शनिवार, 3 जुलाई 2021

गौमाता की सुध कब लेगी मोदी सरकार !!!

भाजपा विपक्ष में थी तब गौहत्या रोकने के लिए केन्द्रीय कानून की मांग करती थी लेकिन अब जब वो सत्ता में है तो इससे कन्नी काट रही है और इस पर बोलने से भी बच रही है ! सत्ता से बाहर थे तब सत्ता पाने के लिए गौमाता का सहारा लिया और सत्ता में आने पर उसी गौमाता को भूल गए ! इस मुद्दे पर तो भाजपा नें कांग्रेस से दौ कदम आगे बढ़कर काम किया और प्रधानमंत्री नें गौरक्षकों को गुण्डा तक कह दिया ! इसका मतलब है कि भाजपा अब गौमाता की सुध कभी नहीं लेने वाली है !



राजनितिक नेताओं की नियत को जनता कैसे पहचान सकती है क्योंकि इन्हीं नरेंद्र मोदी जी नें २०१४ के चुनावों से पहले पिंक रिवोल्यूशन कहकर गौहत्या पर तत्कालीन कांग्रेस सरकार पर निशाना साधा था लेकिन सत्ता में आये तो पिंक रिवोल्यूशन भूल गए और वही डॉलर इनको प्रिय हो गए जो कांग्रेस को थे ! ये तो कांग्रेस से भी दौ कदम आगे बढ़कर गौरक्षकों को गुंडा बताने में लग गए !

मोदी जी नें सत्ता में आने के बाद गौहत्या रोकने के लिए एक कदम नहीं उठाया जिससे ये लगे कि ये कुछ करेंगे क्योंकि कुछ करने की इनकी मंशा ही नहीं है ! कहा जाता है राजनीति में मुद्दे ख़त्म नहीं किये जाते तो ये भी ठीक उसी नक्शेकदम पर चल रहे हैं क्योंकि इनकी सोच है कि इन्हीं मुद्दों पर हमको ५० साल सत्ता मिलती रहे जो कभी होगा नहीं ! भाजपा को यह लगता है कि शुरू में कांग्रेस नें जिस तरह मुस्लिम लीग के मुकाबले हिन्दू पार्टी होने के कारण इतनी साल सत्ता भोग ली तो हम भी भोग लेंगे तो यह उसकी मुर्खता है क्योंकि समय बदल चूका है अब संचार साधन बढ़ गए !

गुरुवार, 1 जुलाई 2021

सरकार की जन कल्याणकारी योजनायें छलावा है !

मोदी सरकार नें जन कल्याणकारी योजनाओं को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी और इनके सहारे वोट भी बटोरे लेकिन उसकी नीतियों से ये जन कल्याणकारी योजनायें लोगों को फायदा देनें में नाकाम रही ! सरकार एक तरफ सहायता देने का दिखावा कर रही है तो दूसरी तरफ सहायता से कई गुना ज्यादा लेने में भी परहेज नहीं कर रही है ऐसे में सरकार को जन कल्याणकारी सरकार कैसे कहा जा सकता है !
 
सरकार नें बड़े जोर शोर से उज्ज्वलता योजना उन लोगों के लिए शुरू की जो गैस कनेक्शन लेने की हालत में नहीं थे और कनेक्शन लेनें के लिए सहायता दी ! लेकिन फिर सरकार लगातार गैस सिलेंडर के दाम बढ़ाती गयी और आज ६०-७० % उज्ज्वला योजना धारक सिलेंडर को रिफिल नहीं करवा रहे हैं ! २०१६ में जब गैस सिलेंडर के दाम ५०० रूपये के आसपास थी तब सरकार की नजर में उन लोगों की क्षमता उतना वहन करने की भी नहीं थी लेकिन २०२१ में उन्ही लोगों से सरकार ८५० रूपये के आसपास लेने लगी ! ५०० रूपये जब थे तो लोगों को १७०-१८० रूपये सब्सिडी भी मिलती थी जो खाते में आती थी लेकिन कोरोना काल में सरकार नें मई २०२० में चुपचाप सब्सिडी बंद कर दी ! 
 
सरकार नें गैस सब्सिडी बंद करने में भी बड़ा खेल किया जो सिलेंडर ७०० रूपये के आसपास बिक रहे थे तो उनकी दरें कम करके ६०० रूपये के भीतर ले आई और सब्सिडी बंद कर दी ! कोरोनाकाल में लोग घरों में बैठे थे तब सरकार नें चुपके से सब्सिडी बंद कर दी लोगों को पता सितम्बर में लगा तब सरकार नें तर्क दिया कि सब्सिडी और गैर सब्सिडी वाले सिलेंडर की कीमतों में अंतर नहीं है इसलिए सब्सिडी बंद कर दी ! सरकार का यह तर्क हास्यास्पद था क्योंकि सरकार ही तो इनकी कीमतें तय करती है तो एक समान कीमतें होने कैसे दी ! हालांकि सरकार बहाना ये भी बनाती है कि कीमतें कम्पनियां तय करती है लेकिन सच्चाई तो यह है कि वो कम्पनियां भी सरकारी है और सरकारी मर्जी से ही काम करती है ! चुनावों में वही कम्पनियां कीमतें बढाने से परहेज करती है और चुनाव गुजरने के साथ ही उपभोक्ताओं पर कहर बरपा देती है !

गुरुवार, 9 अप्रैल 2020

निजामुद्दीन मरकज के मामले में सरकार का रवैया समझ से परे है !

निजामुद्दीन मरकज द्वारा  इतना बड़ा अपराध करने के बावजूद सरकार उसके ऊपर कारवाई करने से बचना क्यों चाहती है यह समझ में नहीं आ रहा है ! सरकार मौलाना साद और ५-६ अन्य लोगों के ऊपर कारवाई करके इस मामले में लीपापोती ही करना चाहती है ! अगर सरकार की मंशा वाकई कारवाई की होती तो मरकज पर अभी तक बेन लग जाना चाहिए था लेकिन  ऐसा नहीं हुआ जिससे सरकार की मंशा पर शक होना लाजमी है ! 

मरकज मामले में सरकार की भूमिका पहले दिन से ही संदेह के घेरे में आ गयी थी जब खबर ये आई कि अमित शाह के कहने पर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल मरकज के मौलाना साद को समझाने के लिए मरकज गए थे ! ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या सरकार को सब पहले से ही पता था और निचले स्तर के अधिकारियों के समझाने से मौलाना नहीं माने थे और सरकार नें अंतिम प्रयास के तौर पर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को भेजा था ! अगर ऐसा था तो भी सरकार पर ही सवाल उठेंगे कि जो व्यक्ति या संस्था ऐसी संकटकालीन परिस्थति में भी किसी की नहीं सुन रही थी तो उसकी मिन्नतें करने की जगह कारवाई क्यों नहीं की गयी !

सोमवार, 28 नवंबर 2016

केशलेश पालिसी अनिवार्य हो या एच्छिक !!

नोटबंदी पर सरकार को व्यापक जनसमर्थन मिला और यह कोई साधारण बात नहीं थी कि इतने बड़े फैसले पर देश की जनता प्रधानमंत्री के साथ खड़ी हो गयी ! लालबहादुर शास्त्री जी के बाद मोदी जी पहले प्रधानमंत्री होंगे जिन्होनें देश से एक अपील की और जनता साथ खड़ी हो गयी ! लेकिन मुझे अब ये समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर मोदी सरकार इस समर्थन को गंवाना क्यों चाह रही है ! आखिर मोदी सरकार इतनी हड़बड़ी में क्यों है कि नोटबंदी की समस्या से जनता उबर ही नहीं पायी है और सरकार ई वालेट,केशलेश इकोनोमी और लेशकेश इकोनोमी को लागू करनें की दिशा में आगे बढ़ने लग गयी है !

अगर सरकार केशलेश इकोनोमी को प्रोत्साहित करती और लोग उससे अपनी इच्छा से जुड़ते चले जाते तब तो ये भी स्वागत योग्य बात होती लेकिन सरकार तो इसको जबरदस्ती लागू करवाना चाह रही है बिना इस बात की परवाह किये कि जनता इसके लिए तैयार है भी या नहीं ! हालांकि मोदी जी नें सीधे जनता से कभी यह नहीं कहा कि वो इसको अनिवार्य रूप से लागू कर रहें हैं लेकिन उन्ही की सरकार के कई मंत्रालयों नें इस तरह के फरमान जारी कर दिए ! अब सवाल उठता है कि क्या केवल सरकारी फरमानों से केशलेश अर्थव्यवस्था लागू हो जायेगी !

प्रधानमंत्री जी नें कल कहा था कि ई वालेट बस व्हाट्सअप चलाने जैसा ही है तो प्रधानमंत्रीजी अभी तक तो देश में कई लोगों को तो यही पता नहीं है कि मोबाइल कैसे चलता है तो व्हाट्सअप क्या होता है उनको यह जानकारी कैसे होगी ! हाँ यह अलग बात है कि आप ऑनलाइन जुडना ज्यादा पसंद करते हैं और लोग आपसे ऑनलाइन जुड़ते भीं है तो आपनें मान लिया हो कि सभी केशलेश लेनदेन कर सकते हैं ! वैसे प्रधानमंत्रीजी ई वालेट का उपयोग करनें के लिए इतना तो जरुरी ही होगा कि वो लिखा हुआ पढ़ पाए तो पहले पता तो कीजिये देश में कितनें निरक्षर हैं !

शुक्रवार, 25 नवंबर 2016

सरकार की नोटबंदी योजना में सुराख नजर आने लगे !!


सरकार नें नोटबंदी की जो योजना लागू की वो अच्छी तो थी जिसका लोगों नें स्वागत भी किया लेकिन अब सरकार की इस योजना में कई कमियां भी नजर आनें लगी है ! अगर सरकार नें इनकी तरफ ध्यान नहीं दिया तो फिर इतनी कवायद का कोई लाभ भी नहीं होने वाला है ! फिर ये योजना केवल और केवल जनता को परेशान करने वाली योजना ही बनकर रह जायेगी ! अब तक नोटबंदी की जो योजना अच्छी नजर आ रही थी अब उसमें कई सुराख भी नजर आनें लगे हैं !

अभी कल ही दिल्ली में सताईस लाख रूपये के नए नोट पकडे गए हैं तो ऐसे में ये सवाल उठना लाजमी है कि आम जनता को जब बड़े पैमाने पर नए नोट दिए ही नहीं जा रहे हैं तो इन लोगों को इतनें रूपये नए नोटों में कहाँ से मिल गए ! नए नोट बैंको और डाकघरों के जरिये ही जनता तक पहुंचाए जा रहें हैं तो जाहिर है जिनको लाखों की संख्या में नए नोट मिले हैं वो बैंकों या डाकघरों के जरिये ही मिले होंगे ! और इससे पहले भी इस तरह के एक दौ मामले सामनें आये थे जो इतने बड़े नहीं थे ! ऐसे में यह बात तो निकलकर सामनें आ ही रही है कि कुछ बैंककर्मियों नें कोई सुराख तो खोज ही लिया है ! 

देश के कुछ क्षेत्रों के लोगों को आयकर से छुट मिली हुयी है जिसका फायदा भी पुरानें नोटों को नए नोटों में बदलने के लिए उठाया जा रहा है ! अभी हाल ही में साढे तीन करोड़ के पुरानें नोटों का जो मामला सामनें आया उससे तो यही लग रहा है ! सरकार को सोचना चाहिए कि जो मामले सामनें आते हैं वो तो एक बानगी भर होती है असल में तो ऐसे मामले बहुतायत में होते हैं जो पकड़ में नहीं आते !