गुरुवार, 6 जून 2013

राजनैतिक पार्टियां आरटी आई से इतनी डरती क्यों है !!

केन्द्रीय सुचना आयोग नें राजनैतिक पार्टियों को सुचना के कानून के अंतर्गत आने का निर्णय सुनाया है ! केन्द्रीय सुचना आयोग का यह एक अच्छा फैसला था जिसका स्वागत सभी को करना चाहिए था लेकिन जिस तरह से सभी पार्टियों नें एक सुर में इसका विरोध करना शुरू किया है ! जिससे यह जाहिर हो गया है कि ये पार्टियां अपने भीतर पारदर्शिता नहीं चाहती है और वो पार्टियों द्वारा किये जाने वाले खर्चे और आमदनी का हिसाब जनता को नहीं देना चाहती है ! 

लोकतांत्रिक प्रक्रिया में यही पार्टियां देश कि नीतियां बनाती है और इनकी नीतियों का देश पर प्रभाव पड़ता है इसलिए जनता को इन पार्टियों के खर्चे और आमदनी जानने का पूरा हक होना चाहिए ! इस फैसले के विरोध में इन पार्टियों का यह कहना बिलकुल गलत है कि "वो कोई सरकारी संस्थान नहीं है जो आरटीआई के दायरे में लाये जाए " वाकई हास्यास्पद है क्योंकि भले ही जाहिर तौर पर राजनैतिक पार्टियां सरकारी संस्थान नहीं हो लेकिन हकीकत यही है कि इनमें से जो भी पार्टी जहां भी सत्ता में रहती है वहाँ के सारी सरकारी संस्थान इन्ही की नीतियों के आधार पर ही तो चलते है ! इसलिए राजनैतिक पार्टीयों को तो सबसे पहले आरटीआई के अधीन होना चाहिए था ! असल में तो इन पार्टियों को मिलने वाला अवैध धन ही भ्रष्टाचार को पनपाने वाला है जिसका जिक्र मैंने अपने आलेख " अवैध चुनावी चंदा ही भ्रष्टाचार की असल जड़ है !!" में किया था ! आरटीआई  के अंतर्गत आने से उस पर कुछ लगाम लगने कि आशंका ही इन पार्टियों को डरा रही है !

कितनी हास्यास्पद बात है कि केन्द्रीय सूचना आयोग के इस फैसले के विरोध में पहला बयान भी उसी कांग्रेस पार्टी का आया जिसके नेता अपनी बात ही सुचना के कानून का अधिकार देनें को अपनी उपलब्धि बताकर ही शुरू करते हैं ! देश की सबसे बड़ी पार्टी को अब खुद को उस सुचना के अधिकार के कानून के अंतर्गत आनें में परेशानी होती दिख रही है ! कुछ ऐसा ही हाल दूसरी बड़ी पार्टी भाजपा की है उसनें भी शुरूआती तौर पर इसका समर्थन करने के बावजूद उलटी गुलाटी मारनी पड़ी और उसको भी इसके अंतर्गत आने में परेशानी दिखाई पड़ रही है ! जब देश की दो बड़ी पार्टियों की हालत यह हो तो बाकी की पार्टियों की बात करना ही बैमानी है !


दरअसल हमारे देश की राजनैतिक पार्टियों की कथनी और करनी में हमेशा फर्क रहा है जिसका परिणाम ही है कि आज जनता की नजर में राजनीति और राजनेता सबसे ज्यादा अविश्वसनीय हो गए हैं ! इन सभी दलों की राजनैतिक सुचिता और पारदर्शिता केवल बातों और भाषणों तक ही सिमित है और उसको अमलीजामा पहनाने कि ना तो इनकी मंशा है और ना ही नियत है ! असल में ये पार्टियां पिछले कुछ समय में ही सुचना के अधिकार की ताकत देख चुकी है और उसी से भयभीत होकर इसका विरोध कर रही है क्योंकि इन पार्टियों को भी पता है कि इनके भीतर सब कुछ सही नहीं है ! 

14 टिप्‍पणियां :

Unknown ने कहा…

सटीक आलेख पूरण जी,आभार।

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

कहीं उनके दवारा लाया गया अवैध रूप से चुनावी चंदे की पोल न खुल जाय,,,

शानदार,सटीक उम्दा प्रस्तुति,,,

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ताऊ रामपुरिया ने कहा…

अपने ऊपर अंखुश कौन चाहता है?

रामराम.

Jyoti khare ने कहा…

सार्थक और सटीक रपट
राजनैतिक पार्टियाँ घबड़ा रहीं है,पोल खुलने का दर है

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

सादर आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

सही कह रहे हैं ताऊ !
राम राम , आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

सही कहा आपने !!
सादर आभार !!

dr.mahendrag ने कहा…

सब चोर हैं,इनकी चोरियां सामने आ जाएँगी,इस बात से डर लगता है.जरा जरा से मुद्दे पर विरोध कर संसद का समय ख़राब करने वाले दल अब अपने ऊपर अंकुश लगते ही एक हो गएँ हैं.इसके अलावा वे सांसदों के वेतन भत्ते बढ़ने के लिए एक होते हैं.पारदर्शिता का रोना रोने वाले आज बिलकुल तिलमिला गए हैं.सूचना के अधिकार प्रदान करने का दावा करने वाली कांग्रेस का भी ढोंग सामने आ गया है.सच में यह अनुचित अवैध तरीकों से पैसा लेने वाली.व उसका गैरसवेधानिक तरीकों से इस्तेमाल करने के कारण यह सब इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं.काश वे यह भी कहते कि हम रियायती दरों पर जमीन नहीं लेंगे,अन्य छूट भी नहीं लेंगे,आदि आदि .जनता के पैसे में लूटमार कर छूट लेने वाले ये दल अपने सही मुखोटे में सामने आ गएँ हैं.जनता को ही इनका बहिष्कार कर सबक सिखाना चाहिए.

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आप सही कह रहें हैं आदरणीय !!
सादर आभार !!

SANJAY TRIPATHI ने कहा…

हम्माम में सभी नंगे हैं,उनकी पोल खोल दी आपने!

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

चोर चोर मौसेरे भाई,कोई पार्टी नहीं चाहेगा आर टी आई.
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पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

सादर आभार !!