शनिवार, 4 मई 2013

आजादी के बाद से ही हम कूटनीतिक तौर पर विफल साबित हुए हैं !!

भारत को जब से आजादी मिली है तब से लेकर आज तक हम कूटनीतिक तौर पर विफल साबित होते आ रहें हैं  जिसका नतीजा यह हुआ कि हमारे कुछ भूभाग पर चीन १९६२ से काबिज है तो कुछ भाग पर एक अदना सा देश पाकिस्तान १९४७ से काबिज है ! और हम अपनी संसद में उस भूभाग को वापिस लेनें कि प्रतिबद्धता वाले प्रस्ताव पास करने के सिवा कुछ भी नहीं कर पाए ! और अब चीन नें एक बार फिर भारतीय सीमा का अतिक्रमण करके उन्नीस किलोमीटर भीतर घुस कर बैठ गया है ! जिसका अर्थ है कि एक बार फिर चीन हमारे भूभाग पर कब्ज़ा जमाने कि कोशिश कर रहा है ! उस पर भी भारत सरकार का नरम रुख इसी और संकेत करता है कि यह भूभाग भी शायद ही हमें अब वापिस मिले !

दरअसल यहाँ भी वही बात हो रही है कि कुछ लम्हों नें गलतियां कि और सजा सदियों को मिली क्योंकि हमारे सताधिशों नें १९५४ में एक गलती  पंचशील समझौते पर बिना सोचे समझे भरोसा करने की थी ! जबकि उसी समझौते में वो धोखा छुपा हुआ था जिसका भान हमारे तब के सताधिशों को होना चाहिए था ! उस समझौते की जो समयसीमा थी वो केवल आठ साल की थी और ये समयसीमा देखकर हमारे तब के सताधिशों को विचार करना चाहिए था कि चीन केवल आठ साल के लिए ही हमसे दोस्ती क्यों चाहता है ! जिसमें हमारे देश के तब के कर्णधार असफल साबित हुए और चीन ना केवल अपनी योजना में कामयाब हुआ बल्कि उसनें अपनी योजना से बढ़कर हासिल किया ! इन्ही आठ सालों में उसने वो किया जिसके लिए उसने हमसे पंचशील का समझौता किया !

चीन सदा से ही एक महत्वाकांक्षी देश रहा है और तिब्बत भावनात्मक रूप से भारत के ज्यादा करीब था और भारत और चीन के बीच की दीवार भी था इसीलिए वो सीधा हमला तिब्बत पर नहीं कर सकता था क्योंकि तब तिब्बत को भारत से सहायता मिलनें का खतरा था ! और तब चीन इतना ताकतवर नहीं था ! और चीन कि यही योजना थी कि इन आठ वर्षों में तिब्बत पर कब्ज़ा किया जाए ! जिसको उसने १९५९ में अंजाम भी दिया और पंचशील समझौते की भूलभुलैया में हमारे तब के सताधिशों नें तिब्बत कि तरफ उदासीन रवैया अपना लिया और भारत और चीन के बीच जो दिवार थी उसको चीनी कब्जे में जाने दिया ! चीन की जब अपनी योजना कामयाब हो गयी तो उसनें अपनी तैयारी को पुख्ता किया और इन्तजार किया पंचशील समझौते कि समयसीमा समाप्त होनें का ताकि उस पर पंचशील समझौते के उलंघन का आरोप भी ना लगे और जो भारत पंचशील कि भूलभुलैया में है उसका भी फायदा उठाया जा सके ! जिसका परिणाम १९६२ का युद्ध था जिसके बारे में सबको पता ही है कैसे हमारा बहुत बड़ा भूभाग चीन के कब्जे में चला गया !

शुक्रवार, 15 मार्च 2013

हमारी गलतियों का खामियाजा तो हमें हि भुगतना होगा !!

एक अटल सत्य है कि गलती करने वाले को हि अपनी गलती का नुकशान उठाना पड़ता है ! लेकिन  इतनी सी बात हमारे देश के कर्णधारों को समझ में नहीं आ रही है और इसका खामियाजा भारत बराबर भुगतता आ रहा है और यही रवैया रहा तो आगे भी भारत को तो भुगतना हि पड़ेगा ! अब गलती आप करेंगे और उसका नुकशान उठाने के लिए भी आपको हि तैयार रहना होगा भले हि आप उसका दोष किसी दूसरे पर थोप दें लेकिन जिस पर आप दोष डाल रहें हैं उसका तो कुछ भी बुरा होने से रहा ! 

बात चाहे इटली के नौसैनिकों की हो या फिर पाकिस्तान द्वारा पोषित आतंकवाद कि हो हर जगह भारत के हुक्मरानों की असफलता साफ़ नजर आती है अब वो इसके लिए भले हि वो दोष इटली को दें या फिर पाकिस्तान को दें ! लेकिन सच्चाई यही है कि उनको अपनी खुद की गलती नजर नहीं आती है ! अभी हाल हि में हुयी दो घटनाओं का जिक्र यहाँ जरुर करना चाहूँगा जिनमें भारतीय सताधिशों की गलतियां खुद चीख चीख कर बता रही है कि भारतीय सताधिशों नें गलतियां की है लेकिन अफ़सोस तो तब होता है जब भारतीय सताधिश खुद ये मानने को तैयार नहीं है कि उनसे कोई गलती हुयी है !

अभी हाल हि में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री कि निजी यात्रा के समय भारतीय विदेशमंत्री द्वारा दिए गये भोज नें हमारा मजाक उड़ाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी ! उनके द्वारा पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को दिए गये भोज के बाद पाकिस्तानी मीडिया नें जोर शोर से यह प्रचार करना शुरू कर दिया कि सीमा पर भारतीय सैनिकों कि ह्त्या पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा करने कि बात भारतीय सरकार और भारतीय मीडिया द्वारा गढा गया झूठ है और इसके पक्ष में दलील यह है कि अगर ये बात सच होती तो भारतीय विदेशमंत्री  पाकिस्तानी प्रधानमंत्री से मिलते भी नहीं , भोज देना तो दूर कि बात होती ! और दुनिया इस सच को जानती है कि जिसके दिए जख्मों से दिल छलनी हो तो मिलना तो दूर देखना भी अच्छा नहीं लगता और यहाँ तो हम उनसे मिलने के लिए दिल्ली से जयपुर का रास्ता भी तय कर लिया !