हमारे देश में गाहे बगाहे हर पार्टी चुनाव सुधारों की बातें करती रहती है लेकिन उनकी ये बातें बातों तक ही सिमित रहती है ! असल में तो हर पार्टी वर्तमान लुंजपुंज व्यवस्था को बनाए रखना चाहती है और अब ये भी साफ़ हो चूका है कि इसी व्यवस्था को बनाए रखनें के लिए ये पार्टियां किसी भी सीमा तक जा सकती है ! हालिया दिनों में आये दो फैसलों और उनको उलटने की प्रक्रिया नें दिखा दिया कि सभी राजनैतिक पार्टियों की कथनी और करनी में बहुत बड़ा फर्क है और इस ढुलमुल व्यवस्था को बनाए रखनें की हरसंभव कोशिश ये पार्टियां करेगी !
केन्द्रीय सुचना आयोग और सर्वोच्च न्यायालय की और से दौ अच्छे फैसले राजनैतिक पार्टियों को आरटीआई के दायरे में लाने और संसद में अपराधियों कि पहुँच को रोकने को लेकर आये थे जो अगर लागू हो जाते तो अच्छे परिणाम मिल सकते थे ! वैसे तो इन फैसलों के आने के बाद से ही राजनैतिक पार्टियों के मंसूबे साफ़ दिखाई पड़ रहे थे जिसका जिक्र मैनें अपनें अग्रलिखित आलेख "इस भ्रष्टाचार और अपराधपोषित व्यवस्था को बदलनें का रास्ता आखिर क्या है " में किया था ! जो पहले मंसूबे इनके दिखाई पड़ रहे थे अब उन्ही को अमलीजामा पहनाया जा रहा है !
हमारे संविधाननिर्माताओं नें विधायिका को ज्यादा अधिकार इसलिए दिए थे कि ये जनता के प्रति जबाबदार होंगे तो जनता के डर से इन अधिकारों का दुरूपयोग नहीं करेंगे ! उन्होंने कभी सपने में भी यह नहीं सोचा होगा कि विधायिका अपनें अधिकारों का इस तरह से दुरुपयोग करेगी जैसा आज किया जा रहा है ! एक फैसले को आर्टीआई कानून में संशोधन करके बदल दिया गया तो दूसरे को अध्यादेश के जरिये बदलने की कोशिशें अपनें अंतिम चरण में है ! ऐसे में सुधार की रौशनी आये तो आये किधर से क्योंकि किसी भी तरह के सुधार को तो पार्टियां आने ही नहीं देना चाहती है और इसमें उनको सफलता दिलाने के लिए उनको प्राप्त संविधानप्रदत अधिकार उनके लिए एक मजबूत ढाल का काम कर रहे हैं !
चुनाव सुधार की बातें केवल इनकी बयानबाजी और जनता को मुर्ख बनाने तक ही सिमित है उसके सिवा कुछ भी नहीं ! सुधार ये पार्टियां नहीं चाहती और ईवीएम के जरिये होने वाले चुनावों की निष्पक्षता का भरोसा भी चुनाव आयोग सर्वोच्च न्यायालय को अभी तक नहीं दे पाया है ! सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रिंट स्लिप मतदाता को देनें के फैसले को भी चुनाव आयोग नें यह कहकर २०१७ तक टलवा लिया कि साढे तेरह लाख मशीनों में प्रिंटर लगाने में समय और १५०० करोड़ का खर्च आएगा जिसको २०१७ से पहले पूरा नहीं किया जा सकता ! ऐसे में अभी तक ईवीएम मशीनों को लेकर संदेह तो बरकरार ही है ! ऐसे में एक सवाल ये भी खड़ा यह भी है कि इवीएम से होने वाले चुनावों के परिणामों को लेकर क्या भरोसा किया जा सकता है !
वैसे अभी तक सुधारों की गुंजाइश दूर दूर तक नजर नहीं आती है और आशा सर्वोच्च न्यायालय से जनता को जरुर है लेकिन सर्वोच्च न्यायालय की किसी अच्छी कोशिश को राजनैतिक पार्टियां परवान चढ़ने नहीं देगी ! हर पार्टी में अपराधी किस्म के लोग हैं और पार्टियां उनको बचाने की हरसंभव कोशिश करती हैं ! ऐसे में राजनीति से अपराधीकरण से निजात मिले तो मिले कैसे ! जब राजनैतिक पार्टियां खुद अपराधियों के सरंक्षण के लिए खड़ी हो जाये तो आप कैसे आशा कर सकते हैं कि राजनीति से अपराध को मिटाया जा सकता है ! ऐसे में देखा जाए तो राजनैतिक पार्टियों द्वारा की जाने वाली चुनाव सुधार की बातें खोखली हैं !!
19 टिप्पणियां :
सुन्दर प्रस्तुति-
आभार भाई जी-
सादर आभार !!
सहर्ष सादर आभार !!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - शुक्रवार - 27/09/2013 को
विवेकानंद जी का शिकागो संभाषण: भारत का वैश्विक परिचय - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः24 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra
सहर्ष आभार !!
चुनाव में सुधार हो जाने से फिर राजनेताओं की दाल कहां गलेगी !
नई रचना : सुधि नहि आवत.( विरह गीत )
आप सही कह रहे हैं !!
सादर आभार !!
बहुत सुंदर ही प्रस्तुति ....
एक अच्छे और गंभीर लेख के लिए बधाई पूरण जी . . .
आभार !!
स्वार्थ है उनका.
रामराम.
सही कहा आपनें ताऊ !!
आभार ,राम राम !!
चुनाव सुधार को भी राजनैतिक पार्टी नहीं चाहती ,उनके गले में फंदे नहीं पड़ेंगे ?
नई पोस्ट साधू या शैतान
latest post कानून और दंड
"को" को कोई पढ़ा जाय
आपका कहना सही प्रतीत होता है !!
सादर आभार !!
जी !!
चुनाव सुधार की बातें बेमानी नजर आती हैं ,जब अध्यादेश के द्वारा सत्ताधारी दल सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने में लगी है .
सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय
किसी B.S.N.L के नंबर का बैलेंस जाने इस ट्रिक से
आभार !!
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