भाजपा में पिछले पांच दिनों में जो घटनाक्रम सामने आया उसनें भाजपा की जगहंसाई करवाने कोई कसर नहीं छोड़ी ! और खासकर लालकृष्ण आडवाणी जी नें तो मानो भाजपा की जगहंसाई का ठान ही राखी थी ! पहले गोवा में कार्यकारिणी की बैठक में नहीं जाना और उसके बाद जिस तरह से इस्तीफे दिए ! मानो आडवाणी जी कह रहे हो कि में तो बदनाम होऊंगा ही लेकिन जितनी बदनामी में भाजपा की कर सकता हूँ उतनी तो करने की कोशिश तो जरुर करूँगा !
इस पुरे घटनाक्रम को देखें तो सबसे ज्यादा किरकिरी भी आडवाणी जी की हुयी और भाजपा के कार्यकर्ताओं के मन में आडवाणी जी के प्रति जो सम्मान पहले था वो अब नहीं रहेगा ! जिसके लिए उत्तरदायी केवल और केवल आडवाणी जी ही है क्योंकि पिछले पांच दिनों से चले घटनाक्रम में आडवाणी जी का चेहरा एक सुलझे हुए बुजुर्ग नेता के बजाय सत्ता लालसा में डूबे नेता का ही दिखाई दिया ! पार्टी के लोकतंत्र का सम्मान करने कि बजाय आडवाणी जी नें एक अलग और ऐसा रास्ता अपनाया जो पार्टी के अंदरूनी लोकतंत्र के विपरीत जाता था ! आडवाणी जी की अपनी छवि भले ही धूमिल हुयी हो लेकिन क्रमबद्ध चले इस घटनाक्रम से पार्टी की छवि को भी नुकशान तो पहुंचा ही है !
आडवाणी जी को पहले ही पता था कि वो गोवा जाकर भी नरेंद्र मोदी जी को चुनाव प्रचार समिति के अध्यक्ष बनने से रोक नहीं सकते क्योंकि भाजपा के ज्यादातर जनाधार वाले नेता नरेंद्र मोदी जी के पक्ष में थे ! इसीलिए उन्होंने कोपभवन जाने का फैसला किया और मीडिया में बीमारी की बात फैलाकर घर बैठे रहे ! लेकिन फिर भी वो नरेंद्र मोदी जी को चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बनने से रोक नहीं पाए ! तब आडवाणी जी नें अपनी दूसरी चाल का पासा फैंका और चुन चुनकर पदों से इस्तीफे दिए ! जिनको बाद में वापिस भी ले लिया ! और आडवाणी जी अपनी दूसरी चाल में कामयाब रहे !
भले ही शुरूआती तौर पर आडवाणी जी अलग थलग दिखाई दिए हो और हालात भाजपा बनाम आडवाणी हो गए हो लेकिन अंत में आडवाणी अपनी राजनैतिक चालों में जीत गए और भाजपा जीत कर भी हार गई जिसका परिणाम निसंदेह २०१४ के चुनावों में जरुर दिखाई देगा ! जिस तरह से सुचना माध्यमों के जरिये सूचनाएं आ रही है और यह बताया जा रहा है कि भाजपा चुनावों से पहले किसी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार नहीं बनाएगी और चुनावों के बाद आडवाणी जी को भी छ:महीने के लिए प्रधानमंत्री बनाया जा सकता है ! अब यह सूचनाएं सही है तो यहाँ पर सवाल ये उठता है कि पहले ही आडवाणी जी और मोदी के इस प्रकरण के बाद क्या कार्यकर्ता इस पर विश्वास कर पायेंगे कि आडवाणी जी फिर छ: महीने बाद जब प्रधानमंत्री के पद से हटने का समय आएगा तो कोई और राजनितिक चाल नहीं चलेंगे और इसी घटनाक्रम को फिर नहीं दोहराएंगे !
मुझे नहीं लगता कि उस स्थति में जब मोदी जी को प्रधानमन्त्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया जाएगा तो कार्यकर्ता उस जोश के साथ चुनावों में जा पायेंगे ,जिस जोश के साथ वो मोदी को उम्मीदवार घोषित होनें के बाद चुनावों में भाग लेते ! कार्यकर्ताओं की बात छोड़ दीजिए जनता को कैसे भरोसा दिलाया जाएगा कि भाजपा को जनता अगर सत्ता के लिए आगे बढ़ाती है तो अगला प्रधानमंत्री कौन होगा जबकि अब तक भाजपा हर चुनावों में अपने पहले से तय उम्मीदवार के साथ मैदान में उतरती आई है ! वैसे भी तमाम सर्वेक्षण भी यही बता रहें हैं कि भाजपा मोदी जी के साथ उतरती है तो सत्ता के नजदीक पहुँच सकती है और बिना मोदी जी के उसको सत्ता से दूर ही रहना होगा !
दरअसल आडवाणी जी को लगता है कि यूपीए सरकार की नाकामियों की वजह से भाजपा को सत्ता मिल जायेगी और अगर मोदी जी दूर रखा जा सके तो उनको मौका मिल सकता है ! लेकिन स्थतियाँ इतनी सहज भी नहीं है कि बैठे बिठाए जनता सत्ता भाजपा को दे देगी ! अगर ऐसा होता तो २००९ में भी यूपीए सरकार की तमाम नाकामियों के बावजूद भी जनता नें आडवाणी जी के नेतृत्व में भाजपा को सत्ता से दूर ही रखा था ! और मुझे लगता है कि आडवाणी जी शतरंजी चालें कामयाब होती गयी तो २०१४ के चुनाव परिणामों की आशा भी कुछ वैसी ही की जा सकती है और यूपीए तीसरी बार सत्ता संभालने में कामयाब हो सकता है !
15 टिप्पणियां :
बढ़िया आलेख !
latest post: प्रेम- पहेली
LATEST POST जन्म ,मृत्यु और मोक्ष !
सामयिक हालात पर बढिया आलेख, इन नेताओं और इनकि पार्टियों की ना तो कोई इज्जत कम होती है और ना ही कोई किरकरी होती है, सत्ता सुंदरी का घूंघट उठाने के लिये ये किसी भी हद तक जा सकते हैं.
रामराम.
आज भाजापा जिस मुकाम पर है इसका श्रेय सिर्फ आडवानी को जाता है,,,५० वर्षों से पार्टी की सेवा करने के बाद पीएम पद की दावेदारी तो बनती,रही बात मोदी की तीन बार सरकार बनाना अगर दावेदारी है तो तीन बार शीला दीक्षित,सात बार सरकार बनाने वाली कमुनिष्ट पार्टी, पीएम बन गए होते,मेरे हिसाब से अडवानी जी का निर्णय सही था,,,
recent post : मैनें अपने कल को देखा,
बहुत सही बात कही है आपने . आभार रुखसार-ए-सत्ता ने तुम्हें बीमार किया है . आप भी दें अपना मत सूरज पंचोली दंड के भागी .नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN क्या क़र्ज़ अदा कर पाओगे?
मेरे ख्याल से तो आडवाणी जी फैसला सही था,पार्टी के अंदुरुनी कलह तो अभी भी जारी है।
सही कहा है ताऊ !!
राम राम,आभार !!
हर पार्टी को खड़ा करनें में हर किसी का योगदान होता है इसलिए में इस बात से इतफाक नहीं रखता कि भाजपा को खड़ा करनें का श्रेय केवल और केवल आडवाणी जी को ही जाता है ! हाँ उनका योगदान था जिससे कौन इनकार कर सकता है और उसके लिए उनको प्रधानमंत्री बनने का मौका दिया भी गया था लेकिन जब जनता नें उन पर भरोसा नहीं किया तो क्या अनवरत उनको ही मौका देकर भाजपा खुद अपने डेथ वारंट पर हस्ताक्षर क्यों करेगी ! एक बात और मोदी की दावेदारी तीन बार सरकार बनाने से नहीं बनती है बल्कि जनता और पार्टी कार्यकर्ताओं में लोकप्रियता के कारण बनी है !!
सादर आभार !!
मेरे विचार में आडवाणी जी का फैसला सही नहीं था !!
आभार !!
आडवानी ने भी अपनी उम्र भर का सारा कता बीना कपास कर लिया.समय की धार को समझ जाने के बावजूद उनका सत्तालोलुप मन अपनी पुराणी दबी हुई इच्छाओं को नियंत्रित न रख सका,और उन्हें अपनी प्रतिष्ठा के लिए ऐसा आत्म घाती कदम उठाने को प्रेरित कर दिया उनके आसपास के थिंक टैंक ने भी उनकी वरदावास्थाका लाभ उठाकर अपनी महत्वाकंषाएं पूरी करने के लिए इस गर्त में धकेल दिया .अब वे चाहे कितना ही प्रयास कर लें,वह बात नहीं बनेगी जो भा ज पा परिवार में पहले थी.अब तो सिवाय पछताने के और कुछ नहीं.पार्टी को मोदी के चुनाव प्रभारी बनने से,क्या लाभ होगा या नहीं होगा यह तो बाद की बात है,अभी ये तो अपने आप ही हाशिये पर आ गए .और यह शायद उनके राजनितिक जीवन की बड़ी भूलों .में से एक बड़ी भूल या चूक रहेगी,जो उन्हें जीवन भर सालती रहेगी.
आदरणीय आपका एक एक वाक्य सच है !!
सादर आभार !!
आडवाणी की महत्वाकांक्षा बढ़ती जा रही है।
अंकुश लगाना जरूरी है..
सटीक आलेख पूरण जी।
आभार मनोज जी !!
मोदी जी का प्रचार समिति का अध्यक्ष बनना या पी एम् की दावेदारी हो ,ये बात सिर्फ ये जाहिर करती है की पूरी भाजपा एक व्यक्ति के इर्द गिर्द घूम रही है,आडवाणी जी का पार्टी को जो योगदान है उसे पार्टी को नहीं भूलना चाहिए
मोदी जी का मकसद है -मुझे पी एम् बनना है , किसी भी पार्टी के किसी भी नेता का ऐसा विचार नहीं होना चाहिए |
मञ्जूषा जी , हर कोई चाहता है कि में प्रधानमंत्री बनूँ ,खुद आडवाणीजी कि भी तो यही ख्वाहिश है जिसके कारण ही तो मोदी जी की राह में रोड़े अटका रहें हैं लेकिन मोदीजी को छोड़कर किसी अन्य के साथ कार्यकर्ताओं का साथ नहीं जिसके कारण उनका दावा कमजोर है और ये कहना गलत है कि पार्टी एक व्यक्ति के इर्द गिर्द घूम रही है क्योंकि मोदी जी को थोपा नहीं गया है बल्कि मोदी जी के पक्ष में भाजपा के सब नेताओं की सहमति है और उनकी रजामन्दी के कारण ही मोदी जी को चुना गया है !!
आभार !!
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