मंगलवार, 7 जनवरी 2014

" आम आदमी पार्टी " पर मीडिया की मेहरबानी !!

पिछले कुछ समय से व्यस्तता के चलते ब्लोगिंग को समय नहीं दे पाया और यह व्यस्तता अभी कुछ दिन और बनी रहेगी ! इसी व्यस्तता के बीच दिल्ली में "आप" की सरकार बन गयी लेकिन दिल्ली में जब से आप पार्टी की सरकार बनी है तब से मीडिया द्वारा आप पार्टी के समर्थन में बिरदावलीयों का दौर अनवरत जारी है ! वैसे में इसको मीडिया की नासमझी नहीं कहूँगा क्योंकि अन्ना आंदोलन से लेकर दिल्ली चुनावों तक सब कुछ मेरी नजर में है जहाँ हर जगह मीडिया ने अपनी परोक्ष भूमिका अदा की है ! वो अन्ना आंदोलन की अनवरत कवरेज हो या फिर राजनैतिक पार्टी के गठन को समर्थन देना और दिल्ली विधानसभा चुनावों में प्रचारक की भूमिका निभाना शामिल है !!

वर्तमान में मीडिया बिरदावलीयों को किनारे कर दें और हकीकत का सामना करें तो मुझे आम आदमी पार्टी की दिल्ली में जीत पर कोई आश्चर्य नहीं हुआ ! जिसका कारण स्पष्ट है क्योंकि आम आदमी पार्टी का सकारात्मक चुनाव प्रचार खुद मीडिया कर रहा था और जिसमें मीडिया खुद सक्रिय भूमिका निभाता है उसका असर तात्कालिक तौर पर जरुर पड़ता है ! जिसका उदाहारण हम अन्ना आंदोलन , दामिनी कांड से लेकर दिल्ली में आम् आदमी पार्टी की जीत तक देख ही चुके हैं ! इसलिए ये आम आदमी पार्टी की जीत कम और मीडिया की भूमिका की जीत ज्यादा मानी जानी चाहिए !!

गुरुवार, 4 अप्रैल 2013

अरविन्द केजरीवाल के समर्थक नदारद !!

दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल महंगी बिजली और पानी को लेकर अनशन कर रहें हैं और अनशन करते हुए बारह दिन हो गये लेकिन लगता है सरकार उनको खास तवज्जो नहीं देना चाहती है ! और इस बार युवा प्रदर्शनकारियों और मीडिया का भी उनको सहयोग नहीं मिल रहा है ! और यही कारण है कि सरकार के कानों पर उनके अनशन को लेकर जूं तक नहीं रेंग रही है ! लेकिन ऐसा होनें के पीछे खुद अरविन्द केजरीवाल के बर्ताव अथवा सोच ही है जिन्होंने यह कहकर आप पार्टी का गठन किया था कि अनशन को सरकार गंभीरता से नहीं ले रही है ! इसलिए अब अनशन करने का कोई फायदा नहीं है ! अब तो चुनाव लड़कर लोकसभा में पहुंचकर ही कुछ किया जा सकता है !

जब इसी सोच के तहत "आप" पार्टी का गठन किया गया था तो फिर अब अरविन्द केजरीवाल अनशन पर क्यों बेठे हैं ! और जब अनशन ही करना था तो अन्ना हजारे भी तो उसी रास्ते पर चल रहे थे ! फिर केजरीवाल नें अपना अलग राजनैतिक रास्ता क्यों चुना ! इसी सवाल का जवाब युवाओं को नहीं मिल रहा है और जब युवाओं को उनके इस सवाल का जवाब ही नहीं मिल रहा है तो वो फिर अरविन्द केजरीवाल के साथ भला क्यों आयेंगे ! अन्ना हजारे कि नैतिक शुचिता और मीडिया के सहयोग के कारण ही युवावर्ग जन लोकपाल आंदोलन के साथ जुड़ा हुआ था ! लेकिन जब अन्ना का रास्ता अलग हो गया और मीडिया भी साथ छोड़ गया तो केजरीवाल के पास समर्थकों का अकाल सा पड़ गया !

सोशल मीडिया से जुड़े हुए युवाओं में भी जन लोकपाल आंदोलन के समय जो जोश नजर आता था वो अब केजरीवाल के समर्थन में दूर दूर तक नजर नहीं आता है ! समर्थन तो दूर कि बात है अब तो शोशल मीडिया में केजरीवाल के विरोध अथवा चुटकियाँ लेने के स्वर ज्यादा दिखाई दे रहें हैं ! जिसका सीधा सा अर्थ है कि अनशन स्थल से लेकर शोशल मीडिया तक हर जगह से केजरीवाल के लिए अच्छे संकेत दिखाई नहीं दे रहे हैं ! और उनके लिए उनका असली रास्ता जो उन्होंने चुना है वो तो इससे भी कठिन साबित होने वाला है !