उत्तरप्रदेश में जहाँ तक बसपा का शासन रहता है तब तक एक भी साम्प्रदायिक दंगे की वारदात नहीं होती है और जब चुनावों के बाद सपा की सरकार बनती है तो वहाँ अचानक से एक के बाद एक साम्प्रदायिक दंगे होना शुरू हो जाते हैं ! यह नहीं माना जा सकता कि ये इतफाक है कि सरकार बदलनें के बाद से ही ऐसी घटनाएं हो रही है बल्कि ऐसा लग रहा है कि शासन के सरंक्षण में इस तरह की घटनाओं को अंजाम दिलवाकर वोट बेंक का ध्रुवीकरण किया जा रहा है ! वही लोग हैं और वही प्रशासन है और बदलें है तो केवल शासन करनें वाले तो फिर दोष तो शासन करनें वालों का ही दिखाई दे रहा है !
यह इतफाक नहीं हो सकता कि मार्च २०१२ में सपा सरकार के शासन सँभालने के बाद से अब तक तक़रीबन ३५ से ज्यादा साम्प्रदायिक हिंसा की वारदातें हो चुकी है जिसका जिक्र मैनें अपनें अग्रलिखित आलेख "दंगो का दर्द क्या किसी को पार्टियों की सरकारें देखकर होता है " में भी कर चूका हूँ और अब मुज्जफरनगर का नाम भी उसमें जुड़ चूका है ! इस तरह एक के बाद एक हो रही घटनाओं के बाद भी क्या यह माना जाना चाहिए कि ये सब बिना सोची समझी साजिस के हो रहा है ! मेरा मन तो यह कतई मानने को तैयार नहीं है और मुझे तो साफ़ साफ़ लग रहा है कि यह सब एक सुनियोजित तरीके से किया जा रहा है ! तुस्टीकरण का खेल खुलकर खेला जा रहा है और जब सरकार खुद उसमें शामिल हो तो रोकनें वाला कौन है !
वैसे एक बात यहाँ और गौर करनें वाली है वो यह है कि आजम खान की हैसियत इस सरकार में उच्च दर्जे की है और किसी मुद्दे पर मुख्यमंत्री का बयान आये या ना आये लेकिन आजम खान का बयान जरुर आएगा ! और उनके बयानों में तुस्टीकरण का पुट साफ़ नजर आएगा ! ये वही आजम खान है जिन्होनें कभी भारत माता को डायन कहा था ! वैसे देखा जाए तो उतरप्रदेश में तुस्टीकरण की शुरुआत तो चुनावों के समय ही हो गयी थी और कांग्रेस और सपा में इसी तुस्टीकरण की होड़ मची हुयी थी जिसके कारण दोनों पार्टियां बयानबाजी में सब कुछ भूल सी गयी और कांग्रेसी के केन्द्रीय मंत्री को तो चुनाव आयोग को जबाब तक देना पड़ा था ! लेकिन इस खेल में बाजी सपा मारकर ले गयी !