मंगलवार, 12 फ़रवरी 2013

अफजल कि फांसी और राजनीति का गहरा संबंध है !!

अफजल गुरु को फांसी होनी हि थी और वो हो गयी लेकिन इसको लेकर जो राजनैतिक दांव आजमाए गये उसके बाद भी सरकार के मंत्री और कांग्रेस के नेता जो कह रहे है कि अफजल को फांसी में राजनीति नहीं हुयी है बल्कि कानूनी प्रक्रिया का पालन किया गया है वो हास्यास्पद हि कहा जाएगा ! अफजल के मामले में सरकार खुद अपने हि बयानों को लेकर कठघरे में खड़ी हो गयी है और उसके बावजूद भी वो कह रही है कि इसमें राजनीति नहीं की गयी है !

पहली बात तो यह है कि अफजल को फांसी कि सजा का फैसला २००६ में हि हो गया था तो इसको इतना लंबा खींचना क्या राजनीति नहीं थी ! अफजल को फांसी देने में जानबूझकर देरी की गयी ताकि उन लोगों को अफजल के प्रति सहानुभूति अर्जित करने का मौका मिल सके जो लोग अफजल के पक्ष में आवाज उठा रहे थे ! अफजल को फांसी देने कि मांग बार बार विपक्ष और शहीदों के परिजनों द्वारा कि गयी और इस देरी के विरोध में संसद हमले में शहीद हुए परिवारों नें तो अपने पदक तक राष्ट्रपति को लौटा दिए थे लेकिन तब सरकार नें शहीदों के परिवारों की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया गया और सरकार द्वारा बार बार यही तर्क दिया जाता रहा कि दया याचिकाओं का फैसला वरीयताक्रम से होगा और जब अफजल का क्रम आएगा तब उसका भी फैसला हो जाएगा !

सरकार अगर कहती है कि राजनीति नहीं हुयी तो पहले ये बताए कि जिस अफजल गुरु कि दया याचिका शहीदों के परिजनों और विपक्ष ,देश के दबाव के बावजूद वरीयताक्रम में ऊपर नहीं आ पायी वो अब अचानक से वरीयताक्रम में ऊपर कैसे आ गयी ! अगर सरकार कहती है कि राजनीति नहीं हुयी तो इस बात का जवाब सरकार को देश को देना हि होगा ! इसमें कोई दो राय नहीं कि इसमें राजनीति हुयी है ! लेकिन अब जो भी हुआ अफजल को उसके किये कि सजा मिल गयी ! लेकिन अभी भी कई और लोगों पर फैसला होना बाकी है जिन पर फैसला कब होता है यह देखना है !


अब तक जो भी हुआ हो लेकिन अब समय आ गया है कि राष्ट्रपति को भेजी जाने वाली दया याचिकाओं पर फैसला लेने कि समय सीमा निर्धारित की जाए ताकि इन दया याचिकाओं पर फैसले लेने में होने वाली देरी से गलत सन्देश ना जा सके ! अब तक कि दया याचिकाओं के निपटारे कि बात की जाए तो कम से कम १८ दिन और अधिक से अधिक १२ साल में दया याचिकाओं पर फैसला हुआ है जो फैसलों में एकरूपता का अभाव साफ़ तौर पर दिखाता है ! और इसी देरी के कारण फांसी कि सजा पाने वाले इन आतंकवादियों के पक्ष में कुछ लोग माहौल बना देते हैं ! जैसा कि राजीव गांधी ,बैअंत सिंह और अफजल के मामले में हो चूका है और राज्यों की विधानसभाएं तक इन आतंकवादियों के पक्ष में फांसी नहीं देने के प्रस्ताव तक पारित कर देती है ! इसलिए जरुरी है कि फांसी की सजा पाए लोगों पर फैसला एक निश्चित समयसीमा के भीतर हि हो !

10 टिप्‍पणियां :

रविकर ने कहा…

यानों को देते उड़ा, करें नेस्तनाबूद |
झटपट किन्तु वसूलता, अमरीका मय सूद |
अमरीका मय सूद, दूध हम यहाँ पिलाते |
अपनी संसद पाक, पाक लेकिन दहलाते |
राजनीति का खेल, खेल खुल्ला शैतानों |
महज वोट अभियान, धत धत अरे बयानों ||

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आभार !!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

11 साल से राजनीति ही तो होती रही है!

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

हर तरह से स्वार्थपरक ही हो चला है राजनीतिक माहौल....

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आपका कहना सही है कदम कदम पर राजनीति होती है फिर भी कहते हैं कि इसमें राजनीति नहीं हुयी !

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आपका कहना अक्षरशः सत्य है !!

Vishal Rathod ने कहा…

kyaa hoga is desh kaa ?

संध्या शर्मा ने कहा…

कहाँ नहीं होती है आजकल राजनीति, यहाँ तो लोग मौत को भी भुना लेते हैं...

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

अपने आप कुछ नहीं होगा जनता को जागरूक होना होगा !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आपका कहना सही है हर बात में राजनीति खोजी जाती है !