रविवार, 31 अगस्त 2014

उतरप्रदेश में लगातार बिगडती स्थतियाँ चिंताजनक है !!

उतरप्रदेश से जुड़े समाचारों को पढ़ते हैं तो एक ही सवाल दिमाग में उभरकर आ रहा है कि उतरप्रदेश किस रास्ते पर आगे बढ़ रहा है ! हर रोज कहीं ना कहीं से साम्प्रदायिक तनाव का समाचार अखबारों में रहता ही है ! उतरप्रदेश में जब से समाजवादी पार्टी की सरकार बनी है तब से ही वहां आपसी सौहार्द का वातावरण लगातार बिगड़ता जा रहा है ! एक तरफ आपसी भाईचारे का वातावरण बिगड़ता जा रहा है और दूसरी तरफ उतरप्रदेश सरकार अकर्मण्यता की शिकार है !

उतरप्रदेश सरकार की नाकामी नें लोगों के बीच एक ऐसा आशंकाओं का घेरा खड़ा कर दिया गया है जिसका परिणाम यह हो रहा है कि हर छोटी से छोटी घटना भी तनाव का कारण बन जाती है ! और आपसी विश्वास में जब कमी आती है तो ऐसा ही होता है क्योंकि तब एक सामान्य घटना में साजिश लगने लगती है ! और आज उतरप्रदेश में यही हो रहा है जिसके कारण छोटी छोटी घटनाएं आपसी तनाव में तब्दील हो रही है ! जिसमें पुलिस और कुछ अतिवादी तत्व बढ़ावा देनें का काम ही कर रहे हैं ! 

उतरप्रदेश सरकार और वहां की पुलिस का इकतरफा रवैया लगातार चर्चा का विषय बना हुआ है जिसके कारण एक समुदाय में असुरक्षा का भाव पैदा हो गया है ! यही कारण है कि लोगों को अब प्रशासन पर कोई भरोसा नहीं रह गया है ! पिछले दिनों लव जिहाद पर जी न्यूज पर की गयी पड़ताल में यह बात भी सामने आई थी कि पुलिस लोगों की सुनवाई नहीं कर रही इसीलिए कुछ लोगों नें अपनें तरीके से निपटने के लिए संघटन बना लिए हैं जिनका दायरा बढ़ता जा रहा है ! ऐसी स्थतियाँ पैदा होना चिंता की बात है !

उतरप्रदेश सरकार  की अकर्मण्यता अथवा शिथिलता नें पुरे उतरप्रदेश में असुरक्षा का भाव पैदा कर दिया है जिसका निराकरण जल्दी करने की कोशिश नहीं की गयी तो स्थतियाँ लगातार बिगडती ही चली जायेगी और जितनी ज्यादा बिगड़ेगी संभालना उतना ही मुश्किल होता जाएगा !

गुरुवार, 19 सितंबर 2013

तुच्छ राजनितिक स्वार्थों के लिए संप्रदायों के दिलों में जहर तो मत घोलो !!

देश के एक इलेक्ट्रोनिक मीडिया चेन्नल आज तक नें जब मुज्जफरनगर दंगे को लेकर स्टिंग आपरेशन किया तो देश के सामनें एक कड़वी सच्चाई बेपर्दा होकर बाहर आई ! और वो सच्चाई थी कि कैसे एक चुनी हुयी सरकार के मंत्री नें दंगों की भूमिका तैयार की और जब दंगे शुरू हो गए तो भी जो हो रहा है होनें दो का निर्देश पुलिसवालों को देकर दंगों को होनें दिया ! हालांकि देखें तो गलती उन पुलिसवालों की भी थी लेकिन इसके बावजूद इस सच्चाई को तो हर कोई जानता है कि पुलिस राज्य सरकारों के दबाव में काम करती है और जो कोई अधिकारी राज्य सरकार के दबाव में काम नहीं करता है उसे किस तरह दण्डित किया जाता है यह भी किसी से छुपा हुआ नहीं है ! 

हालांकि मीडिया चेन्नल के इस स्टिंग में ऐसा कुछ भी नया नहीं निकलकर आया है जिसको लोग पहले से नहीं जानते हैं ! जो ख़बरों पर बारीकी से नजर रहते हैं उन्हें पता था कि एक के बाद एक हो रहे दंगों के पीछे किसका दिमाग काम कर रहा है और उतरप्रदेश सरकार में सबसे ज्यादा किसका प्रभाव है ! और उस आदमी की मानसिकता भी किसी से छुपी हुयी नहीं थी ! हाँ इतना जरुर हुआ कि मीडिया के हाथ में सीधा हमला बोलनें का हथियार जरुर मीडिया को मिल गया जिसको भी लेनें से मीडिया चूक गया ! क्यों नहीं मीडिया नें इन दंगों के निष्पक्ष जांच की मांग उठायी जबकि इतने बड़े पैमाने पर दंगे हुए हैं ! मीडिया भी उन पार्टियों के खिलाफ तगड़ा हमला बोलनें से कतराती है जिनको सेक्युलर होनें का प्रमाणपत्र या तो मीडिया खुद बांटती है अथवा ये पार्टियां ही आपस में बाँट लेती है !

मीडिया के इसी रवैये और लेटलतीफी के कारण ही उतरप्रदेश में एक के बाद एक दंगे होते रहे और मीडिया चैन की बंसी बजाता रहा और अब इतने बड़े नरसंहार के बाद थोड़ी बहुत नींद उडी है जिसे अभी भी पूरा जागना नहीं कहा जा सकता है ! जबकि सपा सरकार आनें के बाद से लगातार वहाँ दंगों की एक श्रृखंला आरम्भ हो गयी और समझदार लोग यह जानते हैं कि बिना सरकारी सरंक्षण के इस तरह की श्रृंखला आरम्भ हो नहीं सकती ! भारत में आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ कि इस तरह से एक ही राज्य में लगातार एक निश्चित अंतराल पर इस तरह से दंगों की श्रृंखला आरम्भ हुयी हो ! हाँ किसी आक्रोशित करनें वाली घटना को लेकर एक ही समय में अलग अलग जगहों पर एक साथ दंगे हो चुके हैं जो एक बार काबू में आने के बाद शांत हो गए थे !

रविवार, 8 सितंबर 2013

तुस्टीकरण का यह खेल कहाँ तक ले जाएगा !!

उत्तरप्रदेश में जहाँ तक बसपा का शासन रहता है तब तक एक भी साम्प्रदायिक दंगे की वारदात नहीं होती है और जब चुनावों के बाद सपा की सरकार बनती है तो वहाँ अचानक से एक के बाद एक साम्प्रदायिक दंगे होना शुरू हो जाते हैं ! यह नहीं माना जा सकता कि ये इतफाक है कि सरकार बदलनें के बाद से ही ऐसी घटनाएं हो रही है बल्कि ऐसा लग रहा है कि शासन के सरंक्षण में इस तरह की घटनाओं को अंजाम दिलवाकर वोट बेंक का ध्रुवीकरण किया जा रहा है ! वही लोग हैं और वही प्रशासन है और बदलें है तो केवल शासन करनें वाले तो फिर दोष तो शासन करनें वालों का ही दिखाई दे रहा है ! 

यह इतफाक नहीं हो सकता कि मार्च २०१२ में सपा सरकार के शासन सँभालने के बाद से अब तक तक़रीबन ३५ से ज्यादा साम्प्रदायिक हिंसा की वारदातें हो चुकी है जिसका जिक्र मैनें अपनें अग्रलिखित आलेख "दंगो का दर्द क्या किसी को पार्टियों की सरकारें देखकर होता है " में भी कर चूका हूँ और अब मुज्जफरनगर का नाम भी उसमें जुड़ चूका है ! इस तरह एक के बाद एक हो रही घटनाओं के बाद भी क्या यह माना जाना चाहिए कि ये सब बिना सोची समझी साजिस के हो रहा है ! मेरा मन तो यह कतई मानने को तैयार नहीं है और मुझे तो साफ़ साफ़ लग रहा है कि यह सब एक सुनियोजित तरीके से किया जा रहा है ! तुस्टीकरण का खेल खुलकर खेला जा रहा है और जब सरकार खुद उसमें शामिल हो तो रोकनें वाला कौन है !

वैसे एक बात यहाँ और गौर करनें वाली है वो यह है कि आजम खान की हैसियत इस सरकार में उच्च दर्जे की है और किसी मुद्दे पर मुख्यमंत्री का बयान आये या ना आये लेकिन आजम खान का बयान जरुर आएगा ! और उनके बयानों में तुस्टीकरण का पुट साफ़ नजर आएगा ! ये वही आजम खान है जिन्होनें कभी भारत माता को डायन कहा था ! वैसे देखा जाए तो उतरप्रदेश में तुस्टीकरण की शुरुआत तो चुनावों के समय ही हो गयी थी और कांग्रेस और सपा में इसी तुस्टीकरण की होड़ मची हुयी थी जिसके कारण दोनों पार्टियां बयानबाजी में सब कुछ भूल सी गयी और कांग्रेसी के केन्द्रीय मंत्री को तो चुनाव आयोग को जबाब तक देना पड़ा था ! लेकिन इस खेल में बाजी सपा मारकर ले गयी ! 

मंगलवार, 30 जुलाई 2013

अखिलेश सरकार अपनी विफलताओं को तुष्टिकरण की आड़ में छुपाना चाहती है !!

उतरप्रदेश की समाजवादी पार्टी की सरकार अपनीं नाकामियों को मुस्लिम तुष्टिकरण के सहारे छुपाने की कोशिश करती देखी जा रही है ! पिछले साल मार्च २०१२ में सत्ता संभालने वाली सरकार से लोगों को काफी उम्मीदें थी और युवा मुख्यमंत्री अखिलेश से तो लोगों को उम्मीदें इसीलिए भी थी कि वो कीचड़ भरी राजनीति नहीं करेंगे और प्रदेश को एक अच्छी सरकार देंगे ! लेकिन अखिलेश यादव की इस सरकार नें प्रदेश की जनता और देश के बुद्धिजीवियों को ना केवल निराश किया बल्कि उतरप्रदेश को बद से बदतर स्थति में पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है !

अखिलेश सरकार को सत्ता संभाले अभी एक साल से कुछ ही ज्यादा समय हुआ है लेकिन प्रदेश का सांप्रदायिक सद्भाव पूरी तरह से बिखर चूका है और हालत किस कदर खराब है कि बरेली जैसे स्थानों का साम्प्रदायिक सद्भाव आजादी से लेकर अभी तक नहीं बिगड़ा था और किसी भी भड़काऊ मुद्दे से दूर रहनें वाला यह शहर भी इस समयावधि में तीन बार दंगे का दंश झेल चूका है ! अभी तक प्रदेश में इस समयावधि में उतरप्रदेश में होनें वाले तीस से ज्यादा दंगे साम्प्रदायिक सद्भाव के चकनाचूर होनें की कहानी कहने के लिए काफी है और अखिलेश सरकार को कठघरे में खडा करनें का भी पर्याप्त कारण है ! क्योंकि मार्च में इस सरकार के सत्ता संभालने के बाद से ही ऐसा हो रहा है जिसके कारणों में इस सरकार की मुस्लिम तुस्टीकरण की नीति है जो एक तरह से सद्भाव बिगाड़ने वालों का हौसला बढ़ा रही है !

इस सरकार के कारनामों पर नजर डालनें से सारा मंजर समझ में आ जाता है ! किस तरह से जेलों में बंद मुस्लिम आतंवादियों को रिहा करनें की बात की गयी थी ! और उनको रिहा करनें की कोशिश भी की गयी थी लेकिन इलाहबाद उच्च न्यायालय नें उस पर रोक लगा दी जिसके कारण सरकार वैसा कर नहीं पायी ! लेकिन इस सरकार नें बनने के बाद हर समय ऐसा ही सन्देश दिया है वो केवल और केवल मुसलमानों की ही सरकार है और उसी का परिणाम आज ये है कि उतरप्रदेश का सांप्रदायिक सद्भाव अपनें निचले स्तर पर आ चूका है ! और उसकी परिणति दंगो के रूप में सामने आ रही है !

रविवार, 28 जुलाई 2013

दंगो का दर्द क्या किसी को पार्टियों की सरकारें देखकर होता है !!

दंगो का दर्द क्या सरकारें देखकर होता है या फिर हर दंगे का दर्द होता ही है ! यह सवाल मेरा हर उस समझदार आदमीं से है और उस हर आदमीं से भी है जो अपनें आपको धर्मनिरपेक्ष कहता है ! जहाँ तक मेरा मानना है कि हर दंगे का दर्द बराबर होना चाहिए  लेकिन आज के मीडिया और छद्म धर्मनिपेक्षतावादियों के लिए हर दंगे का दर्द बराबर नहीं होता है और उनको दर्द भी सरकारें देखकर होता है ! 

२००२ के गुजरात दंगो के बारे में मीडिया और कथित धर्मनिरपेक्ष लोगों द्वारा इतनी चर्चा की गयी है और मोदी को कठघरे में खड़ा करनें की हरसंभव कोशिश की जा रही है ! और अभी तक इतनी जाँचें इन दंगो को लेकर करवाई गयी है लेकिन अभी तक मोदी के विरुद्ध ऐसा कुछ मिला नहीं है जो उनको दोषी साबित कर सके ! फिर भी मीडिया और कथित धर्मनिरपेक्षता के चोले में लिपटे ये लोग मोदी को दोषी करार देते रहते हैं ! लेकिन जब यही लोगों के मुख से और किसी पार्टी के शासनकाल में हुए दंगो का जिक्र तक नहीं होता है तो इनकी नियत पर संदेह होना लाजमी है !

गुजरात में तो २००२ में फिर भी दंगे हुए थे और उसकी भी शुरुआत गोधरा से तब हुयी थी जब ५९ हिंदुओं को रेलगाड़ी के अंदर जिन्दा जला दिया और उसकी प्रतिक्रियास्वरूप काफी जगहों पर हिंसा हुयी जिसमें दोनों समुदायों के लोग मारे गए थे ! और गोधरा कांड के दोषियों में कुछ लोग एक पार्टी से भी जुड़े हुए थे लेकिन मीडिया और इन तथाकथित धर्मनिरपेक्ष लोगों के मुहं से आप गोधरा का तो नाम ही नहीं सुनेंगे बल्कि इनके केंद्रबिंदु में उसके बाद की घटनाएं ही रहती है ! जबकि इन दंगों की पूरी जड़ ही गोधरा ही है क्योंकि गोधरा में वो घटना नहीं होती तो उसके बाद में गुजरात में जो हिंसा हुयी वो भी नहीं होती !