मंगलवार, 20 अगस्त 2013

आँखों के लिए ज्योतिवर्धक आयुर्वेदिक नुस्खे !!

भारतीय समाज में आयुर्वेद हजारों वर्षों से चली आ रही चिकित्सा पद्धति है जिसमें रोगों को दूर रखने और रोगों के उपचार बारे में बताया गया है ! जिसमें साधारण और ऐसी जड़ी बूटियों द्वारा इलाज किया जाता है जो हमारे आस पास ही मौजूद होती है ! वैसे आयुर्वेद क्या दुनियाँ की कोई भी पद्धति इलाज की गारंटी नहीं लेती है और एक ही दवा का असर एक ही रोग के अलग अलग व्यक्तियों पर अलग अलग देखने को मिलता है और आयुर्वेदिक उपचार भी इससे अलग नहीं है लेकिन आयुर्वेदिक उपचार से फायदा हो या नहीं हो लेकिन उससे नुकशान तो कतई नहीं होता है और ये सबसे सस्ता भी है ! मैनें पहले भी कई तरह के उपयोगी आयुर्वेदिक नुस्खे बताए है और आज उसी कड़ी में आखों की ज्योति बढाने वाले कुछ नुस्खे आपके लिए लेकर आया हूँ जो सरल और सहज है !

१. बड़ी हरड १० ग्राम , बहेड़ा २० ग्राम ,आंवला ३० ग्राम ,मुलहठी ३ ग्राम , बंसलोचन ३ ग्राम और पीपर ३ ग्राम इनका अलग अलग बनाया चूर्ण लेकर उसमें लगभग १५० ग्राम मिश्री मिला लें ! इस मिश्रण में १० ग्राम देशी घी मिला लें ! तत्पश्चात इसमें इतना शहद मिलाएं कि चाटने लायक अवलेह (चटनी )बन जाए ! इस अवलेह को किसी कांच के मर्तबान में रख लें ! इसमें से छ: ग्राम की मात्रा में नित्य सोते समय चाटने से नेत्रों की ज्योति बढती है और नेत्रो के अन्य रोग भी नष्ट होते हैं !

२. बादाम गिरी २५० ग्राम, खसखस १०० ग्राम , सफ़ेद मिर्च ( काली मिर्च की तरह की होती है लेकिन सफ़ेद होती है ) ५० ग्राम का अलग अलग चूर्ण बनाकर देशी घी में भून लें ! इसके बाद इसमें १०० ग्राम मिश्री पीसकर मिलाकर किसी मर्तबान में रख दें ! इसको सुबह खाली पेट गर्म दूध के साथ दो चम्मच लेनें से आँखों की ज्योति को बढाने में बहुत फायदा होता है !

रविवार, 19 मई 2013

शुगर ( Diabetes ) को दूर भगाए इस घरेलु आयुर्वेदिक उपचार से !!

डाइबिटीज अथवा शुगर ( मधुमेह )एक ऐसी बीमारी है जो किसी को एक बार हो जाए तो लगातार एलोपेथिक दवाइयां लेनी पड़ती है और उसके बाद भी उससे छुटकारा दिला पाने में ये दवाइयां नाकाम रहती है ! आज में आपके सामने शुगर के लिए ऐसा आयुर्वेदिक नुस्खा लेकर आया हूँ जो आपको शुगर से निजात दिला सकता है और इसको घर पर तैयार किया जा सकता है ! जो बिलकुल सस्ता भी है ! घरेलु आयुर्वेदिक उपचार होने के कारण किसी तरह के नुकशान की कोई सम्भावना भी नहीं है ! आशा करता हूँ कि इस आयुर्वेदिक नुस्खे का प्रयोग करने वाले अपना अनुभव रूपी प्रतिक्रिया अवश्य देंगे ताकि अन्य लोग भी इसको आजमाने के लिए प्रेरित होंगे ! एक बात और यह केवल दो सप्ताह का हि उपचार है उसके बाद इसकी आवश्यकता नहीं है !

आवश्यक वस्तुएं :-
१. गेहूं का आटा                  -             १०० ग्राम 
२.वृक्ष से निकली गोंद        -             १०० ग्राम 
३.जौ                                 -             १०० ग्राम 
४.कलौंजी                         -              १०० ग्राम 

निर्माण विधि :-
उपरोक्त सभी सामग्री को पांच कप पानी में डालकर आग पर दस मिनट उबालें ! उसके पश्चात उसको नीचे उतारकर अपने आप ठंडा होने के लिए रख दें ! तत्पश्चात इस पानी को छानकर किसी बोतल या जग में सुरक्षित रख लें ! 

शुक्रवार, 3 मई 2013

घरेलु दर्दनाशक आयुर्वेदिक तेल !!

कई बार हमारे घुटनों,कमर ,पीठ एवं पंसलियों आदि में दर्द हो जाता है ! ऐसे ही दर्द को दूर करने के लिए बाजार में कई तरह के आयुर्वेदिक तेल मिलते हैं जिनसे मालिश करने से दर्द दूर हो जाता है ! आज ऐसा ही तेल बनाने कि विधि आपको बताता हूँ जो सस्ता ,सरल और अचूक है और घर पर आराम से बनाया जा सकता है ! 

सबसे पहले ४० ग्राम पुदीना सत्व ,४० ग्राम अजवायन सत्व और ४० ग्राम ही कपूर ले ! साफ़ बोतल में पुदीना सत्व डाल दें और उसके बाद अजवायन सत्व और कपूर को पीसकर उस बोतल में डाल दें जिसमें आगे पुदीना सत्व है ! उसके बाद ढक्कन लगाकर हिला दें और रख दें ! थोड़ी देर बाद तीनों चीजें मिलकर द्रव्य रूप में हो जायेगी और इसे ही अमृतधारा कहते हैं !

अब २०० ग्राम लहसुन लें और उसके छिलके उतार कर लहसुन कि कलियों के छोटे छोटे टुकड़े कर लें ! अब एक किलो सरसों का तेल कड़ाही में डालकर आंच पर गर्म होने के लिए रख दें ! जब तेल पूरी तरह से गर्म हो जाए तो तेल को निचे उतार कर ठंडा होने के लिए रख दें ! जब तेल पूरा ठंडा हो जाए तो उसमें लहसुन के टुकड़े डालकर उसको फिर आंच पर चढाकर तेज और मंदी आंच में गर्म करें ! तेल को इतना पकाए कि लहसुन कि कलियाँ जलकर काली हो जाए ! तेल के बर्तन को आंच पर से उतारकर निचे रखे और उसमें गर्म तेल में ही ८० ग्राम रतनजोत ( रतनजोत एक वृक्ष कि छाल होती है ) डाल दें इससे तेल का रंग लाल हो जाएगा !

तेल के ठंडा होने पर कपडे से छानकर किसी साफ़ बोतल में भर लें ! अब इस पकाए हुए तेल अमृतधारा और ४०० ग्राम तारपीन का तेल मिलाकर अच्छी तरह से हिला दें ! बस मालिश के लिए दर्दनाशक लाल तेल तैयार हो गया जिसका उपयोग आप जब चाहे कर सकते हैं !

सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

उच्च रक्तचाप ( HIGH BLOOD PRESSER ) के लिए आयुर्वेदिक उपचार !!

उच्च रक्तचाप की बीमारी हमारे समाज में खान पान और तनाव युक्त जीवन के कारण लगातार बढ़ रही है ! आयुर्वेद में इस बीमारी पर काबू पाने के लिए कुछ उपाय बताए गए हैं जिनको में आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ जिनका अगर प्रयोग किया जाए तो फायदा हो सकता है ! 

१. रात को तांबे के बर्तन में पाँव किलो पानी रखें और उसमें असली* रुद्राक्ष के आठ दाने डालकर रख दें ! रोजाना सवेरे उषापान के रूप में वह पानी पी जाएँ ! इसके नित्य प्रयोग से तीन माह में हि रक्तचाप कम हो जाएगा ! आप उन्ही दानों को तीन माह तक प्रयोग कर सकते हैं हाँ रुद्राक्ष को दो तीन सप्ताह बाद ब्रुश से साफ़ करके धुप में सुखा लें !

२. दौ सौ पचास ग्राम ताज़ी हरी लौकी छिलके सहित पांच सौ ग्राम पानी में प्रेशर कुकर में डालकर आग पर रख दें और एक सीटी बजने पर आग पर से उतार लें ! मसलकर छान कर ( बिना इसमें कुछ मिलाएं ) इसे सूप कि तरह गर्म गर्म पी लें ! आवश्यकतानुसार प्रात: खाली पेट लगातार तीन चार दिन तक रौजाना एक खुराक लें !

रविवार, 10 फ़रवरी 2013

आयुर्वेदिक औषधियों के लिए ( WEIGHT CALCULATION )मापन प्रणाली !!

प्राय: देखा जाता है कि आयुर्वेद में औषधि या नुस्खे बताते समय औषधि के जो माप बताए जाते हैं वो जल्दी से कोई समझ नहीं पाता है क्योंकि आयुर्वेद में औषधियों के माप हैं वो पुराने समय से चले आ रहें हैं और आज माप अंग्रेजी मापन प्रणाली पर आधारित है इसलिए जरुरी है कि किसी भी औषधि का प्रयोग करने से पहले उसका परिमाण भली प्रकार ज्ञात हो ! इसी को ध्यान में रखते हुए में आज आपके सामने पुराने मापन प्रणाली और नयी मापन प्रणाली में परिवर्तित करके बता रहा हूँ !




पुरानी मापन प्रणाली के अनुसार नाम               नयी मापन प्रणाली के हिसाब से 
१. एक ग्रेन                                                             एक गेंहूं के दाने के बराबर या ६० मिलीग्राम 
२. एक रती                                                             दो ग्रेन अथवा १२० मिलीग्राम 
३. एक माशा                                                           आठ रती अथवा एक ग्राम 
४. एक तोला                                                           १६ रती अथवा १६ ग्राम 
५.१/४ तोला या चवन्नी भर                                       ३ माशा अथवा तीन ग्राम 
६. एक छंटाक                                                           ५ तोला अथवा ६० ग्राम 
७. एक पौंड                                                              आधा सेर अथवा लगभग ४५० ग्राम 
८. एक सेर                                                                लगभग ९६० ग्राम 
९. एक टेबल स्पून                                                     तीन चाय के चम्मच के बराबर 
१०.एक कप                                                                १६ टेबल स्पून के बराबर 
११.एक चम्मच                        जहां भी चम्मच शब्द का प्रयोग हो वहाँ चाय वाले चम्मच हि समझे 


ऐसे तो और भी माप है जो आयुर्वेदिक औषधियों के लिए प्रयुक्त होतें हैं लेकिन सामान्यतया जो वर्तमान समय में बताए जातें हैं उनको हि मैंने बताया है ! 

सोमवार, 7 जनवरी 2013

श्वेत प्रदर (ल्यूकोरिया ) के लिए आयुर्वेदिक नुस्खे !!

आयुर्वेद में श्वेत प्रदर (ल्यूकोरिया) के कुछ उपाय बताये गये हैं उनमें से कुछ सरल उपाय आपको बता रहा हूँ जिनका अगर प्रयोग किया जाये तो फायदा हो सकता है ! और इनमें प्रयोग होने वाली जड़ीबूटियाँ सहजता से मिल सकती है कुछ तो अपने आसपास भी मिल जाती है और अगर कुछ नहीं भी मिलती है तो पंसारियों के यहाँ मिल जायेगी जहां से इनको ख़रीदा जा सकता है !!

१. असगंध का चूर्ण और मिश्री एक एक चम्मच मिलाकर एक कप गर्म दूध के साथ सुबह शाम नियमित रूप से कुछ हफ्ते तक सेवन करने से ना केवल श्वेत प्रदर कि शिकायत दूर होगी बल्कि शारीरिक दुर्बलता भी दूर हो जायेगी !!

२. अशोक की छाल का चूर्ण और मिश्री समान मात्रा में मिलाकर गाय के दूध के साथ एक एक चम्मच कि मात्रा में दिन में तीन बार कुछ हफ्ते तक सेवन करने से श्वेत प्रदर में लाभ होता है !!

३. इमली के बीजों को पानी में कुछ दिनों तक भिगो दें ताकि छिलका आसानी से निकाला जा सके उसके बाद छिलका निकाले सफेद बीजों का पीसकर बारिक चूर्ण बना लें और इसे घी में भुनकर समान मात्रा में मिश्री मिलाकर कांच की बोतल में रख लें ! एक चम्मच कि मात्रा में दिन में तीन बार दूध के साथ सेवन करें ! इससे श्वेत प्रदर कि शिकायत दूर हो जायेगी और इसी का प्रयोग अगर पुरुष करें तो उनके लिए भी यह वीर्यवर्धक और पुष्टिकारक योग है !

४. छाया में सुखाई गयी जामुन कि छाल के चूर्ण को एक चम्मच कि मात्रा में दिन में तीन बार पानी के साथ कुछ दिन प्रयोग करने से श्वेत प्रदर में लाभ होता है !!

५. दारु हल्दी ,दाल चीनी और शहद समभाग मिलाकर एक चम्मच कि मात्रा में दिन में तीन बार सेवन करने से श्वेत प्रदर से राहत मिलती है !!

बुधवार, 7 नवंबर 2012

गठिया रोग का आयुर्वेदिक इलाज !!

गठिया रोग को अंग्रेजी में आर्थ्राइटिस और हिंदी में इसको संधि शोथ भी कहतें है यह बड़ा पीड़ादायक रोग है लेकिन आयुर्वेद में कुछ ऐसे उपचार हैं जिनसे इससे छुटकारा पाया जा सकता है उनमें से दो नुस्खे आपके सामने लिख रहा हूँ जिसमें से एक बथुआ है जो अभी सर्दियों में बहुतायत से होता है दूसरा नागौरी असगंध है जो बारह महीने सुलभ है और दोनों ही चीजें सर्व सुलभ है 


१. बथुआ के ताजा पत्तों का रस पन्द्रह ग्राम प्रतिदिन पीने से गठिया दूर होता है। इस रस में नमक-चीनी आदि कुछ न मिलाएँ। नित्य प्रातः खाली पेट लें या फिर शाम चार बजे। इसके लेने के आगे पीछे दो - दो घंटे कुछ न लें। दो तीन माह तक लें। 







२. नागौरी असगन्ध (अश्वगंधा ) की जड़ और खांड दोनों समभाग लेकर कूट-पीस कपड़े से छानकर बारिक चुर्ण बना लें और किसी काँच के पात्र में रख लें। प्रतिदिन प्रातः व शाम चार से छः ग्राम चुर्ण गर्म दूध के साथ खायें। आवश्यकतानुसार तीन सप्ताह से छः सप्ताह तक लें। इस योग से गठिया का वह रोगी जिसने खाट पकड़ ली हो वह भी स्वस्थ हो जाता है। कमर-दर्द, हाथ-पाँव जंघाओं का दर्द एवं दुर्बलता मिटती है। यह एक उच्च कोटि का टॉनिक है।

शनिवार, 20 अक्तूबर 2012

निम्न रक्तचाप में लाभकारी है किशमिश !!


आपको अक्सर चक्कर आते हैं, कमजोरी महसूस होती है तो हो सकता है कि आप लो ब्लड प्रेशर के शिकार हों। ज्यादा मानसिक तनाव, कभी क्षमता से ज्यादा शारीरिक काम करने से अक्सर लोगों में लो ब्लडप्रेशर की शिकायत होने लगती है।

कुछ लोग इसे नजरअन्दाज कर देते हैं तो कुछ लोग डॉक्टर के यहां चक्कर लगाकर परेशान हो जातें हैं। लेकिन आयुर्वेद में लो ब्ल्डप्रेशर को कन्ट्रोल करने के लिए कारगर इलाज है वो है किशमिश। नीचे बताई जा रही विधि को लगातार 32 दिनों तक प्रयोग में लाने से आपको कभी भी लो ब्लड प्रेशर की शिकायत नहीं होगी।

32 किशमिश लेकर एक चीनी के बाउल में पानी में डालकर रात भर भिगोएं। सुबह उठकर भूखे पेट एक-एक किशमिश को खूब चबा-चबा कर खाएं,पूरे फायदे के लिए हर किशमिश को बत्तीस बार चबाकर खाएं। इस प्रयोग को नियमित बत्तीस दिन करने से लो ब्लडप्रेशर की शिकायत कभी नहीं होगी।

बुधवार, 1 अगस्त 2012

आयुर्वेद !!


आयुर्वेद दुनिया की सबसे प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों में से एक है कहते है की आयुर्वेद का ज्ञान भगवान ब्रह्मा द्वारा प्रदान किया गया है जो ब्रह्म जी से प्रजापति को ,प्रजापति से अश्वनीकुमारों ने ,अश्वनीकुमारों से इंद्र ने और इंद्र से भारद्वाज ऋषि ने आयुर्वेद का ज्ञान प्राप्त किया !! पुरातत्ववेताओं ने संसार की सबसे प्राचीन पुस्तक ऋग्वेद को माना है विभिन्न विद्वानों ने इसका निर्माण ईशा से ३००० से ५०००० वर्ष पूर्व माना है ! ऋग्वेद में भी आयुर्वेद के सिद्धांत मिल जाते है जो आयुर्वेद की प्राचीनता को साबित करते है और यह माना जा सकता है कि आयुर्वेद सृष्टि के आरम्भ से या उसके आस पास के समय से विधमान है !!
आयुर्वेद का मूल अर्थ है "जीवन का ज्ञान" जो जीवन जीने का एक ऐसा विज्ञान है जो बीमारियों से बचाने का उपाय बताता है जिसको पालन करने से रोग आपके नजदीक ही नहीं आ सकता है अगर दुर्भाग्यवश रोग हो भी जाए तो रोगों को दूर करने के उपाय भी बताता है तथा विश्व की सारी चिकित्सा प्रणालियों ने आयुर्वेद के विचारों में से कुछ ना कुछ लिया है जो आयुर्वेद की महता को दर्शाता है !!
आयुर्वेद में रोग होने के पश्चात रोग परिक्षण की विधियां,रोगोपचार और खान पान के बारे में विस्तृत रूप से दिया गया है जो निश्चित रूप से इसके समृधिशाली चिकित्सा विज्ञान होने को प्रमाणित करता है लेकिन दुर्भाग्य से विदेशी आक्रमणों के कारण महत्वपूर्ण जानकारियों के खो जाने के कारण तथा आजादी के पश्चात सरकारों का उदासीन रवैये के कारण इसकी नयी खोजों के ना होने के कारण यह चिकित्सा विज्ञान भारत में और विश्व में वो स्थान नहीं पा सका जिसका वो हकदार है !!