आखिर कब तक जानलेवा लापरवाहियों को सहन करते रहेंगे और इन प्रशासनिक लापरवाहियों के कारण लोग अपनीं जानें गंवाते रहेंगे ! हमारे देश में साल-दरसाल धार्मिक स्थानों पर हादसे होते रहते हैं लेकिन ऐसा लगता प्रशासनिक तंत्र उनसे सबक लेना ही नहीं चाहता है ! ऐसा नहीं है कि इन स्थानों पर आनें वाले श्रदालुओं के बारे में प्रशासन को पहले से पता नहीं रहता हो लेकिन फिर भी प्रशासन इन हादसों को रोक पानें में नाकाम रहता है ! विडम्बना देखिये राज्य बदलते रहते हैं लेकिन हादसों के घटने का तरीका एक सा ही रहता है फिर भी प्रशासन सबक नहीं लेता है !
आजादी के बाद से अब तक हजारों लोगों की जानें धार्मिक स्थानों पर भगदड़ मचने की वजह से चली गयी और प्रशासन इस तरह के हादसों को रोकने के लिए कोई स्थायी व्यवस्था बना पानें में नाकाम रहा है ! और कई मामलों में तो भगदड़ के लिए पुलिस के द्वारा किया जाने वाला लाठीचार्ज ही जिम्मेदार रहा है ! अभी हाल ही में हुए नवमी पर दतिया के रतनगढ़ माता मंदिर और कुम्भ मेले के समय इलाहबाद रेलवे प्लेटफोर्म पर हुए हादसे तो पुलिस लाठीचार्ज के कारण ही हुए ! भले ही पुलिस अपनीं नाकामी अफवाहों पर डालकर बचने की कोशिश करे ! धार्मिक स्थानों पर आनें वाली श्रदालुओं की भीड़ को नियंत्रित करने के लिए प्रशासन पहले से कोई व्यवस्था बना पाने में नाकाम रहता है और जब भीड़ हद से ज्यादा हो जाती है तो लाठीचार्ज का सहारा लिया जाता है जो ऐसे हादसों को जन्म देता है !
इन हादसों से सबक लेनें की बजाय प्रशासन और सरकारों द्वारा लीपापोती शुरू हो जाती है ! मुख्यमंत्री सारा दोष प्रशासनिक अमले पर डालकर बरी होना चाहता है और प्रशासनिक अधिकारी दोष श्रदालुओं पर डालकर बरी होना चाहते हैं ! राज्य में प्रशासनिक लापरवाही से होने वाली हर घटना की नैतिक जिम्मेदारी तो मुख्यमंत्री की बनती ही है ! भला यह कैसे चल सकता है कि प्रशासन द्वारा कोई भी अच्छा काम हो तो उसका श्रेय लेनें के लिए तो मुख्यमंत्री आगे आ जाते हैं लेकिन बुरे कामों के लिए प्रशासन पर दोष डालकर खुद किनारे होनें की कोशिश करते हैं और यह केवल एक राज्य अथवा एक मुख्यमंत्री की कहानी नहीं है बल्कि हर राज्य और हर मुख्यमंत्री की यही कहानी है और शिवराज सिंह चौहान भी इससे अलग नहीं है !
हर साल ऐसे हादसे देखना हमारी मज़बूरी बन गयी है ! अभी ताजा हादसे में रतनगढ़ के माता मंदिर में १५५ लोगों की मौत , उससे पहले इलाहबाद के रेलवे प्लेटफोर्म पर हुए हादसे में ३६ लोगों की मौत उससे पहले साल २०१२ में बिहार के पटना में छठ पूजा की भगदड़ में १७ लोगों की मौत ,२०११ में हिमाचल के नैना देवी मंदिर में १६२ लोगों की मौत और उससे पहले २००८ में राजस्थान के जोधपुर के चामुण्डा मंदिर में हुए हादसे में २२४ लोगों की मौत हो गयी ! इस तरह के हादसे तो और भी है लेकिन सवाल हादसों की गिनती का नहीं है बल्कि निरंतर होते हादसों को लेकर है ! आखिर कब रुकेंगे ये हादसे और इन जानलेवा लापरवाहियों के लिए क्यों नहीं जिम्मेदार लोगों के विरुद्ध आपराधिक मामले दर्ज करवाकर उनको सजा दिलवाई जाती है !
असल में होता क्या है कुछ प्रशासनिक अफसरों , कर्मचारियों को निलम्बित करके यह दिखलाया जाता है कि कारवाई की गयी है लेकिन कुछ दिनों बाद चुपके से उनका निलम्बन रद्द करके उनको दूसरी जगह लगा दिया जाता है ! इस तरह से कारवाई के नाम पर लीपापोती कर दी जाती है ! कुछ लोग इन हादसों के लिए दर्शानार्थियों को ही दोषी ठहराते नजर आते हैं लेकिन उनको यह सोचना होगा कि ये दर्शानार्थी वहाँ जानबूझकर अपनी जान गंवाने नहीं जाते हैं ! हमारा देश आस्था प्रधान देश है और हमारा देश ही क्यों दुनिया के किसी भी देश में चले जाइए इस तरह के धार्मिक आयोजनों में लोग जाते ही है , यह अलग बात है कि हमारे देश में धार्मिक आयोजन कुछ ज्यादा होते हैं !
जिस तरह सड़क दुर्घटनाओं के कारण लोग घरों से बाहर निकलना नहीं छोड़ सकते उसी तरह से धार्मिक आयोजनों में होने वाले हादसों के कारण लोग धार्मिक आयोजनों में जाना नहीं छोड़ सकते ! इसलिए जरुरत श्रदालुओं को दोष देनें की बजाय व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने की है और ये काम प्रशासन को करना होगा ! ऐसे कार्यक्रम निर्विघ्न आयोजित किये जा सके उसकी तैयारी प्रशासन को करनी होगी ! आयोजन शुरू होनें से पहले ऐसी जगहों को चिन्हित करके तैयारी करनी होगी लेकिन वर्तमान में ऐसा नहीं किया जाता है बल्कि पहले आयोजन स्थल का मुआयना करने की जहमत तक प्रशासनिक अधिकारी नहीं उठाते हैं ! और कार्यक्रम शुरू होता है तो महज कुछ सुरक्षाकर्मी तैनात करके अपनें कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं !
इन हादसों से सबक लेनें की बजाय प्रशासन और सरकारों द्वारा लीपापोती शुरू हो जाती है ! मुख्यमंत्री सारा दोष प्रशासनिक अमले पर डालकर बरी होना चाहता है और प्रशासनिक अधिकारी दोष श्रदालुओं पर डालकर बरी होना चाहते हैं ! राज्य में प्रशासनिक लापरवाही से होने वाली हर घटना की नैतिक जिम्मेदारी तो मुख्यमंत्री की बनती ही है ! भला यह कैसे चल सकता है कि प्रशासन द्वारा कोई भी अच्छा काम हो तो उसका श्रेय लेनें के लिए तो मुख्यमंत्री आगे आ जाते हैं लेकिन बुरे कामों के लिए प्रशासन पर दोष डालकर खुद किनारे होनें की कोशिश करते हैं और यह केवल एक राज्य अथवा एक मुख्यमंत्री की कहानी नहीं है बल्कि हर राज्य और हर मुख्यमंत्री की यही कहानी है और शिवराज सिंह चौहान भी इससे अलग नहीं है !
हर साल ऐसे हादसे देखना हमारी मज़बूरी बन गयी है ! अभी ताजा हादसे में रतनगढ़ के माता मंदिर में १५५ लोगों की मौत , उससे पहले इलाहबाद के रेलवे प्लेटफोर्म पर हुए हादसे में ३६ लोगों की मौत उससे पहले साल २०१२ में बिहार के पटना में छठ पूजा की भगदड़ में १७ लोगों की मौत ,२०११ में हिमाचल के नैना देवी मंदिर में १६२ लोगों की मौत और उससे पहले २००८ में राजस्थान के जोधपुर के चामुण्डा मंदिर में हुए हादसे में २२४ लोगों की मौत हो गयी ! इस तरह के हादसे तो और भी है लेकिन सवाल हादसों की गिनती का नहीं है बल्कि निरंतर होते हादसों को लेकर है ! आखिर कब रुकेंगे ये हादसे और इन जानलेवा लापरवाहियों के लिए क्यों नहीं जिम्मेदार लोगों के विरुद्ध आपराधिक मामले दर्ज करवाकर उनको सजा दिलवाई जाती है !
असल में होता क्या है कुछ प्रशासनिक अफसरों , कर्मचारियों को निलम्बित करके यह दिखलाया जाता है कि कारवाई की गयी है लेकिन कुछ दिनों बाद चुपके से उनका निलम्बन रद्द करके उनको दूसरी जगह लगा दिया जाता है ! इस तरह से कारवाई के नाम पर लीपापोती कर दी जाती है ! कुछ लोग इन हादसों के लिए दर्शानार्थियों को ही दोषी ठहराते नजर आते हैं लेकिन उनको यह सोचना होगा कि ये दर्शानार्थी वहाँ जानबूझकर अपनी जान गंवाने नहीं जाते हैं ! हमारा देश आस्था प्रधान देश है और हमारा देश ही क्यों दुनिया के किसी भी देश में चले जाइए इस तरह के धार्मिक आयोजनों में लोग जाते ही है , यह अलग बात है कि हमारे देश में धार्मिक आयोजन कुछ ज्यादा होते हैं !
जिस तरह सड़क दुर्घटनाओं के कारण लोग घरों से बाहर निकलना नहीं छोड़ सकते उसी तरह से धार्मिक आयोजनों में होने वाले हादसों के कारण लोग धार्मिक आयोजनों में जाना नहीं छोड़ सकते ! इसलिए जरुरत श्रदालुओं को दोष देनें की बजाय व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने की है और ये काम प्रशासन को करना होगा ! ऐसे कार्यक्रम निर्विघ्न आयोजित किये जा सके उसकी तैयारी प्रशासन को करनी होगी ! आयोजन शुरू होनें से पहले ऐसी जगहों को चिन्हित करके तैयारी करनी होगी लेकिन वर्तमान में ऐसा नहीं किया जाता है बल्कि पहले आयोजन स्थल का मुआयना करने की जहमत तक प्रशासनिक अधिकारी नहीं उठाते हैं ! और कार्यक्रम शुरू होता है तो महज कुछ सुरक्षाकर्मी तैनात करके अपनें कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं !
23 टिप्पणियां :
शिवराज सिंह चौहान को इसकी नैतिक जिम्मेदारी लेनी चाहिए !
RECENT POST : - एक जबाब माँगा था.
पिछली गलतियों से सबक नहीं लेना,रोजाना की आदत हो गई है .पता नहीं ,प्रशासन ऐसे हादसों से कब सबक लेगा .
नई पोस्ट : रावण जलता नहीं
सहर्ष सादर आभार आदरणीय !!
आपका कहना सही है राज्य के मुख्यमंत्री की नैतिक जिम्मेदारी तो बनती ही है !!
सादर आभार !!
प्रशासन सबक लेना ही नहीं चाहता है !!
सादर आभार !!
एक आदमी की नहीं होती है जिम्मेदारी जब पूरा सिस्टम काम नहीं कर रहा होता है तब तब इस तरह की घटनाऐं होती हैं !
सार्थक एवं आवश्यक लेख !!
इस पोस्ट की चर्चा, बृहस्पतिवार, दिनांक :-17/10/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक -26 पर.
आप भी पधारें, सादर ....
सार्थक आलेख पूरण जी।
आपका कहना सही है कि पूरी व्यवस्था नाकाम हो तभी इस तरह की घटनाएं घटित होती है और जिम्मेदारी उन लोगों की होती है जो सीधे वहाँ की व्यवस्था से जुड़े होते हैं लेकिन मुखिया होनें के नाते नैतिक जिम्मेदारी तो हर मुख्यमंत्री की बनती है !
सादर आभार !!
सादर आभार !!
आभार मनोज जी !!
विचारणीय पक्ष रखा है आपने। भीड़ का भी विनियमन होना चाहिए।
आयोजक और प्रशासन दोनों जिम्मेदार हैं हादसे के लिए |
latest post महिषासुर बध (भाग २ )
आपका कहना सही है लेकिन आयोजक तो प्रशासन द्वारा निर्देश और अनुमति प्राप्त करके ही आयोजन करते हैं और उसमें फिर कहीं चूक होती है तो प्रशासन का ही दोष माना जाएगा !
सादर आभार !!
हमारे देश मे मनुष्यों के जीवन का मोल दिन-ब-दिन घटता ही जा रहा है.....
हर दिन होने वाली जानलेवा लापरवाही इस बात का प्रमाण है, की हमारे समाज मे "कोई फ़र्क नही पड़ता" वाली मानसिकता तेज़ी से अपने पाँव पसार रही है!
सही कहा आपनें !!
आभार !!
जीवन को बचाने की नहीं मुआवज़े की मुराद रहती हैं इन वोट खोरों को। यहाँ आदमी एक गिनती है एक वोट है बस।
जीवन को बचाने की नहीं मुआवज़े की मुराद रहती हैं इन वोट खोरों को। यहाँ आदमी एक गिनती है एक वोट है बस।
सादर आभार !!
सादर आभार !!
यही तो सबसे बड़ी समस्या है अपने देश की जिसका जो काम है वह स्वयं ही वो काम करना ही नहीं चाहता। फिर चाहे वो सरकार या प्रशासन हो या फिर कानून और आम जनता सब बस अपने अपने कामो और कर्तव्यों से मुंह चुराते फिरते है और एक दूसरे पर दोषारोपण करने में लगे रहते हैं। नतीजा समस्या ज्यौं की त्यौं बनी रहती है और जब तक यह बात सभी के समझ में नहीं आजाती तब तक कुछ नहीं हो सकता...
यही हाल है !!
आभार !!
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