शुक्रवार, 18 जुलाई 2014

मोदी सरकार विवादित मुद्दों पर रक्षात्मक क्यों !!

चुनावी घोषणापत्र में मुद्दे इसीलिए शामिल किये जाते हैं ताकि जनता को यह पता लग सके कि उस पार्टी की सरकार बनी तो उसकी कार्ययोजना क्या होगी और उन्ही मुद्दों के आधार पर ही चुनावी सभाओं में भाषण दिए जाते हैं ! लेकिन क्या हकीकत में सत्ता में आने के बाद उन वादों और चुनावी घोषणापत्रों में शामिल मुद्दों का कोई महत्व सत्तारूढ़ पार्टी के लिए रह भी जाता है ! अगर मोदी सरकार के इस शुरूआती दौर को देखें तो सबकुछ उल्टा उल्टा सा ही दिखाई दे रहा है ! वादे और मुद्दे कुछ और थे और सरकार का रवैया कुछ और दिखा रहा है ! 

जम्मू काश्मीर से धारा ३७० को हटाने के पक्ष में भाजपा सदा से रही है और ये मुद्दा भाजपा के हर घोषणापत्र में शामिल रहा है ! वाजपेयी सरकार के समय में इसको नहीं हटा पानें को लेकर भाजपा हमेशा यही दलील देती रही कि गटबंधन की मजबूरियों के कारण उसको इस मुद्दे को ठन्डे बस्ते में डालना पड़ा लेकिन अब भी उसके लिए ये मुद्दा है ! लेकिन अब जब भाजपा फिर पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में है तो उसको ये क्यों कहना पड़ रहा है कि धारा ३७० को हटाने का अभी कोई इरादा नहीं है ! जब प्रधानमंत्री कार्यालय के राज्य मंत्री जितेन्द्रसिंह नें धारा ३७० को हटाने को लेकर बयान दिया था तभी सरकार नें उस बयान को उनका निजी बयान कहकर पीछा छुडाया था और अब गृह राज्यमंत्री किजिजू भी कह रहें हैं कि धारा ३७० को हटाने का सरकार का कोई इरादा नहीं है !

मोदी जी नें अपनें चुनावी भाषणों में पिंक रिवोल्यूशन के नाम पर कत्लखानों को मिलने वाली सब्सिडी को लेकर तत्कालीन मनमोहन सरकार और सबसे ज्यादा सत्तासीन पार्टी कांग्रेस पर जबरदस्त हमला बोला था ! लेकिन हैरानी की बात है कि जब मोदी सरकार का खुद का बजट संसद में प्रस्तुत हुआ तो कत्लखानों को लेकर वही नीति अपनाई गयी जिसकी आलोचना करते हुए मोदी जी सत्ता तक पहुंचे थे ! वैसे भी गौहत्या भाजपा का सदैव मुद्दा रहा है फिर क्या कारण था कि मोदी सरकार को उन्ही नीतियों पर आगे बढ़ना पड़ रहा है जिन को लेकर वो कांग्रेस पर हमेशा से आक्रामक रहे हैं ! 


हिंदी को राजभाषा बनाना भी भाजपा का अहम मुद्दा रहा है लेकिन अभी पिछले दिनों गृह मंत्रालय के एक आदेश को लेकर मीडिया में समाचार आये तो सरकार नें इस मुद्दे पर रक्षात्मक रुख अख्तियार करते हुए कहा कि उसका हिंदी को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर ऐसा करनें का कोई इरादा नहीं है ! वो आदेश तो केवल हिंदीभाषी राज्यों को लेकर ही था ! इस तरह से रक्षात्मक रुख अपनाने का क्या औचित्य था या फिर क्या भाजपा सत्ता में आने से पहले जानती नहीं थी कि हिंदी को लेकर तमिलनाडु के वो राजनितिक दल तो विरोध करेंगे ही जिनको सत्ता की सीढ़ी पर इसी हिंदी विरोध नें पहुंचाया था और अन्य दल भी उनकी देखादेखी विरोध करेंगे !

भाजपा के घोषणापत्र में शामिल कई मुद्दे ऐसे हैं जिन पर आम सहमति कभी भी नहीं बन सकती लेकिन उनको लागू करना देशहित में जरुर हैं ! वैसे भी राजनीति में कितना भी अच्छा और सही मुद्दा हो सभी पक्ष एकमत हो ही नहीं सकते तो फिर इन मुद्दों पर ऐसी आशा रखना मूर्खता के सिवा क्या है ! कहीं ऐसा तो नहीं कि भाजपा खुद भी इन मुद्दों से बचने की कोशिश कर रही हो और उसके लिए ये केवल चुनावी मुद्दे ही हो !

8 टिप्‍पणियां :

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

थैला बदला है अंदर के सड़े आलू जो क्या वो अगले चुनाव में बदल दिये जायेंगे चिंता ना कीजिये सो लीजिये चैन से और पाँच साल 65+5 = 70

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, गाँधी + बोस = मंडेला - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

रविकर ने कहा…

बढ़िया प्रस्तुति-
आभार आपका

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आपका कहना सही ही प्रतीत हो रहा है !!
सादर आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

सहर्ष सादर आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

सहर्ष आभार !!

dr.mahendrag ने कहा…

सारे निर्णय अभी दो महीने में ही ले ले ?साल दो साल निकल जाने दो , फिर यह पूछे तो वाजिब बनता है , अभी आते ही तलवारें लड़ा देना कोई समझदारी नहीं कुछ लोगों की आदत मीन मेख ढूंढने की होती है ,तो वे अपनी आदतों से बाज़ भी नहीं आ पाते विपक्ष विचारधारा हो तो कांटा कुछ ज्यादा ही रड़कता है , लेकिन अभी से ही ऐसा सोचना शायद अन्याय होगा , परिवर्तन हुआ है तो उसे शीतल मन से स्वीकर कीजिये , इसमें कोई हर्ज़ नहीं

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आदरणीय , शायद आपनें मेरे लेख को या तो ठीक से पढ़ा नहीं या फिर में अपनें लेखन से आपको समझाने में असफल रहा हूँ ! मेरा आशय मीन मेख निकालनें का कतई नहीं है बल्कि मेरा कहनें का आशय केवल और केवल इतना था कि जिस भाजपा के लिए जो मुद्दे हमेशा सर्वोपरी रहें हैं उन पर अब वो मुकरने क्यों लगी है ! नैतिकता के नाते उसको इन मुद्दों पर अडिग रहना चाहिए !
सादर आभार !!