दंगो का दर्द क्या सरकारें देखकर होता है या फिर हर दंगे का दर्द होता ही है ! यह सवाल मेरा हर उस समझदार आदमीं से है और उस हर आदमीं से भी है जो अपनें आपको धर्मनिरपेक्ष कहता है ! जहाँ तक मेरा मानना है कि हर दंगे का दर्द बराबर होना चाहिए लेकिन आज के मीडिया और छद्म धर्मनिपेक्षतावादियों के लिए हर दंगे का दर्द बराबर नहीं होता है और उनको दर्द भी सरकारें देखकर होता है !
२००२ के गुजरात दंगो के बारे में मीडिया और कथित धर्मनिरपेक्ष लोगों द्वारा इतनी चर्चा की गयी है और मोदी को कठघरे में खड़ा करनें की हरसंभव कोशिश की जा रही है ! और अभी तक इतनी जाँचें इन दंगो को लेकर करवाई गयी है लेकिन अभी तक मोदी के विरुद्ध ऐसा कुछ मिला नहीं है जो उनको दोषी साबित कर सके ! फिर भी मीडिया और कथित धर्मनिरपेक्षता के चोले में लिपटे ये लोग मोदी को दोषी करार देते रहते हैं ! लेकिन जब यही लोगों के मुख से और किसी पार्टी के शासनकाल में हुए दंगो का जिक्र तक नहीं होता है तो इनकी नियत पर संदेह होना लाजमी है !
गुजरात में तो २००२ में फिर भी दंगे हुए थे और उसकी भी शुरुआत गोधरा से तब हुयी थी जब ५९ हिंदुओं को रेलगाड़ी के अंदर जिन्दा जला दिया और उसकी प्रतिक्रियास्वरूप काफी जगहों पर हिंसा हुयी जिसमें दोनों समुदायों के लोग मारे गए थे ! और गोधरा कांड के दोषियों में कुछ लोग एक पार्टी से भी जुड़े हुए थे लेकिन मीडिया और इन तथाकथित धर्मनिरपेक्ष लोगों के मुहं से आप गोधरा का तो नाम ही नहीं सुनेंगे बल्कि इनके केंद्रबिंदु में उसके बाद की घटनाएं ही रहती है ! जबकि इन दंगों की पूरी जड़ ही गोधरा ही है क्योंकि गोधरा में वो घटना नहीं होती तो उसके बाद में गुजरात में जो हिंसा हुयी वो भी नहीं होती !
अब उन तथाकथित लोगों को थोडा पीछे १९८४ में ले जाना चाहूँगा और दिल्ली के सिख नरसंहार की याद दिलाना चाहता हूँ जिसको दंगा भी नहीं कहा जा सकता क्योंकि दंगो में दोनों और से लोग मारे जाते हैं और दोनों और से हिंसा होती है लेकिन उसमें केवल और केवल सिख धर्म के लोग ही मारे गए थे इसलिए उसको सरकारी सरंक्षण प्राप्त नरसंहार की संज्ञा ही दी जा सकती है ! लेकिन उसकी चर्चा करना और उसके दोषियों को कठघरे में खड़ा करना शायद इनकी इस कथित धर्मनिरपेक्षता में आड़े आता है ! वैसे इससे पहले भी अतीत में आजादी के बाद से ही कई दंगे हुए हैं लेकिन उनकी नजर में वो सब आते नहीं है !
अतीत की बात को भूलकर अब वर्तमान की तस्वीर भी देख लीजिए मार्च २०१२ में उतरप्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार बनी थी और मार्च में खुद वहाँ के मुख्यमंत्री नें माना था कि मार्च से लेकर दिसम्बर तक उतरप्रदेश में २७ जगहों पर दंगे हुए हैं ! दिसम्बर के बाद कई और भी दंगों के मामले सामने आये हैं ! उतरप्रदेश के ज्यादातर शहर दंगों की चपेट में आ चुके हैं!मथुरा,प्रतापगढ़,बरेली ,लखनऊ,कानपुर,इलाहबाद,गाजियाबाद ,फैजाबाद,अम्बेडकरनगर के कई इलाके दंगों की चपेट में आ चुके हैं जिनमें अब तक कई लोग मारे जा चुके हैं लेकिन अभी भी ये सिलसिला रुका नहीं है और अभी दो दिन पहले ही मेरठ के एक इलाके में दंगा हुआ है जिसमें दो व्यक्तियों की जान गयी है !
उतरप्रदेश के दंगों के बारे में आज तक मीडिया और इन तथाकथित लोगों के मुहं से कभी कुछ सुना भी है क्या ,क्योंकि मैनें कभी इनके मुहं से कुछ सुना नहीं है और सोचनें वाली बात है कि वहाँ पर सरकार बदली है और कुछ भी नहीं बदला है ! वही जनता ,वही प्रशासनिक व्यवस्था और उसके बाद इतनें दंगे होना क्या सरकार चला रही पार्टी और वहाँ की सरकार को कठघरे में खड़ा नहीं कर रहे हैं और अगर कर रहें हैं तो अभी तक किसी नें वहाँ की सरकार को कठघरे में खड़ा नहीं किया !
सबसे ज्यादा जरुरत आज उतरप्रदेश की सरकार को कठघरे में खड़ा करने की है क्योंकि जो हो चूका है उसको बदला नहीं जा सकता लेकिन दबाव बनाने से आगे होने वाली घटनाओं को तो रोका जा सकता है ! लेकिन उनके बारे में कोई नहीं बोलेगा क्योंकि मैंने गुजरात से इतर जो भी मामले बताए हैं वो उन छद्म धर्मनिरपेक्ष पार्टियों के शासन में हुए हैं जो अपनें को कहती तो धर्मनिरपेक्ष है लेकिन उनकी हरकतें साम्प्रदायिकता को भी मात दे रही है !
लेकिन में सवाल उन पार्टियों से नहीं कर रहा हूँ बल्कि मीडिया में आनें वाले उन तथाकथित बुद्धिजीवियों और खुद मीडिया से है क्योंकि ये दोहरी नीतियों पर चलते हैं और उन छद्म धर्मनिरपेक्ष पार्टियों की साम्प्रदायिक हरकतों को छुपाने का काम करते हैं और इस तरह से कहीं ना कहीं स्थायी शांति भी स्थापित होनें नहीं देते हैं ! क्योंकि आज दुनिया भर के समाचारों को जानने का माध्यम केवल अखबार और चैंनल ही नहीं रह गए हैं बल्कि अन्य साधन भी उपलब्ध है ! दंगे कहीं भी हो उसका दर्द बराबर ही होना चाहिए तभी आप न्याय कर पायेंगे वर्ना आपके नजरिये पर प्रश्न उठते रहेंगे !
अब उन तथाकथित लोगों को थोडा पीछे १९८४ में ले जाना चाहूँगा और दिल्ली के सिख नरसंहार की याद दिलाना चाहता हूँ जिसको दंगा भी नहीं कहा जा सकता क्योंकि दंगो में दोनों और से लोग मारे जाते हैं और दोनों और से हिंसा होती है लेकिन उसमें केवल और केवल सिख धर्म के लोग ही मारे गए थे इसलिए उसको सरकारी सरंक्षण प्राप्त नरसंहार की संज्ञा ही दी जा सकती है ! लेकिन उसकी चर्चा करना और उसके दोषियों को कठघरे में खड़ा करना शायद इनकी इस कथित धर्मनिरपेक्षता में आड़े आता है ! वैसे इससे पहले भी अतीत में आजादी के बाद से ही कई दंगे हुए हैं लेकिन उनकी नजर में वो सब आते नहीं है !
अतीत की बात को भूलकर अब वर्तमान की तस्वीर भी देख लीजिए मार्च २०१२ में उतरप्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार बनी थी और मार्च में खुद वहाँ के मुख्यमंत्री नें माना था कि मार्च से लेकर दिसम्बर तक उतरप्रदेश में २७ जगहों पर दंगे हुए हैं ! दिसम्बर के बाद कई और भी दंगों के मामले सामने आये हैं ! उतरप्रदेश के ज्यादातर शहर दंगों की चपेट में आ चुके हैं!मथुरा,प्रतापगढ़,बरेली ,लखनऊ,कानपुर,इलाहबाद,गाजियाबाद ,फैजाबाद,अम्बेडकरनगर के कई इलाके दंगों की चपेट में आ चुके हैं जिनमें अब तक कई लोग मारे जा चुके हैं लेकिन अभी भी ये सिलसिला रुका नहीं है और अभी दो दिन पहले ही मेरठ के एक इलाके में दंगा हुआ है जिसमें दो व्यक्तियों की जान गयी है !
उतरप्रदेश के दंगों के बारे में आज तक मीडिया और इन तथाकथित लोगों के मुहं से कभी कुछ सुना भी है क्या ,क्योंकि मैनें कभी इनके मुहं से कुछ सुना नहीं है और सोचनें वाली बात है कि वहाँ पर सरकार बदली है और कुछ भी नहीं बदला है ! वही जनता ,वही प्रशासनिक व्यवस्था और उसके बाद इतनें दंगे होना क्या सरकार चला रही पार्टी और वहाँ की सरकार को कठघरे में खड़ा नहीं कर रहे हैं और अगर कर रहें हैं तो अभी तक किसी नें वहाँ की सरकार को कठघरे में खड़ा नहीं किया !
सबसे ज्यादा जरुरत आज उतरप्रदेश की सरकार को कठघरे में खड़ा करने की है क्योंकि जो हो चूका है उसको बदला नहीं जा सकता लेकिन दबाव बनाने से आगे होने वाली घटनाओं को तो रोका जा सकता है ! लेकिन उनके बारे में कोई नहीं बोलेगा क्योंकि मैंने गुजरात से इतर जो भी मामले बताए हैं वो उन छद्म धर्मनिरपेक्ष पार्टियों के शासन में हुए हैं जो अपनें को कहती तो धर्मनिरपेक्ष है लेकिन उनकी हरकतें साम्प्रदायिकता को भी मात दे रही है !
लेकिन में सवाल उन पार्टियों से नहीं कर रहा हूँ बल्कि मीडिया में आनें वाले उन तथाकथित बुद्धिजीवियों और खुद मीडिया से है क्योंकि ये दोहरी नीतियों पर चलते हैं और उन छद्म धर्मनिरपेक्ष पार्टियों की साम्प्रदायिक हरकतों को छुपाने का काम करते हैं और इस तरह से कहीं ना कहीं स्थायी शांति भी स्थापित होनें नहीं देते हैं ! क्योंकि आज दुनिया भर के समाचारों को जानने का माध्यम केवल अखबार और चैंनल ही नहीं रह गए हैं बल्कि अन्य साधन भी उपलब्ध है ! दंगे कहीं भी हो उसका दर्द बराबर ही होना चाहिए तभी आप न्याय कर पायेंगे वर्ना आपके नजरिये पर प्रश्न उठते रहेंगे !
16 टिप्पणियां :
सही सवाल-
आभार आदरणीय-
बढ़िया विश्लेषण भी
सादर-
सटीक लेखन पूरण जी,इनका दोहरा चरित्र सब के सामने आ चुका है।
Uttar Pradesh kee sarkaar sickular jo hain.
सटीक !
सही लिखा है आपने.
रामराम.
सहमत, बढिया
बहुत खूब,सटीक चित्रण,,,,
RECENT POST: तेरी याद आ गई ...
सादर आभार !!
सही कहा मनोज जी आपनें !!
आभार !!
ये छद्म सेक्युलर वाद कभी स्थायी शांति नहीं चाहता है !!
सादर आभार !!
सादर आभार !!
आभार ताऊ !!
राम राम !!
आभार !!
सादर आभार !!
very well said !
आभार !!
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