रविवार, 10 मार्च 2013

दरगाह दीवान भी भारत सरकार से तो अच्छे हैं !!


पाकिस्तान के प्रधानमंत्री कि ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती कि दरगाह पर जियारत करने को लेकर की गयी यात्रा खासी विवादास्पद रही और पाकिस्तान नें भारत के साथ जिस तरह का व्यवहार किया और जिस तरह से पाकिस्तानी सेना के द्वारा दो भारतीय सैनिकों के बेरहमी से सिर काटकर उनको शहीद किया गया था और उस पर पाकिस्तान कि सरकार नें किसी तरह कि कोई कारवाई नहीं की ! उसके बाद पाकिस्तानी प्रधानमंत्री का भारत दौरे का विरोध होना अवश्यम्भावी था !

भारत सरकार का ढुलमुल रवैया हर बार की तरह इस बार भी दिखाई दिया और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री का यह निजी दौरा होने के बावजूद भारतीय विदेश मंत्री का वहाँ जाना और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के भोज में शामिल होना भारत सरकार के रवैये पर कई तरह के प्रश्नचिन्ह लगा रहा है ! अगर यह पाकिस्तानी प्रधानमंत्री का निजी दौरा था तो किसी भी भारतीय मंत्री को वहाँ जाने कि क्या आवश्यकता थी ! वो भी उस हालत में जब हर भारतवासी के सीने में पाकिस्तानी सेना द्वारा दिए गए घाव नासूर कि तरह चुभ रहें है !

बुधवार, 6 मार्च 2013

मोदी के कारण पार्टियों के बनते बिगड़ते समीकरण !!

देश का अगला प्रधानमंत्री कौन होगा इसको लेकर बुद्धिजीवी वर्ग अपने अपने कयास लगा रहें हैं और संभावनाओं के आधार पर विश्लेषण भी कर रहें हैं ! पार्टियां भी अपने अपने हिसाब से समीकरण बैठा रही है और जोड़ बाकी गुणा भाग करके सता के समीकरणों का हिसाब लगा रही है और केवल पार्टियां हि क्यों पार्टियों के नेता तक अपनी संभावनाओं को तलाश रहे हैं ! वैसे देश की पुरानी पार्टी कांग्रेस तो अपने वंशवादी परम्परा का निर्वहन करते हुए अपने नए नवेले युवराज राहुल को प्रधानमन्त्री के उम्मीदवार के रूप में देख रही है तो दूसरी तरफ भाजपा अभी तक निर्विवादित रूप से किसी को प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में स्वीकार नहीं कर पा रही है ! और उसके कई नेता इस कतार में खड़े हैं ! दूसरी कई पार्टियों के नेता भी अपनी संभावनाओं को जिन्दा रखे हुए हैं लेकिन जिस तरह से मोदी कद्दावर होकर उभर रहें है उससे दोनों हि पार्टियों के समीकरण बिगड़ते नजर आ रहें हैं ! 

भाजपा के कई नेता भले हि प्रधानमंत्री बनने का सपना पाले हुए हो लेकिन भाजपा अब एक ऐसे मोड़ पर खड़ी है जहां उसके सामने दो हि रास्ते है ! या तो वो मोदी को अगला प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित करके सता तक पहुँचने की संभावनाओं को बनाए रखते हुए चुनावों में जाए और दूसरा रास्ता उसके पास यही है कि गटबंधन कि चिंता करते हुए तथा अपनी हि पार्टी के दूसरे नेताओं की प्रधानमंत्री बनने कि इच्छाओं को जीवित रखते हुए चुनावों में जाए ! जहां पहले रास्ते में मोदी भाजपा पर हावी होते नजर आते हैं वहीँ भाजपा के सत्ता तक पहुँचने कि संभावनाएं भी इसी रास्ते से ज्यादा नजर आती है लेकिन इस रास्ते पर चलने से हो सकता है कि कुछ दलों के साथ उसका गटबंधन भी टूट जाए लेकिन फिर भी जमीनी हकीकत और हाल हि में आये सर्वे के नतीजे देखें तो उस कमी को वो शायद मोदी के नाम के सहारे अधिक सीटें जीतकर पूरा भी कर सकती है ! 

मंगलवार, 5 मार्च 2013

तुष्टीकरण के बहाने राष्ट्रीय एकता को चुनौती दी जा रही है !!

तुस्टीकरण चाहे किसी भी प्रकार का भी हो वो देश हित में तो कतई नहीं कहा जा सकता है ! अब वो चाहे सत्ता,धर्म,जाति,भाषा और प्रांत में से किसी का भी हो लेकिन अतंत तो उसके कारण देश हि कमजोर होता है और देशवाशियों के बीच वैमनस्यता के बीज पनपते जाते हैं जिसका परिणाम आगे जाकर इतना भयावह हो सकता है कि देश के टुकड़े भी करवा सकता है ! यह भी नहीं है कि तुस्टीकरण का यह खेल नया है ! नया भी नहीं है बल्कि सालों से इसी खेल को दोहराया जाता है !

सताधारी लोग सता का तुस्टीकरण अपनी हि जमात के लोगों को बचाने के लिए रोज करते देखे जा सकते हैं ! वोटों के लिए धर्म के नाम पर तुस्टीकरण भी देश की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी समेत कई छोटी बड़ी सभी पार्टियां आजादी के बाद से करती आई है और आज भी कर रही है ! भाषा के नाम पर भी तुस्टीकरण का खेल राजनैतिक पार्टियों द्वारा देश में खेला गया जिसके परिणामस्वरूप हिंदी को आज भी आधिकारिक रूप से राष्ट्र भाषा का दर्जा अभी तक नहीं मिल पाया है ! प्रांतवाद के तुस्टीकरण का खेल भी वोटों के लिए आज हमारे देश में खेला जा रहा है !

हर प्रकार के तुस्टीकरण के पीछे राजनैतिक पार्टियां हि होती है और मकसद वोटों के जरिये सता तक पहुंचना हि होता है लेकिन अन्त्गोवा उसका दुष्परिणाम समाज के हर वर्ग को भुगतना पड़ता है ! और जो लोग तुस्टीकरण के इस खेल के खिलाड़ी होते हैं वो हमेशा फायदे में हि रहते हैं ! धर्म के नाम पर तुष्टिकरण करने वाली पार्टियां इसी तुस्टीकरण के सहारे सता तक पहुँचती है और इसीलिए आज हर पार्टी धार्मिक तुस्टीकरण का खेल खेलती है और यही कारण है कि इस खेल में एकछत्र दबदबा रखने वाली सबसे बड़ी पार्टी अब कमजोर होती जा रही है क्योंकि अब अन्य पार्टियां भी उसी खेल को खेल रही है जिसको वर्षों से वो अकेली खेलती आई है ! 

शनिवार, 23 फ़रवरी 2013

तृणमूल शासन में उसके कार्यकर्ताओं की बढती कारगुजारियां !!

पश्चिम बंगाल में लोगों ने जिस आशा के साथ सत्ता परिवर्तन किया और ममता बनर्जी को सता सौंपी थी लेकिन ममता बनर्जी के शासनकाल को देखें तो निश्चय हि पश्चिम बंगाल के लोगों को निराशा हि हाथ लगी है ! फर्क केवल इतना आया है कि पहले वामदलों के कार्यकर्ता गुंडों कि भूमिका में नजर आते थे और अब तृणमूल कार्यकर्ता गुंडों कि भूमिका में नजर आते हैं ! कभी किसी डॉक्टर को अपना निशाना बनाते हैं तो कभी किसी अध्यापक का कान काट लेतें हैं ! क्या इसी शासन के लिए पश्चिम बंगाल के लोगों ने ममता बनर्जी को सता सौंपी थी !

वैसे तो ममता बनर्जी खुद अपने अड़ियल और तानाशाहीपूर्ण रवैये के लिए जानी जाती है और इसका उसनें इसका उदाहरण भी अपनें शासन में प्रस्तुत किया है ! बात चाहे कार्टून बनाने वाले कार्टूनिस्ट कि हो या फिर उनसे सवाल करनें कि हिम्मत करनें वाली लड़कियों कि बात हो उन्होंने हर जगह अपने दंभपूर्ण व्यवहार का परिचय देते हुए कानून को अपने हिसाब से कारवाई करनें को मजबूर करके तानाशाही का परिचय हि दिया है ! जिनमें बाद में उनकी आलोचना भी हुयी ! 

पश्चिम बंगाल में वाम शासन से हि वामदलों के उन राजनितिक कार्यकर्ताओं कि जमात मौजूद थी जो हर प्रकार से गुंडों कि भूमिका में हि नजर आती थी और जिसका शिकार खुद ममता बनर्जी भी हुयी थी और कई दिन तक अस्पताल में इलाज तक करवाना पड़ा था ! लेकिन लगता है ममता नें उससे सबक ना लेते हुए अब ममता बनर्जी खुद भी उसी रास्ते पर चल रही है और उन्होंने तृणमूल के राजनितिक कार्यकर्ताओं को भी उसी तरह कि खुलेआम छुट दे रखी है जैसा कभी वाम शासन में था और ऐसा करके वे पश्चिम बंगाल में हिंसक राजनैतिक कार्यकर्ताओं की एक ऐसी फ़ौज खड़ी करने कि हि कोशिश कर रही है जिसको कानून का भी कोई खौफ नहीं रहता !

शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2013

आतंकवाद से लड़ना है तो ख़ुफ़िया तंत्र को मजबूत करना ही होगा !!

आतंकवादी घटनाएं हमारे देश में रुकने का नाम नहीं ले रही है और आतंकवादी अपने नापाक मंसूबों में एक बार फिर कामयाब हो गये हैं ! इसके बाद हमारे सत्ताधीशों द्वारा वही रटे रटाये बयान आयेंगे कि हम आतंकवाद को बर्दास्त नहीं करेंगे लेकिन क्या केवल बयान देने भर से आतंकवाद पर लगाम लग पाएगी ! हमारे सत्ताधीशों के कार्यकलापों को देखकर तो यह कतई नहीं लगता कि आतंकवाद को लेकर वो संजीदा भी है ! उनके लिए आतंकवाद केवल बयानबाजी का मामला है और आतंकवाद को लेकर किस तरह कि बयानबाजी से उनके वोटों में इजाफा हो सकता है यही सोचकर बयानबाजी की जाती है ! सत्तापक्ष हो या विपक्ष सबका आतंकवाद पर अपने अपने वोटों के हिसाब से बयान देते रहते हैं !

देश कि आंतरिक सुरक्षा का दायित्व गृहमंत्री का होता है लेकिन हमारे वर्तमान गृहमंत्री ने पिछले दिनों जिस तरह से आतंकवाद को लेकर हल्की बयानबाजी की थी उससे यह तो पता चलता हि है कि आतंकवाद को लेकर वो कितने गंभीर हैं और उनसे पहले के गृहमंत्री भी आतंकवाद को लेकर विवादों में रहते आये हैं जिसका लबोलुआब देखा जाए तो वो यह है कि हमारे सताधिशों के लिए आतंकवाद पर कैसे काबू पाया जाए इससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह होता है कि आतंकवाद को वोटों के धुर्वीकरण के लिए कैसे इस्तेमाल किया जाए और यही कारण है कि आतंकवाद को लेकर कोई कड़ा रुख देखने में नहीं आता है ! 

गुरुवार, 14 फ़रवरी 2013

सर्वोच्च जांच एजेंसी सीबीआई पर लगते आरोप बैमानी नहीं !!

देश में घोटाले पर घोटाले सामने आ रहें हैं और हर घोटाले के बाद जांच तो होती है और जैसा कि सबको पता है हमारे देश में जांच करने वाली सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई हि है उसको लेकर कैसी धारणा बन चुकी है ! कल टीवी पर हेलिकॉप्टर घोटाले पर बहस देख रहा था तो एक रक्षा विशेषज्ञ नें यह कहकर सबको हैरत में डाल दिया कि देख लीजिए कुछ नहीं होगा जांच होगी और लीपापोती की जायेगी और या तो किसी का नाम सामने हि नहीं आएगा और आएगा तो भी कुछ छोटे लोगों का और उनके विरुद्ध कारवाई करके बड़े घोटालेबाजों को बचा लिया जाएगा जैसा कि हर बार होता आया है ! अब अगर सीबीआई द्वारा सत्ता पर काबिज लोगों को बचाने का इतिहास देखा जाए तो उनकी बात यक़ीनन शतप्रतिशत सही मानने के अलावा कोई चारा भी नहीं है !

हालांकि हमारे देश में घोटालों कि शुरुआत जीप घोटाले से मानी जाती है जिसमें वी.के.मेनन का नाम सामने आया था लेकिन उसकी कोई जांच हि नहीं की गयी थी और बाद में उनको रक्षा मंत्री जैसा अहम पद दिया गया था ! सबसे पहले जो बड़ा घोटाला सामने आया और उसकी जांच का जिम्मा सीबीआई को सौंपा गया था वो था बोफोर्स घोटाला जिसमें राजीवगांधी का नाम सामने आया था ! लेकिन १९८७ में सामने आये इस घोटाले के अभियुक्तों का पता लगाने और उनको सजा दिलाने में सीबीआई ना केवल पूरी तरह नाकाम साबित हुयी बल्कि उस घोटाले के मुख्य अभियुक्त क्वात्रोची के सील बेंक खातों को खुलवाने में मदद भी की ! 

इसके बाद तो जैसे भारत में घोटालों कि बाढ़ हि आ गयी ! सबमरीन घोटाला ,हर्षद मेहता घोटाला ,एयरबस घोटाला ,चारा घोटाला,दूरसंचार घोटाला,यूरिया घोटाला,सी आर बी घोटाला,हवाला घोटाला,झारखण्ड घुस कांड,चीनी घोटाला,ताबूत घोटाला,आदर्श घोटाला,टूजी घोटाला,कोयला घोटाला जैसे कई और घोटाले हुए जिनमें कई राजनेताओं समेत अन्य सता से जुड़े लोगों पर आरोप लगे और जांच तो सीबीआई द्वारा की गयी लेकिन केवल दूरसंचार घोटाले में तब के दूरसंचार मंत्री सुखराम को सजा दिलवाने के अलावा अन्य किसी को सजा दिलवाने और लुटा गया धन देश को दिलाने में सीबीआई पूरी तरह नाकाम हुयी और टूजी मामले में कुछ हुआ तो सुप्रीम कोर्ट द्वारा जांच कि की गयी निगरानी कि वजह से !

बुधवार, 13 फ़रवरी 2013

यासीन मलिक और हाफिज सईद का मेल चिंताजनक !!

जिस तरह से कश्मीर के अलगाववादी नेता और जेकेएलएफ सरगना यासीन मलिक और लश्करे तैयबा के मुखिया हाफिज सईद को इस्लमाबाद में एक हि मंच पर देखा गया ! यह बेहद गंभीर मामला है और सरकारी सूत्रों से यह भी पता चल रहा है कि यासीन मालिक के विरुद्ध कारवाई भी हो सकती है ! लेकिन सवाल उठता है कि यासीन मलिक जैसे लोग भारत में रहकर भी भारत विरोधी गतिविधियों को अंजाम कैसे दे रहे हैं !

जेकेएलएफ प्रमुख यासीन मलिक हो या फिर हुर्रियत के मीरवाइज़ फारुख उमर और सैयद अली शाह गिलानी हो इन्होने समय समय पर भारत में रहकर भी ये भारत विरोधी आग उगलते रहते हैं और भारत सरकार मूकदर्शक बनी रहती है ! जिसका परिणाम हि यह है कि आज मलिक जैसे लोग आज खुलेआम हाफिज सईद जैसे लोगों के साथ दिखाई दे रहे हैं और वो भी संसद हमले के दोषी अफजल गुरु की फांसी के विरोध में हुयी भूख हड़ताल के मंच पर दिखाई देते है इससे ज्यादा संगीन मामला और क्या हो सकता है !

मंगलवार, 12 फ़रवरी 2013

अफजल कि फांसी और राजनीति का गहरा संबंध है !!

अफजल गुरु को फांसी होनी हि थी और वो हो गयी लेकिन इसको लेकर जो राजनैतिक दांव आजमाए गये उसके बाद भी सरकार के मंत्री और कांग्रेस के नेता जो कह रहे है कि अफजल को फांसी में राजनीति नहीं हुयी है बल्कि कानूनी प्रक्रिया का पालन किया गया है वो हास्यास्पद हि कहा जाएगा ! अफजल के मामले में सरकार खुद अपने हि बयानों को लेकर कठघरे में खड़ी हो गयी है और उसके बावजूद भी वो कह रही है कि इसमें राजनीति नहीं की गयी है !

पहली बात तो यह है कि अफजल को फांसी कि सजा का फैसला २००६ में हि हो गया था तो इसको इतना लंबा खींचना क्या राजनीति नहीं थी ! अफजल को फांसी देने में जानबूझकर देरी की गयी ताकि उन लोगों को अफजल के प्रति सहानुभूति अर्जित करने का मौका मिल सके जो लोग अफजल के पक्ष में आवाज उठा रहे थे ! अफजल को फांसी देने कि मांग बार बार विपक्ष और शहीदों के परिजनों द्वारा कि गयी और इस देरी के विरोध में संसद हमले में शहीद हुए परिवारों नें तो अपने पदक तक राष्ट्रपति को लौटा दिए थे लेकिन तब सरकार नें शहीदों के परिवारों की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया गया और सरकार द्वारा बार बार यही तर्क दिया जाता रहा कि दया याचिकाओं का फैसला वरीयताक्रम से होगा और जब अफजल का क्रम आएगा तब उसका भी फैसला हो जाएगा !

सरकार अगर कहती है कि राजनीति नहीं हुयी तो पहले ये बताए कि जिस अफजल गुरु कि दया याचिका शहीदों के परिजनों और विपक्ष ,देश के दबाव के बावजूद वरीयताक्रम में ऊपर नहीं आ पायी वो अब अचानक से वरीयताक्रम में ऊपर कैसे आ गयी ! अगर सरकार कहती है कि राजनीति नहीं हुयी तो इस बात का जवाब सरकार को देश को देना हि होगा ! इसमें कोई दो राय नहीं कि इसमें राजनीति हुयी है ! लेकिन अब जो भी हुआ अफजल को उसके किये कि सजा मिल गयी ! लेकिन अभी भी कई और लोगों पर फैसला होना बाकी है जिन पर फैसला कब होता है यह देखना है !

गुरुवार, 24 जनवरी 2013

असल मुद्दों से ध्यान हटाती राजनीति !!

राजनीति कि विडम्बना देखिये कि जनता से जुड़े हुए और जनहित के मुद्दे तो एक एक करके नेपथ्य में जाते जा रहें हैं और जिन मुद्दों से जनता का कोई सरोकार नहीं या यूँ कहें कि जिन मुद्दों से जनता का कोई भला होने वाला नहीं है वही मुद्दे हावी होते जा रहें हैं और ये यूँ ही नहीं हो रहा है बल्कि एक रणनीति के तहत हो रहा है ताकि असल मुद्दों से जनता का ध्यान हटाया जा सके !

भ्रष्टाचार,कालाधन और लोकपाल जैसे मुद्दे अब ऐसा लगता है कि बीते दिनों कि बात हो गयी है जिन पर कोई चर्चा ना तो सरकार करना चाहती है और न ही मीडिया इन मुद्दों को उठाकर सरकार पर दबाव बना रहा है ! तो क्या अब इन मुद्दों का कोई वजूद नहीं रहा है ! ऐसा बिलकुल नहीं है ये मुद्दे अभी भी जीवित हैं और जब तक कुछ होता नहीं तब तक रहेंगे भी लेकिन सरकार के मीडिया प्रबंधकों ने इन मुद्दों को मीडिया के सहयोग से पीछे धकेलने में कामयाबी हासिल कर ली !

रविवार, 25 नवंबर 2012

लालच दिखाती राजनैतिक पार्टियां !!

राजनितिक पार्टियों के नेता वैसे तो वादे करने में माहिर होते हैं और जब मौसम चुनावों का हो तो इनका कहना ही क्या तब तो ये तरह तरह के वादे करके जनता को लुभाने की भरपूर कोशिश करते हैं लेकिन भगवान जाने ये लोग उन वादों को याद भी रखते हैं या नहीं क्योंकि अगर ये लोग अपने वादों को पूरा करते तो आज इनके पास वादे करने के लिए कोई समस्या ही नहीं बचती और ये बात अब ये लोग भी समझने लगे हैं और इनको पता है कि जनता अब इनके वादों पर यकीन करने वाली नहीं है इसीलिए इन लोगों ने अब एक नया रास्ता जनता को बहलाने के लिए निकाला है वो रास्ता है जनता के मन में लालच पैदा करना और उस लालच के सहारे जनता से वोट हासिल करना !!

आज कोई पार्टी लेपटोप का लालच दिखा रही है तो कोई पार्टी इंडक्शन चूल्हे का लालच दिखा रही है और जनता में लालच जगा रही है अब देखना ये है कि जनता इनके लालच में आती भी है या नही लेकिन ये पार्टियां अपनी और से तो पूरी कोशिश कर रही है जिसको नीतिगत आधार पर देखा जाये तो यह भी चुनावों में मतदाताओं को लुभाने के लिए ठीक उसी तरह का  एक तरह का प्रलोभन ही है जैसे कि नोट बांटना या फिर शराब बांटना बस फर्क यही है कि वो सब पहले बांटा जाता है और ये चुनावों के बाद में पूरा किया जाएगा और इसमें भी ये पार्टियां दोहरे फायदे में हैं पहला तो यह कि जो प्रलोभन पहले दिए जातें हैं उनमे खर्चा भी जेब से होता है और अगर नहीं जीतते हैं तो नुकशान में रहते है उपर से चुनाव आयोग का लफड़ा अलग से अब इन प्रलोभनों में फायदा ही फायदा है ना तो चुनाव आयोग का लफड़ा और ना ही जेब से खर्चा क्योंकि  अगर हारते हैं तो कुछ लेना देना है नहीं और अगर जीत भी गए तो खर्चा होगा आम आदमी की जेब से निकले पैसे से यानी कि सरकारी खजाने से , ऐसे में इनका तो फायदा ही फायदा है !!

शनिवार, 24 नवंबर 2012

हंगामा ,हंगामा, हंगामा और संसद स्थगित !!

संसद का शीतकालीन सत्र जिस तरह हंगामे के साथ शुरू हुआ है उससे ऐसा लगता है कि यह सत्र भी मानसून सत्र की तरह हंगामेदार होकर बिना किसी सार्थक बहस और कामकाज के समाप्त हो जाएगा और जनता के खून पसीने की कमाई का पैसा हंगामे की भेंट चढ जाएगा !!

लगता है संसद में बेठी पार्टियां फिक्सिंग का खेल खेल रही है और सतापक्ष और विपक्ष दोनों को ही जनता के पैसे की कोई चिंता है ही नहीं इसीलिए तो हंगामा करना और संसद स्थगित हो जाना दोनों ऐसे चलता है जैसे ये रोज का नियम हो और लोकसभा अध्यक्ष के लिए जैसे यही सदन चलाना हो ! 

इस हंगामे की स्थति के लिए सतापक्ष और विपक्ष तो सीधे तौर पर जिम्मेदार है ही लेकिन सदनों को चलाने वाले अध्यक्ष भी कम जिम्मेदार नहीं है क्योंकि अध्यक्ष सतापक्ष का होता है और प्राय यही देखने में आता है कि अध्यक्ष सतापक्ष की सहमती से ही सदन की कार्यवाही चलाने की कोशिश करते है और सतापक्ष के लिए मुसीबत खड़ी करने वाले मुद्दों को उठाने की इजाजत नहीं देते हैं जिसके कारण हंगामे कि स्थति बनती है और फिर विपक्ष के पास जाहिर है दो ही रास्ते बचते है या तो वो हंगामा करके सदन को चलने ही ना दे या फिर जो सतापक्ष करें वही स्वीकार करें ऐसे में विपक्ष भी हंगामे का रास्ता ही चुनता है !!

शुक्रवार, 23 नवंबर 2012

कसाब को सजा मिली लेकिन गुपचुप तरीके से क्यों !!

मुंबई हमले के एकमात्र जीवित आतंकवादी अजमल आमिर कसाब को आखिरकार उसके किये कि वो सजा मिल गयी जो भारतीय कानून के अनुसार मिल सकती थी और उसको फांसी पर लटका दिया गया लेकिन जिस तरह से गुपचुप तरीके से उसको फांसी दी गयी वो कई सवालों को जन्म दे गयी !

किसी भी अपराध के लिए दण्डित करना केवल उसी अपराधी को दण्डित करना भर नहीं होता बल्कि बाकी उसी तरह के अपराधियों के मन में भय बैठाना भी होता है कि आगे जाकर उनका भी यही हश्र हो सकता है इसलिए अपराध से दूर रहने में ही भलाई है और इसी सोच को ध्यान में रखकर दण्ड प्रक्रिया बनाई जाती है और बात अगर मृत्युदंड कि हो तो जाहिर है कि यह उसी को दिया जाता है जिसने इस तरह का अपराध किया हो जो किसी भी तरह से क्षमा के योग्य नहीं हो और ना ही वो समाज में जीवित रहने का अधिकारी हो !!

जिस तरह से कसाब के मामले में पूरी कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए उसके अंजाम तक पंहुचाया गया वो काबिलेतारीफ था और सम्पूर्ण विश्व ने भारत की न्यायिक प्रक्रिया कि खूबसूरती और पारदर्शिता को देखा और विश्व में यह सन्देश भी गया कि कोई कितना भी बड़ा अपराधी हो उसको अपना बचाव करने का प्रयाप्त अवसर भारत की न्यायिक प्रक्रिया में मिलता है !

शनिवार, 3 नवंबर 2012

सतापक्ष और विपक्ष पर नकारात्मकता हावी है !!

भारत के आज के राजनैतिक परिद्रश्य पर नजर डाली जाए तो एक बात साफ़ निकल कर आती है कि हमारे देश  में सतापक्ष और विपक्ष के बीच विश्वासहीनता और संवादहीनता की स्थति बढती ही जा रही जिसके कारण आज सतापक्ष और विपक्ष दोनों ही एक दूसरे की बातों को ज्यादा तवज्जो नहीं देते हैं और सतापक्ष भी अपनी ही गलत सही  नीतियों को ही सही मानते हुए आगे बढ़ता  रहता  हैं और जिससे नुकशान देश का ही हो रहा है !

सतापक्ष और विपक्ष दोनों ही साफगोई से बचते हुए नजर आते हैं विपक्ष सतापक्ष की हर नीति की आलोचना करने को ही अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझने लगा है जो किसी भी दृष्टि से उचित नहीं कहा जा सकता है क्योंकि सतापक्ष द्वारा लागू की गयी नीतियों के द्वारा प्रभावित तो इसी देश के लोगों को ही होना होगा और फायदा और नुकशान आखिर में इसी देश के लोगों का ही होना है इसलिए विपक्ष का कर्तव्य बनता है कि वो जनता के हित में सरकार की अच्छी नीतियों का स्वागत करे और ऐसी नीतियों का पुरजोर विरोध करें जिनसे इस देश के लोगों का नुकशान हो सकता हो ! लेकिन दुर्भाग्य से आज का विपक्ष ऐसा नहीं कर पा रहा है वह ना तो अच्छी नीतियों का स्वागत कर रहा है और ना ही खराब नीतियों का जबरदस्त तरीके से विरोध करता है !!

कुछ ऐसा ही हाल सतापक्ष का है उसका भी जनता से जुडी नीतियां बनाने में इकतरफा रवैया ही दिखाई देता है और सतापक्ष का हाल तो विपक्ष से भी ज्यादा निराशाजनक है क्योंकि सतापक्ष से यह आशा की जाती है कि वो जनहित से जुडी हुयी नीतियां बनाने से पहले विपक्ष और अन्य पार्टियों के लोगों से विचार विमर्श करके नीतियां बनाए जिससे जनहित से जुडी नीतियां को ज्यादा कारगर तरीके से लागू किया जा सके और उन नीतियों से जुड़ें अच्छे और बुरे हर पहलु सतापक्ष के सामने आ सके और उसमें लागू करने से पहले सुधार किये जा सके ! लेकिन अफ़सोस इस बात पर होता है कि आज का सतापक्ष विपक्ष और अन्य पार्टियों से विचार विमर्श करना तो दूर बल्कि अपनी ही सहयोगी पार्टियों से भी राय मशविरा करना जरुरी नहीं समझता है ऐसे में उन नीतियों में खामियां ही खामियां रहती है और जिसका फायदा भ्रष्टाचारी उठाते हैं !

शनिवार, 27 अक्तूबर 2012

राजनैतिक व्यापारी !!

जिस तरह से एक के बाद एक आरोप रूपी खुलासे हो रहें हैं और जिस तरह से राजनितिक फायदा उठाकर अपनी सम्पतियों में इजाफा किया गया है वो यह दिखाने के लिए प्रयाप्त है कि ये लोग किस तरह से एक दूसरे से मिलकर देश को लुट रहें है ऐसे में यही कहा जा सकता है कि राजनीति को राजनैतिक व्यापारियों से बचाना बहुत जरुरी है !!

जिस तरह वाड्रा ,गडकरी और वीरभद्र सिंह जैसे लोगों पर जो आरोप लग रहें हैं और एक बारगी देखने पर तो  उनमे कुछ सच्चाई भी नजर आ रही है क्योंकि ये लोग एक ही बात बार बार कह रहे हैं कि सारे आरोप निराधार और बेबुनियाद हैं लेकिन जो सवाल खड़े हुयें हैं उनका जवाब कोई भी नहीं दे रहा है और अगर कोई दे भी रहा है तो जलेबी की तरह से गोल गोल घुमा के दे रहा है जो किसी कि भी समझ में नहीं आ रहा है जिससे ये साफ़ है कि जवाब इनके पास है ही नहीं !!

किस तरह से वाड्रा कुछ ही समय में लखपति से अरबपति बन जाता है उसी तरह से वीरभद्र सिंह की आय अचानक से तीस प्रतिशत तक बढ़ जाती है और यही हाल गडकरी का है जिन पर नए नए खुलासे रोज हो रहें है और यह भी पता लग रहा है कि किस तरह से इन लोगों ने सता की नजदीकियों और अपने राजनैतिक रसूख का नाजायज फायदा उठाया है !!

गुरुवार, 18 अक्तूबर 2012

इतने अच्छे बयानवीरों का सम्मान होना चाहिए !!

आजकल ताजे ताजे रहस्योदघाटन  कर रहें है हमारे माननीय गण अब इस बहस में हम क्यों पड़े कि क्यों कर रहे हैं कैसे कर रहें हैं अब देश से जुड़े हुए नेता है तो देश के हित के लिए ही यह रहस्योद्घाटन कर रहे होंगे और वैसे भी डर लगता है साहब कि कहीं अवमानना के चक्कर में ना पड़ जाएँ इसलिए हम तो उनके इन्ही रहस्योद्घाटनों पर ही विश्वास कर लेते हैं और वही रहस्योदघाटन  आपके सामने खोल देते हैं !!

श्रीप्रकाश जायसवाल साहब ने  बताया कि पुरानी जीत और पुरानी बीबी में वो मजा नहीं आता तो साहब अब जिस के एक बीबी है वो बेचारा इस रहस्य को कैसे समझ पायेगा और जायसवाल साहब को हम लोगों से ज्यादा तजुर्बा है तभी तो वो देश के बड़े नेता है तो उनकी बात में कुछ तो वजन होगा तभी तो यह बात कही है अब लोग उसमें भी मीनमेख निकालकर उनकी समझदारी पर शक कर रहे हैं यह तो गलत बात है ना !

मीडिया वाले हरियाणा में बढती बलात्कार कि घटनाओं पर हो हल्ला मचा रहे थे तो साहब हमको भी लगा कि वाकई यह तो गंभीर मामला है और हम भी चिंता करने लगे और करें क्यों नहीं हम भी तो बेटियों वाले हैं लेकिन जनाब तभी सोनियाजी ने बताया कि इसमें चिंता कि कोई बात नहीं है ऐसा तो पुरे देश में हो रहा है अकेले हरियाणा में तो हो नहीं रहा है जो इतनी चिंता कर रहे हो तो बड़े लोगों की बात को भी मानना ही पड़ता है तो हमने सोचा कि हो सकता है यह भी सरकार कि किसी निति का हिस्सा हो क्योंकि साहब अब सरकार के अंदर कौनसा मंथन चलता है इसकी जानकारी तो रहती नहीं है तो सोनियाजी कि बात का विश्वास करने के सिवा हमारे पास कोई चारा ही नहीं था तभी सोनियाजी के एक सिपहसालार ने एक धमाकेदार रहस्योदघाटन करके बताया कि नब्बे प्रतिशत बलात्कार तो लड़कियों की मर्जी से ही होते हैं अब साहब इस रहस्योदघाटन ने हमारे दिमाग को चक्करघिन्नी बना दिया क्योंकि अभी तक तो बलात्कार का अर्थ यही माना जाता था कि जबरदस्ती या बहला फुसला कर बनाए गए संबध को ही बलात्कार माना जाता है अब आपके पास बलात्कार कि इस नयी परिभाषा के बारे में कोई जानकारी हो तो हमको भी बता देना !