
दरअसल यहाँ भी वही बात हो रही है कि कुछ लम्हों नें गलतियां कि और सजा सदियों को मिली क्योंकि हमारे सताधिशों नें १९५४ में एक गलती पंचशील समझौते पर बिना सोचे समझे भरोसा करने की थी ! जबकि उसी समझौते में वो धोखा छुपा हुआ था जिसका भान हमारे तब के सताधिशों को होना चाहिए था ! उस समझौते की जो समयसीमा थी वो केवल आठ साल की थी और ये समयसीमा देखकर हमारे तब के सताधिशों को विचार करना चाहिए था कि चीन केवल आठ साल के लिए ही हमसे दोस्ती क्यों चाहता है ! जिसमें हमारे देश के तब के कर्णधार असफल साबित हुए और चीन ना केवल अपनी योजना में कामयाब हुआ बल्कि उसनें अपनी योजना से बढ़कर हासिल किया ! इन्ही आठ सालों में उसने वो किया जिसके लिए उसने हमसे पंचशील का समझौता किया !
चीन सदा से ही एक महत्वाकांक्षी देश रहा है और तिब्बत भावनात्मक रूप से भारत के ज्यादा करीब था और भारत और चीन के बीच की दीवार भी था इसीलिए वो सीधा हमला तिब्बत पर नहीं कर सकता था क्योंकि तब तिब्बत को भारत से सहायता मिलनें का खतरा था ! और तब चीन इतना ताकतवर नहीं था ! और चीन कि यही योजना थी कि इन आठ वर्षों में तिब्बत पर कब्ज़ा किया जाए ! जिसको उसने १९५९ में अंजाम भी दिया और पंचशील समझौते की भूलभुलैया में हमारे तब के सताधिशों नें तिब्बत कि तरफ उदासीन रवैया अपना लिया और भारत और चीन के बीच जो दिवार थी उसको चीनी कब्जे में जाने दिया ! चीन की जब अपनी योजना कामयाब हो गयी तो उसनें अपनी तैयारी को पुख्ता किया और इन्तजार किया पंचशील समझौते कि समयसीमा समाप्त होनें का ताकि उस पर पंचशील समझौते के उलंघन का आरोप भी ना लगे और जो भारत पंचशील कि भूलभुलैया में है उसका भी फायदा उठाया जा सके ! जिसका परिणाम १९६२ का युद्ध था जिसके बारे में सबको पता ही है कैसे हमारा बहुत बड़ा भूभाग चीन के कब्जे में चला गया !