंधन को मिलने वाले मतों और राजद लोजपा को मिलने वाले मतों में कोई बहुत बड़ा अंतर नहीं था ! और अब भाजपा के अलग होनें के बाद तो निश्चित रूप से जेडीयू पर राजद भारी पड़ता हुआ दिखाई दे रहा है !

नितीश कुमार जी नें जिन मुस्लिम वोटबैंक को ध्यान में रखकर ये कदम उठाया उसका भी भरोसा नहीं है कि वो भी जेडीयू के पाले में आएगा या नहीं और भाजपा के साथ अगड़ी जातियों का जो वोटबैंक था वो भी हाथ से निकल गया ! इस तरह कहीं जेडीयू कि हालत ना माया मिली ना राम वाली हो जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए ! भाजपा और जेडीयू दोनों के लिए भले ही अलग होना नुकसानदेह हो लेकिन लालू जी के चेहरे पर बैठे बिठाए इस फैसले नें मुस्कान ला दी और उनकी मुस्कान व्यर्थ भी नहीं है क्योंकि इसका असली फायदा तो लालू जी को ही मिलना है ! उनके लिए सत्ता का बनवास खतम होनें के संकेत ये फैसला जो दे रहा है !

बुधवार, 12 जून 2013

आडवाणी जी की शतरंजी चालों में चित हो गयी भाजपा !!

भाजपा में पिछले पांच दिनों में जो घटनाक्रम सामने आया उसनें भाजपा की जगहंसाई करवाने कोई कसर नहीं छोड़ी ! और खासकर लालकृष्ण आडवाणी जी नें तो मानो भाजपा की जगहंसाई का ठान ही राखी थी ! पहले गोवा में कार्यकारिणी की बैठक में नहीं जाना और उसके बाद जिस तरह से इस्तीफे दिए ! मानो आडवाणी जी कह रहे हो कि में तो बदनाम होऊंगा ही लेकिन जितनी बदनामी में भाजपा की कर सकता हूँ उतनी तो करने की कोशिश तो जरुर करूँगा !

इस पुरे घटनाक्रम को देखें तो सबसे ज्यादा किरकिरी भी आडवाणी जी की हुयी और भाजपा के कार्यकर्ताओं के मन में आडवाणी जी के प्रति जो सम्मान पहले था वो अब नहीं रहेगा ! जिसके लिए उत्तरदायी केवल और केवल आडवाणी जी  ही है क्योंकि पिछले पांच दिनों से चले घटनाक्रम में आडवाणी जी का चेहरा एक सुलझे हुए बुजुर्ग नेता के बजाय सत्ता लालसा में डूबे नेता का ही दिखाई दिया ! पार्टी के लोकतंत्र का सम्मान करने कि बजाय आडवाणी जी नें एक अलग और ऐसा रास्ता अपनाया जो पार्टी के अंदरूनी लोकतंत्र के विपरीत जाता था ! आडवाणी जी की अपनी छवि भले ही धूमिल हुयी हो लेकिन क्रमबद्ध चले इस घटनाक्रम से पार्टी की छवि को भी नुकशान तो पहुंचा ही है !

आडवाणी जी को पहले ही पता था कि वो गोवा जाकर भी नरेंद्र मोदी जी को चुनाव प्रचार समिति के अध्यक्ष बनने से रोक नहीं सकते क्योंकि भाजपा के ज्यादातर जनाधार वाले नेता नरेंद्र मोदी जी के पक्ष में थे ! इसीलिए उन्होंने कोपभवन जाने का फैसला किया और मीडिया में बीमारी की बात फैलाकर घर बैठे रहे ! लेकिन फिर भी वो नरेंद्र मोदी जी को चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बनने से रोक नहीं पाए ! तब आडवाणी जी नें अपनी दूसरी चाल का पासा फैंका और चुन चुनकर पदों से इस्तीफे दिए ! जिनको बाद में वापिस भी ले लिया ! और आडवाणी जी अपनी दूसरी चाल में कामयाब रहे !

शुक्रवार, 7 जून 2013

मोदीमय होती भाजपा में अलग थलग पड़ते आडवाणी !!

भाजपा में जहां नरेंद्र मोदी जी की ताकत लगातार बढती जा रही है वहीँ भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व भाजपा अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी जी अलग थलग पड़ते जा रहे हैं ! पिछले दिनों शिवराजसिंह चौहान के पक्ष में दिए गए अपने बयानों को लेकर आडवाणी जी किरकिरी झेल ही रहे थे वहीँ उपचुनावों के आये नतीजों नें मोदी जी को एक सम्बल प्रादन किया वहीँ आडवाणी जी को नेपथ्य में धकेलने का काम किया है ! एक तरफ शिवराजसिंह चौहान नें उनके बयानों का अपने तौर पर खंडन किया तो दूसरी तरफ गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पारिकर जी नें यह कहकर कि "मोदी देश के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता है " गोवा में होने वाली पार्टी कार्यकारिणी की बैठक से पहले मोदी के पक्ष में हवा बनाने का काम ही किया है !

आडवाणी जी हवा का रुख भांपने में नाकाम साबित हुए हैं और अभी भी उनके मन में कहीं ना कहीं खुद प्रधानमन्त्री बनने अथवा किसी अपने चहेते को प्रधानमंत्री बनवाने की इच्छा बलवती है ! और आडवाणी जी को इस राह में मोदी सबसे बड़े गति अवरोधक लग रहे हैं इसीलिए उनको मोदी का बढ़ता कद रास नहीं आ रहा है ! लेकिन अब वे भाजपा में अकेले ऐसे नेता बचे हैं जो यह सोचते हैं कि वो मोदी को दूर रख पायेंगे और नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनने से रोक लेंगे ! जबकि भाजपा के बाकी सब नेता अब ये मान चुके है कि अब मोदी को रोकना नामुमकिन है और यही कारण है कि आडवाणी जी को छोडकर किसी अन्य बड़े नेता का अब मोदी विरोधी रवैया देखने को काफी समय से नहीं मिला है !

वैसे भी देखा जाए तो आडवाणी जी २००९ में एनडीए की और से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार थे और यूपीए सरकार की तमाम नाकामियों के बावजूद देश की जनता नें उन पर भरोसा नहीं किया था और सत्ता फिर यूपीए को ही मिली थी ! उसके बाद तो आडवाणी जी को खुद ही अपनें मन से ऐसी किसी इच्छा को किनारे कर देना चाहिए था लेकिन वो ऐसा नहीं कर पाए हैं ! अब जिस तरह से तेजी से पार्टी के भीतर की स्थतियाँ मोदी जी के पक्ष में होती जा रही है और तमाम सर्वेक्षणों में जिस तरह से मोदी जी की लोकप्रियता प्रदर्शित हो रही है ! उसके बाद अब आडवाणी जी के पास इस सच्चाई को स्वीकार करने के सिवा कोई रास्ता भी नहीं बचा है !