शुक्रवार, 23 अगस्त 2013

राजनितिक नफ़ा नुकशान के हिसाब से विवाद पैदा किया जा रहा है !!

विश्व हिंदू परिषद और राम मंदिर जन्मभूमि आंदोलन से जुड़े हुए संतो द्वारा उद्घोषित ८४ कोसी परिक्रमा को लेकर उतरप्रदेश सरकार और संतों के बीच टकराव की जो स्थति बन रही है वो निश्चय ही दुखद: और निराशाजनक है ! इस तरह से विवाद पैदा करके जहाँ एक और राजनितिक फायदे के लिए कदम उठाये जा रहें हैं वहीँ दूसरी तरफ लगातार उतरप्रदेश के साम्प्रदायिक सद्भाव को भी नुकशान पहुंचाया जा रहा है ! जिसका परिणाम कतई अच्छा मिलनें वाला नहीं है !

उतरप्रदेश की समाजवादी पार्टी की सरकार अपनें गठन के बाद से ही उतरप्रदेश में साम्प्रदायिक सद्भाव को बनाए रखनें में नाकाम रही है और उस पर मुस्लिम तुस्टीकरण के आरोप लगातार लगते रहें हैं !  उतरप्रदेश में लगातार हुए दंगों से उसकी नाकामी साफ़ दिखाई पड़ रही है जिनका जिक्र मैनें अपनें पिछले आलेख "अखिलेश सरकार अपनीं विफलताओं को तुस्टीकरण की आड़ में छुपाना चाहती है " में भी किया था ! हालांकि ऐसा नहीं है कि इस यात्रा को लेकर उँगलियाँ वीएचपी की तरफ नहीं उठ रही है उंगलियां उसकी तरफ भी उठ रही है और उसके निर्णय के पीछे भी भाजपा का राजनितिक फायदा देखा जा रहा है ! सपा और भाजपा के वोटबेंक ध्रुवीकरण के तौर पर इस यात्रा का इस्तेमाल किया जा रहा है लेकिन इससे सन्देश गलत जा रहा है !

जहाँ तक मेरा मानना है उतरप्रदेश सरकार को इस यात्रा पर रोक नहीं लगानी चाहिए थी जिसके कारण ये यात्रा ना तो विवादित होती और ना ही इस तरह से सुर्ख़ियों में आती ! लेकिन यहाँ उतरप्रदेश सरकार नें अपने फायदे को आगे रखा और इस यात्रा पर रोक लगानें की घोषणा करने के साथ ही उन छ: जिलों में धारा १४४ लगाकर वीएचपी नेताओं की धरपकड करनें में लग गयी ! देश के अन्य भागों से इन धार्मिक स्थलों के लिए धार्मिक यात्रा पर आये लोगों को भी २४ जनवरी से पहले इन स्थानों से वापिस चले जाने के निर्देश जारी कर दिए गए ! उतरप्रदेश सरकार द्वारा यात्रा को रोकनें के लिए जिस तरह से भारी मात्रा में सुरक्षाबलों की तैनाती की गयी है उतनें सुरक्षाबलों की जरुरत तो यात्रा होती तो भी उसकी सुरक्षा व्यवस्था संभालने में भी नहीं लगती !

शुक्रवार, 16 अगस्त 2013

निराशा के माहौल में हर जश्न औपचारिकता ही लगता है !!

आज देश जब स्वतंत्रता दिवस की सड़सठवीं वर्षगाँठ मना रहा है उस समय क्या कारण है कि लोगों में उत्साह नहीं है बल्कि निराशा का वातावरण है ! ज्यों ज्यों आजादी मिलनें के वर्ष बीतते जा रहें है उसी तरह लोगों की यह सोच बलवती होती जा रही है कि उन्हें तो केवल आजादी के नाम पर छला जा रहा है और केवल सत्ता का हस्तांतरण भर हुआ है ! जहाँ केवल शासन करने वाले बदले है और कुछ नहीं बदला है ! नीतियां वही,कानून वही ,भाषा वही तो फिर बदला क्या है !

देश में पूंजी की असमानता तेजी से बढती जा रही है और सत्ताओं में बैठे लोग हकीकत से मुहं चुराते नजर आते हैं ! गरीबी अमीरी की बढती खाई को दूर करने के बजाय आंकड़ों के मायाजाल में उलझा रहे हैं ! देश का सांप्रदायिक सद्भाव बिगड़ता जा रहा है और सत्तानशीं उसको गंभीरता से लेनें के बजाय उल्टा बयानबाजी करके उसको प्रोत्साहित कर रहें हैं ! पिछले दौ सालों में देश भर में पच्चास से ज्यादा साम्प्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने वाली घटनाएं हो चुकी है ! अर्थव्यवस्था रसातल में चली जा रही है और हमारी मुद्रा में लगातार गिरावट का दौर जारी है जिसके कारण हमारे सताधारी हमारे बाजार को आर्थिक सुधार के नाम पर लगातार विदेशियों के हवाले करते जा रहें हैं !

आजादी से पहले भी किसानों की हालत ज्यादा अच्छी नहीं थी लेकिन आज तो उससे भी बदतर होती जा रही है और कृषिप्रधान देश में किसानों की आत्महत्याओं के समाचार लगातार सुनने को मिल रहे हैं ! और इसके लिए हमारे सत्ताधारियों की विदेशों से आयातित वो नीतियां जिम्मेदार है जिनको कठघरे में खड़ा करना तक हमारे सत्ताधारियों को पसंद नहीं है ! कानून व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा चुकी है जिसके कारण हर किसी के अंदर भय का माहौल व्याप्त है ! सुरसा के मुहं की तरह बढती महंगाई नें लोगों की जेब को खोखला करनें में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी है और जो लोग सत्ताओं पर बैठे हैं और देश की दशा और दिशा तय करनें की जिम्मेदारी जिन लोगों पर है उनके तमाम वायदे खोखले साबित हो चुके हैं !

बुधवार, 14 अगस्त 2013

आखिर किश्तवाड़ हिंसा का सच क्या है !!

जम्मू के किश्तवाड़ में ९ अगस्त को हुयी हिंसा क्या पहले से प्रायोजित थी और कहीं यह वहाँ के अल्पसंख्यकों के विरुद्ध षड्यंत्र तो नहीं था ! जो बातें सामने आ रही है वो इसी और इशारा कर रही है और ऐसा कश्मीर घाटी में वहाँ के अल्पसंख्यकों के साथ पहले भी हो चूका है ! असल में जम्मू -कश्मीर में देशविरोधी तत्व सबसे ज्यादा सक्रीय हैं और वहाँ के अल्पसंख्यक उनके लिए आसान निशाना है जिससे की धार्मिक आधार पर कश्मीर के बहुसंख्यक लोगों को अपनें साथ जोड़ा जा सके !

किश्तवाड़ घटना के बारे में जैसा मायावती नें कहा कि एक समुदाय के लोगों को चुन चुनकर निशाना बनाया गया ! उनको मारा गया पीटा गया ! उनकी दुकानों और घरों को जलाया गया ! प्रशासन की तरफ से कोई कदम नहीं उठाया गया ! गृह राज्य मंत्री सज्जाद किचालू वहीँ था और आगजनी ,लूटपाट,हिंसा होती रही लेकिन गृह राज्य मंत्री बाहर नहीं निकला ! अगर वो चाहता तो कानून व्यवस्था की स्थति को संभाल सकता था ! लेकिन उसनें ऐसा नहीं किया ! और बसपा सुप्रीमो मायावती नें जो कहा है वो वहाँ जो हुआ वो बताने के लिए काफी है और उनका ये बयान अहम इसलिए भी है क्योंकि मायावती कांग्रेस और भाजपा की तरह धार्मिक राजनीति नहीं करती है !

हालांकि किश्तवाड़ में वहाँ के प्रशासन की नाकामी तो प्रथमदृष्टया ही दिखाई पड़ रही है लेकिन कहीं ये जान बूझकर बरती गयी ढिलाई तो नहीं थी ! इसका पता लगाना बहुत ही जरुरी है जैसा की उधमपुर के कांग्रेस सांसद लालसिंह का भी कहना है कि किश्तवाड़ में छ: घंटे तक जंगल राज रहा जिसमें दंगाइयों नें वहाँ के अल्पसंख्यक हिंदुओं के मकानों और कारोबारी ठिकानों को बुरी तरह तबाह किया ! भद्रवाह से कांग्रेस के ही सांसद नरेश गुप्ता नें सीधे सीधे मायावती की ही तरह किचालू को निशाने पर लेते हुए कहा कि यह सब किश्तवाड़ में किचालू की मौजूदगी में हुआ ! उसकी भूमिका की जांच होनी चाहिए ! दंगाइयों को बंदूके कहाँ से मिली और समय रहते कर्फ्यू क्यों नहीं लगाया गया !

शुक्रवार, 9 अगस्त 2013

सरकार की मंशा क्या शोशल मीडिया पर अंकुश लगाने की है !!

भारत सरकार अपनें खिलाफ उठने वाली आवाजों को दबाना चाहती है और वो ऐसा हर बार करती भी आई है लेकिन वो अभी तक शोशल मीडिया की आवाज को दबाने में कामयाब नहीं हो पायी है और ऐसा नहीं है कि उसनें ऐसी कोई कोशिश पहले नहीं की है ! वो पहले भी आसाम हिंसा के समय भी साम्प्रदायिकता का बहाना बनाकर अपनें विरुद्ध चलनें वाले ट्विटर और फेसबुक पेजों को उस समय बंद करवा दिया था ! लेकिन वो एक ही बार उठाया गया कदम था लेकिन अब जो समाचार मिल रहें है उनके अनुसार सरकार शोशल मीडिया पर लगातार अंकुश बनाए रखने के लिए तैयारी कर रही है ! 

जो समाचार मिल रहें है उनके अनुसार सरकार प्रसारण मंत्रालय के अधीन न्यू मीडिया विंग  की स्थापना करने के लिए तैयार हो गयी है और उसके लिए शुरूआती बजट का प्रावधान भी कर दिया गया है ! यह न्यू मीडिया विंग का काम शोशल मीडिया में सरकारी कामों का प्रचार करना और शोशल मीडिया पर नजर रखना बताया जा रहा है ! लेकिन लगातार सरकार के मंत्रियों की शोशल मीडिया पर अंकुश लगाने जैसी सलाह देने वाले  बयानों के चलते सरकार के इस कदम पर सवाल उठना लाजमी है ! और सरकार के इस कदम को शोशल मीडिया को नियंत्रित करनें के तौर पर देखा जा रहा है !

और ऐसा सोचने के पीछे कारण भी मौजूद है क्योंकि जिस तरह से बाबा रामदेव,अन्ना हजारे जैसे आंदोलनों में शोशल मीडिया मुखर होकर उभरा है ! और सरकार शोशल मीडिया के सामनें लाचार और मजबूर हो गयी थी ! उन आंदोलनों के बाद भी सरकार के कार्यों को लेकर शोशल मीडिया में सरकार पर लगातार हमले होते रहें हैं और अभी भी हो रहे हैं ! और शोशल साइटें चला रही ये तमाम कम्पनियां विदेशी होनें के कारण सरकार इनको दबाव में लाकर मनमाने तरीके से दखलंदाजी भी नहीं कर पा रही है ! यही कारण है कि सरकार लगातार शोशल मीडिया पर अंकुश लगाने की ख्वाहिशमंद रही है जो वो अब न्यू मीडिया विंग के जरिये करना चाह रही है !

बुधवार, 7 अगस्त 2013

भारतीय सताधिशों के रवैये के कारण ही पाकिस्तान का हौसला बढ़ा है !!

पाकिस्तानी सेना नें एक बार फिर अपना नापाक चेहरा दिखा दिया और हमारे पांच जवानों को रात के अँधेरे में घात लगाकर शहीद कर दिया ! उन जवानों को क्षोभपूर्ण दिल से श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए में यह कहना चाहता हूँ कि आखिर हमारे देश के सत्ताधीश किस मिटटी के बनें हुए हैं जिनको कभी गुस्सा नहीं आता है ! पाकिस्तान हर बार अपनीं नापाक हरकतों को अंजाम दे जाता है ! हमारे सत्ताधीश बयान देकर अपनें कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं और फिर अपनीं तरफ से इकतरफा दोस्ती का राग अलापनें लगते हैं जबकि पाकिस्तान हमारे साथ दोस्ती चाहता ही नहीं है ! वो केवल विश्व समुदाय की आँखों में धुल झोंकने के लिए दोस्ती का नाटक करता है ! 

दरअसल पाकिस्तान का इतना हौसला नहीं है कि वो इस तरह से भारत से सीधी दुश्मनी मोल ले लेकिन उसको ये हौसला हमारे सत्ताधीश दे रहे हैं ! जो पाकिस्तान को कड़ा जबाब देनें की बजाय अपनीं नासमझियों के कारण उसके ही बचाव का रास्ता तैयार करते रहते हैं ! याद कीजिये और वैसे याद करनें की भी जरुरत नहीं है क्योंकि पाकिस्तान का दिया हुआ वो घाव हर भारतीय के सीनें में नासूर बनकर चुभ रहा है जब जनवरी महीनें में पाकिस्तान नें ऐसी ही हरकत की थी और हमारे दो जवानों को शहीद कर दिया था जिसमें शहीद हेमराज का तो सिर काटकर ही पाकिस्तानी सेना अपनें साथ ले गयी थी ! उसके बाद हमारे विदेशमंत्री ,रक्षामंत्री और प्रधानमंत्री नें पाकिस्तान के विरुद्ध कड़ी कारवाई का भरोसा देश को दिया था !

पिछली साल जब दिसम्बर के महीनें में पाकिस्तान के तत्कालीन गृहमंत्री रहमान मालिक भारत दौरे पर आये थे तब उन्होंने अपना अड़ियल रुख यहाँ भारत में ही दिखा दिया था लेकिन हमारे सत्ताधीशों के ऊपर कोई फर्क नहीं पड़ा था और तब भी मैनें उस दौरे का जिक्र करते हुए कहा था कि ढुलमुल विदेशनीति ही पाकिस्तान का हौसला बढ़ा रही है !! और उसी ढुलमुल नीति से बढे हौसलों का परिणाम ही था कि उसके अगले महीनें में ही उन्होंने अपनी नापाक हरकत कर दी और दो भारतीय जवानों को शहीद कर दिया !  उस समय भी मैनें भारत की दोस्ती की नियत पर ये कहते हुए सवाल उठाये थे कि पाकिस्तान सुधरता नहीं और भारत है कि मानता नहीं  है ! 

रविवार, 4 अगस्त 2013

लोकतंत्र को छद्म लोकतंत्र में परिवर्तित कर दिया है !!

हमारे देश में शासन व्यवस्था के आज के हालत देखें तो लोकतंत्र के नाम पर छद्म लोकतंत्र ही दिखाई देता है जिसमें लोकतंत्र होनें का आभास तो होता है लेकिन हकीकत स्थति उसके उलट दिखाई देती है !  संविधान नें भारतीय लोकतंत्र को सही तरीके से चलाने के लिए तीन स्तंभों विधायिका ,न्यायपालिका और कार्यपालिका को इसकी जिम्मेदारी दी गयी है और इसके लिए विधायिका को सबसे ज्यादा अधिकार प्रदान किये गये थे और उसका कारण था विधायिका का सीधा जनता द्वारा चुनाव होना लेकिन संविधान निर्माताओं नें कभी इस बात की सपनें में भी कल्पना नहीं की होगी कि विधायिका को दी गयी ज्यादा शक्तियां ही लोकतंत्र को छद्म लोकतंत्र में परिवर्तित करनें में उसके लिए मददगार होगी !

आजादी के बाद से ही विधायिका नें अपनें अधिकारों का दुरूपयोग करके ना केवल  न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र में दखलंदाजी की बल्कि कार्यपालिका को भी अपनें कब्जे में कर लिया ! और संविधान की मूल भावना का भी दोहन इसी विधायिका नें ही किया है ! संविधान की प्रस्तावना ( हम भारत के लोग ,भारत को सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन ,समाजवादी,पंथनिरपेक्ष ,लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को : सामाजिक,आर्थीक और राजनितिक न्याय ,विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,धर्म और उपासना की स्वतंत्रता,प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करनें के लिए तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करनें वाली बंधुता बढाने के लिए दृढ संकल्प होकर अपनीं इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ई० ( मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी , संवत दौ हजार छ: विक्रमी ) को एतद द्वारा इस संविधान को अंगीकृत ,अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं  ) को पढ़िए जो हमारे देश के संविधान की मूल भावना है ! जो हमारी शासन व्यवस्था के मूल से ही गायब हो चुकी है !

संविधान की प्रस्तावना में दिए गये एक एक शब्द की धज्जियां विधायिका नें अपने तरीके से उडाई है ! संविधान की प्रस्तावना में भारत को सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन ,समाजवादी,पंथनिरपेक्ष ,लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए  लिखा गया है लेकिन हमारे देश की विधायिका नें इसके उलट कार्य किये हैं !  चीन ,पाकिस्तान जैसे देश हमारी सम्प्रभुता को लगातार चुनौती देते आ रहें हैं लेकिन हमारी विधायिका घोड़े बेचकर सो रही है ! हमारे देश के लोगों के विरुद्ध विदेशों में अन्याय होता है तो भी हमारी विधायिका मौन धारण किये बैठे रहती है ! फिर कैसे सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन होनें की बात कही जा सकती है ! समाजवाद का हाल तो ऐसा है कि देश की तीन चौथाई जनता कुपोषण का शिकार है पूंजी महज कुछ लोगों तक सिमट कर रह गयी है !  

शुक्रवार, 2 अगस्त 2013

इस भ्रष्टाचार और अपराध पोषित व्यवस्था को बदलनें का रास्ता आखिर क्या है !!

पिछले दिनों में दो अच्छे फैसले आये थे जिनकी सराहना हर किसी नें की थी जिनमें पहला फैसला केन्द्रीय सुचना आयोग से आया था जिसमें राष्ट्रीय पार्टियों को सूचना के दायरे में लानें के हक में दिया था और दूसरा फैसला राजनीति में अपराधीकरण को रोकनें के पक्ष में सर्वोच्च न्यायालय नें दिया था जिसमें दो साल की सजा पानें वाले व्यक्ति को चुनाव लडनें के लिए अयोग्य घोषित किया गया था और जेल से चुनाव लडनें पर भी रोक लगाई गयी थी ! दोनों फैसले जनता को तो अच्छे लगे लेकिन राजनैतिक पार्टियों के लिए ये फैसले आँख की किरकिरी बन गए थे जिसका जिक्र मैनें अपनें आलेख "राजनैतिक पार्टियां आरटीआई से इतनी डरती क्यों है " में किया था !

इसीलिए उन फैसलों के विरुद्ध सभी राजनैतिक पार्टियां पहले दिन से ही एकजुट नजर आ रही थी और कुछ इन फैसलों का दबे स्वरों में विरोध कर रही थी तो कुछ खुलकर इन फैसलों के विरुद्ध में बोल रही थी ! लेकिन अब इन पार्टियों और सरकार नें इन फैसलों की धज्जियां उड़ानें का मन बना लिया है ! सुचना के अधिकार के अंतर्गत पार्टियों को आनें से बचानें के लिए तो सुचना के अधिकार कानून में संसोधन का प्रस्ताव तो केबिनेट से पास हो चूका है और जैसा पार्टियों का रुख है उससे लगता है कि यह संसद में भी पास हो जाएगा ! इसी तरह सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को भी विधेयक के जरिये बदलनें की मांग सभी राजनैतिक पार्टियों द्वारा की जा रही है !

इस तरह से जन आकांक्षाओं से जुड़े हुए फैसलों को बदलनें में हमारे देश की राजनैतिक पार्टियों को बिलकुल भी जनता का डर नहीं है ऐसे में यह सवाल तो उठेगा ही कि क्या देश में वास्तव में लोकतंत्र है ! या फिर छद्म लोकतंत्र के सहारे जनता को बहलाया जाता है क्योंकि लोकतंत्र में जनता सर्वोच्च होती है लेकिन यहाँ तो ऐसा लग रहा है कि राजनैतिक दल ही सर्वोच्च हो गए हैं ! पुरे को पुरे लोकतंत्र को इन राजनैतिक पार्टियों नें बंधक सा बना लिया है और इनकी मर्जी के बिना कुछ भी हो नहीं सकता है ! मुझे तो लगता है कि जनता को केवल छद्म लोकतंत्र के सहारे बहलाया जाता है ताकि जनता बगावत पर नहीं उतरे और लोकतंत्र के भूलभुलैया में जीती रहे !

मंगलवार, 30 जुलाई 2013

अखिलेश सरकार अपनी विफलताओं को तुष्टिकरण की आड़ में छुपाना चाहती है !!

उतरप्रदेश की समाजवादी पार्टी की सरकार अपनीं नाकामियों को मुस्लिम तुष्टिकरण के सहारे छुपाने की कोशिश करती देखी जा रही है ! पिछले साल मार्च २०१२ में सत्ता संभालने वाली सरकार से लोगों को काफी उम्मीदें थी और युवा मुख्यमंत्री अखिलेश से तो लोगों को उम्मीदें इसीलिए भी थी कि वो कीचड़ भरी राजनीति नहीं करेंगे और प्रदेश को एक अच्छी सरकार देंगे ! लेकिन अखिलेश यादव की इस सरकार नें प्रदेश की जनता और देश के बुद्धिजीवियों को ना केवल निराश किया बल्कि उतरप्रदेश को बद से बदतर स्थति में पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है !

अखिलेश सरकार को सत्ता संभाले अभी एक साल से कुछ ही ज्यादा समय हुआ है लेकिन प्रदेश का सांप्रदायिक सद्भाव पूरी तरह से बिखर चूका है और हालत किस कदर खराब है कि बरेली जैसे स्थानों का साम्प्रदायिक सद्भाव आजादी से लेकर अभी तक नहीं बिगड़ा था और किसी भी भड़काऊ मुद्दे से दूर रहनें वाला यह शहर भी इस समयावधि में तीन बार दंगे का दंश झेल चूका है ! अभी तक प्रदेश में इस समयावधि में उतरप्रदेश में होनें वाले तीस से ज्यादा दंगे साम्प्रदायिक सद्भाव के चकनाचूर होनें की कहानी कहने के लिए काफी है और अखिलेश सरकार को कठघरे में खडा करनें का भी पर्याप्त कारण है ! क्योंकि मार्च में इस सरकार के सत्ता संभालने के बाद से ही ऐसा हो रहा है जिसके कारणों में इस सरकार की मुस्लिम तुस्टीकरण की नीति है जो एक तरह से सद्भाव बिगाड़ने वालों का हौसला बढ़ा रही है !

इस सरकार के कारनामों पर नजर डालनें से सारा मंजर समझ में आ जाता है ! किस तरह से जेलों में बंद मुस्लिम आतंवादियों को रिहा करनें की बात की गयी थी ! और उनको रिहा करनें की कोशिश भी की गयी थी लेकिन इलाहबाद उच्च न्यायालय नें उस पर रोक लगा दी जिसके कारण सरकार वैसा कर नहीं पायी ! लेकिन इस सरकार नें बनने के बाद हर समय ऐसा ही सन्देश दिया है वो केवल और केवल मुसलमानों की ही सरकार है और उसी का परिणाम आज ये है कि उतरप्रदेश का सांप्रदायिक सद्भाव अपनें निचले स्तर पर आ चूका है ! और उसकी परिणति दंगो के रूप में सामने आ रही है !

रविवार, 28 जुलाई 2013

दंगो का दर्द क्या किसी को पार्टियों की सरकारें देखकर होता है !!

दंगो का दर्द क्या सरकारें देखकर होता है या फिर हर दंगे का दर्द होता ही है ! यह सवाल मेरा हर उस समझदार आदमीं से है और उस हर आदमीं से भी है जो अपनें आपको धर्मनिरपेक्ष कहता है ! जहाँ तक मेरा मानना है कि हर दंगे का दर्द बराबर होना चाहिए  लेकिन आज के मीडिया और छद्म धर्मनिपेक्षतावादियों के लिए हर दंगे का दर्द बराबर नहीं होता है और उनको दर्द भी सरकारें देखकर होता है ! 

२००२ के गुजरात दंगो के बारे में मीडिया और कथित धर्मनिरपेक्ष लोगों द्वारा इतनी चर्चा की गयी है और मोदी को कठघरे में खड़ा करनें की हरसंभव कोशिश की जा रही है ! और अभी तक इतनी जाँचें इन दंगो को लेकर करवाई गयी है लेकिन अभी तक मोदी के विरुद्ध ऐसा कुछ मिला नहीं है जो उनको दोषी साबित कर सके ! फिर भी मीडिया और कथित धर्मनिरपेक्षता के चोले में लिपटे ये लोग मोदी को दोषी करार देते रहते हैं ! लेकिन जब यही लोगों के मुख से और किसी पार्टी के शासनकाल में हुए दंगो का जिक्र तक नहीं होता है तो इनकी नियत पर संदेह होना लाजमी है !

गुजरात में तो २००२ में फिर भी दंगे हुए थे और उसकी भी शुरुआत गोधरा से तब हुयी थी जब ५९ हिंदुओं को रेलगाड़ी के अंदर जिन्दा जला दिया और उसकी प्रतिक्रियास्वरूप काफी जगहों पर हिंसा हुयी जिसमें दोनों समुदायों के लोग मारे गए थे ! और गोधरा कांड के दोषियों में कुछ लोग एक पार्टी से भी जुड़े हुए थे लेकिन मीडिया और इन तथाकथित धर्मनिरपेक्ष लोगों के मुहं से आप गोधरा का तो नाम ही नहीं सुनेंगे बल्कि इनके केंद्रबिंदु में उसके बाद की घटनाएं ही रहती है ! जबकि इन दंगों की पूरी जड़ ही गोधरा ही है क्योंकि गोधरा में वो घटना नहीं होती तो उसके बाद में गुजरात में जो हिंसा हुयी वो भी नहीं होती !

बुधवार, 24 जुलाई 2013

राजनैतिक विरोधाभास में क्या देश की गरिमा से खिलवाड़ किया जाना सही है !

जिस तरह से देश के ६५ माननीय (?) सांसदों नें अमेरिका को पत्र लिखकर अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को पत्र लिखकर फेक्स के जरिये भेजा है वो ना केवल आपतिजनक है बल्कि इस देश की संप्रभुता, कानून व्यवस्था,न्याय व्यवस्था और लोकतांत्रिक व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह लगाने जैसा भी है जिसको हलके में कतई नहीं लिया जाना चाहिए ! क्योंकि इसके पीछे उनकी मंशा और सोच भले ही राजनैतिक विरोध की रही हो लेकिन उन्होंने इस सोच में दूसरे देश के सामने भारतीय व्यवस्था पर अविश्वास जताने जैसा काम किया है जिसके लिए उनका विरोध होना ही चाहिए !

उनके इस पत्र को लेकर कई तरह के सवाल खड़े होते हैं और उनमें सबसे पहला सवाल तो यही है कि क्या किसी को यह अधिकार है कि वो किसी भी वैध भारतीय नागरिक को वीजा देनें से रोकनें की मांग करे और मांग करनें वाले खुद सांसद हो तो और भी ज्यादा सवालों के घेरे में आ जाते हैं क्योंकि भारत में चुनी हुयी सरकार है और विदेश जानें वालों को उसी सरकार की और से वैध पासपोर्ट मिलता है और हर कोई जानता है कि विना वैध पासपोर्ट के वीजा की कोई अहमियत नहीं है तो फिर किसी के विदेश जानें को लेकर किसी को आपति है तो भारत सरकार को उचित कारण के साथ पासपोर्ट रद्द करवाने के लिए लिखना चाहिए ना कि विदेशी सरकार से वीजा ना देनें की अपील करके देश की किरकिरी करवाएं !

हालांकि मोदी के वीजे को लेकर खुद भारत सरकार भी कठघरे में खड़ी है क्योंकि जब भी अमेरिका द्वारा मोदी को वीजा नहीं देनें की बात कही गयी थी उस समय भारत सरकार नें अमेरिका के इस कथन का विरोध नहीं किया ! जबकि नीतिगत आधार पर इसका विरोध होना चाहिए था क्योंकि मोदी भारतीय नागरिक है और एक राज्य के मुख्यमंत्री भी हैं ! और मोदी अभी तक किसी भी मामले में दोषी साबित नहीं हुए है उसके बावजूद अमेरिका का मोदी को दोषी मानना और उनको वीजा नहीं देना भारतीय न्याय व्यवस्था पर अविश्वास करना जैसा है जिसका विरोध किया जाना जरुरी था लेकिन भारत सरकार नें ऐसा नहीं किया और उसनें कूटनीतिक तौर पर सोचनें के बजाय भारत की अंदरूनी राजनितिक सोच को आगे रखा !

सोमवार, 22 जुलाई 2013

हिंदी की बात करना ही क्या इस देश में गुनाह हो गया है !!


हमारे देश में इससे बड़ी विडम्बना क्या हो सकती है कि हिंदी को मातृभाषा का दर्जा तो मिल गया लेकिन आज भी उसको राजभाषा के तौर पर लागू नहीं करवा पाए हैं और उसके लिए आज भी आंदोलन करना पड़ता है और उसके लिए शांतिपूर्ण आंदोलन करनें वाले लोगों को सरकार तिहाड़ जेल भिजवा देती है ! कैसे कह दें कि ये भारतीय राज है क्योंकि आज भी कारनामें अंग्रेजी राज के ही है ! ऐसा लगता है हिंदी की बात करना ही इस देश में गुनाह हो गया है ! 

पिछले दिनों भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह द्वारा हिंदी के पक्ष में बोलनें पर मीडिया और सरकार चला रही पार्टी के नेताओं का आक्रामक रुख देखनें को मिला जैसे राजनाथ सिंह नें कोई बहुत ही जघन्यकारी बात कह दी हो और उसके पक्ष में और विपक्ष में बोलनें वालों की लाइन लग गई ! लेकिन जब दिल्ली की पुलिस नें हिंदी के जुनूनी सेनानी श्यामरुद्र पाठक जी को गिरप्तार करके तिहाड़ जेल भेज दिया तो उन्ही सब लोगों की जबान पर ताला लग गया और किसी की जुबान से एक शब्द तक नहीं निकला ! शब्द निकलना तो दूर बल्कि मीडिया नें इसकी भनक तक नहीं लगनें दी !

श्यामरुद्र जी पाठक पिछले २६० दिनों से अदालतों में हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओँ के पक्ष में अपना आंदोलन कर रहे थे और उन्होंने अपनें आंदोलन का दायरा दस जनपथ के आसपास तय कर रखा था जिसके कारण उन्हें पुलिस पकड़ कर ले जाती और दिल्ली के तुगलक रोड़ थानें में बिठाकर दिन भर रखती और रात को छोड़ देती और ये हिंदी का जुनूनी सेनानी फिर उसी तरह से अपनें आंदोलन में लग जाता ! यह सिलसिला लगातार चल रहा था लेकिन पिछले २०-२५ दिनों से श्यामरूद्र पाठक जी नें आमरण अनशन चालु कर दिया था ! जिसके बाद दिल्ली पुलिस नें उन्हें उठाकर तिहाड़ जेल में डाल दिया है !

शनिवार, 20 जुलाई 2013

जनता के साथ अजीब खेल खेल रही है सरकारें !!

हमारे देश में सरकारों का अजब हाल है उन्होंने इस देश को फ़ुटबाल का मैदान समझ रखा है और जनता को फ़ुटबाल ,तभी तो वो जब चाहे जो चाहे और उनके मन में जो आये वो करती रहती है ! असल में सरकारों नें इस देश की जनता को मुर्ख समझ रखा है ! अब सरकार खाध सुरक्षा बिल ला रही है जिसके कारण सरकार की नियत पर सवाल उठना लाजमी है !

एक तरफ सरकार कहती है कि ८४ करोड़ लोगों की भूख मिटानें की यह महत्वाकांक्षी योजना है और इस पर एक लाख छब्बीस हजार करोड़ रूपये का खर्च प्रतिवर्ष आएगा ! दूसरी तरफ उसी सरकार का योजना आयोग कहता है कि शहरी क्षेत्र में ३२ रूपये और ग्रामीण क्षेत्र में २६ रूपये से ऊपर कमानें वाला गरीब नहीं है और भरपेट खाना खा सकता है ! योजना आयोग के हिसाब से तो सरकार झूठ बोल रही है क्योंकि उसके आंकड़े को गरीबी रेखा का पैमाना माना जाए तो गरीबों की संख्या बिना कुछ किये अपनें आप बहुत कम हो जाती है ! और अगर सरकार सच बोल रही है तो उसी सरकार का योजना आयोग नें पहले क्यों झूँठ बोल कर गरीबों के असली आंकड़ों को छुपाने की कोशिश की !

जब जनता को पेट्रोल और डीजल पर राहत देनें की बात आती है और जब सरकार की डीजल और रसोई गैस पर से सब्सिडी कम करने पर आलोचना होती है तो हमारे माननीय अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री कहतें हैं कि पैसे पेड़ पर नहीं उगते हैं तो अब माननीय प्रधानमंत्री जी को बताना चाहिए कि इस योजना के लिए पैसे कहाँ से आयेंगे ! और फिर जनता से ही सब्सिडी कम करके और तरह तरह के कर लगा कर इस योजना का खर्च वसूल करना है तो महज चुनावी नौटंकी के तहत पहले से ही महंगाई और सरकारी करों के बोझ से दबी जनता पर यह बोझ और क्यों डाला जा रहा है !

बुधवार, 17 जुलाई 2013

साम्प्रदायिकता की आड़ में नाकामियों पर पर्दा डालनें की कोशिश !!

मोदी के बयानों पर जिस तरह से बयानबाजी हो रही है उससे लगता है कि साम्प्रदायिकता की आड़ में कांग्रेस अपनी नाकामियों को छुपाना चाहती है ! मोदी जिन मुहावरों और जुमलों का प्रयोग कर रहें हैं उन्ही का सहारा लेकर कोंग्रेस के तमाम नेता उन पर हमलावर हो रहें है ! और उन्ही जुमलों का सहारा लेकर कांग्रेस मुसलमानों के बीच भ्रम फैलाने की कोशिश कर रही है !

मोदी लगातार अपनें बयानों में कांग्रेस पर निशाना साध रहे हैं और उसकी नीतियों पर और यूपीए सरकार की नाकामियों पर बरस रहे हैं लेकिन कांग्रेस उसका जबाब देने की बजाय वो जुमलों के शब्दों को पकड़कर सांप्रदायिक भावनाएं भड़काने की कोशिश कर रही है ! दरअसल कांग्रेस के पास मोदी की बातों के जबाब में कुछ कहनें को है नहीं क्योंकि यूपीए सरकार के माथे पर नाकामियों के इतने दाग लगे हुए है कि उससे कुछ कहते नहीं बन रहा है ! भ्रष्टाचार के इतनें मामले इस सरकार के शासनकाल में हुए है कि अब देश कोंग्रेस की इमानदारी को ही संदिग्ध मानने लग गया है ! हालत यह हो गयी कि सर्वोच्च न्यायालय तक को सरकार पर भरोसा नहीं रहा और टूजी घोटाले और कोयला घोटाले की जांच को अपनी निगरानी में ही करवाना उचित समझा !

घोटालों की जांच करने वाली एजेंसी सीबीआई को सरकार नें पालतू तोते की तरह इस्तेमाल करके उसकी विश्वनीयता को तार तार करनें में कोई कसर नहीं छोड़ी ! सरकार और उसके नेताओं नें केग जैसी सवैधानिक संस्था पर प्रहार करनें और उसकी विश्वनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगाकर उसको कठघरे में खड़ा करनें की कोशिशें की गयी लेकिन जब टूजी पर फैसका सर्वोच्च न्यायालय नें दिया तो केग की रिपोर्ट पर मुहर लग गयी और सरकार की विश्वनीयता और प्रतिष्ठा दोनों रसातल में चली गयी !

सोमवार, 15 जुलाई 2013

राजनैतिक निशाने साधनें का खेल देश पर भारी नहीं पड़ जाए !!

इशरत जहाँ मामले को लेकर जिस तरह से देश की दो सर्वोच्च एजेंशियाँ आमने सामने है और अब जो ख़बरें सामने आ रही है वो देश की आंतरिक सुरक्षा के लिहाज से चिंताजनक स्थति की और इशारा कर रही है !  अब ख़बरें ऐसी आ रही है कि अपनें चार अधिकारियों को बेवजह फंसाने को लेकर कुपित आईबी अधिकारियों नें अपना काम सिमित कर दिया है ! अगर सच यही है तो यही कहा जा सकता है कि सरकार नें आंतरिक सुरक्षा को रामभरोसे छोड़ दिया है ! 

आईबी के निदेशक आसिफ इब्राहिम नें प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के यहाँ लिखित आपति जताते हुए हस्तक्षेप की मांग की थी ! लेकिन उनकी किसी नें नहीं सुनी और इतना ही नहीं आईबी के पूर्व अधिकारियों नें भी प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर सीबीआई को ऐसा करने से रोकने की मांग की थी ! लेकिन कहीं से कोई नतीजा नहीं आया और आज हालत ये है कि आईबी के अधिकारी गृह मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय को सुचना देनें से ही कतराने लगे है ! और यह गतिरोध ज्यादा दिन तक चला तो यह देश के लिए खतरनाक साबित हो सकता है ! 

जहाँ तक सीबीआई की जांच की बात की जाए उसमें अनेक विरोधाभास दिखाई देते हैं ! जहाँ सीबीआई इसको फर्जी मुठभेड़ बता रही है लेकिन सीबीआई ये नहीं बता रही कि उसमें मारे गए लोगों का संबंध आतंकवादियों से था अथवा नहीं ! जबकि अभी पिछले दिनों ही ये खबर आई थी कि इशरत जहाँ हथियार खरीदने के लिए अपनें साथियों के साथ उतरप्रदेश के एक गाँव गयी थी ! सीबीआई इस कथित फर्जी मुठभेड़ के पीछे के मकसद पर भी खामोश है ! वो यह बता नहीं पा रही कि किस मकसद से यह मुठभेड़ की गयी थी और बिना मकसद के भला क्यों कोई किसी को ऐसे ही अलग अलग जगहों से उठा उठा कर मार देगा जैसा कि सीबीआई कह रही है !

शनिवार, 13 जुलाई 2013

नरेंद्र मोदी के बयान पर बेवजह का बवाल !!

समाचार एजेंसी राइटर्स को दिए गए इंटरव्यू को लेकर मीडिया में नरेंद्र मोदी की आलोचना की जा रही है ! और तरह तरह के मंतव्य दिए जा रहे हैं लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या किसी नें उस इंटरव्यू को पढ़ा भी है या महज एक शब्द को ही गलत मानकर उसके अर्थ निकाले जा रहें हैं ! मुझे तो यही लगता है कि जो भी मोदी की आलोचना कर रहें हैं उन्होंने या तो उस इंटरव्यू को पढ़ा नहीं है या फिर वो जानबूझकर उस इंटरव्यू के अर्थ का अनर्थ केवल और केवल इसलिए कर रहें है क्योंकि वो इंटव्यू नरेंद्र मोदी का है !!

वो पूरा इंटरव्यू अंग्रेजी में है और उसको यहाँ जाकर पूरा पढ़ा जा सकता लेकिन इंटरव्यू के जिस हिस्से पर विवाद खड़ा किया गया है उस हिस्से को मै हिंदी में आपके सामनें प्रस्तुत कर रहा हूँ ! जिससे आप खुद पढकर फैसला कर सके कि उसमें क्या गलत है और क्या सही है ! मुझे तो उसमें कुछ गलत नजर नहीं आ रहा है शायद आपकी पारखी नजरें उसमें कुछ गलत खोज सके तो कृपया मुझे भी बताने का कष्ट अवश्य करें !




गुरुवार, 11 जुलाई 2013

शंखनाद की पहली वर्षगाँठ पर सबका हार्दिक आभार !!

आज से एक साल पहले ही मैनें अपने ब्लॉग "शंखनाद" पर पहला आलेख लिखा था और उस हिसाब से आज "शंखनाद" नें दूसरे वर्ष में प्रवेश कर लिया है ! आज जब "शंखनाद" नें अपना एक साल पूरा कर लिया है तो जिनका मुझे प्यार और सहयोग मिला उनका में हार्दिक आभारी हूँ ! पहले में यहाँ आया था तब ब्लॉग जगत से अनभिज्ञ था लेकिन पिछले एक साल में मैंने ब्लॉग जगत को कुछ जाना और समझा है ! आज में आपके सामनें पिछले एक साल के अपनें अनुभव बांटना चाहता हूँ !

में जब शुरुआत में यहाँ आया तो ब्लोगिंग का मुझे कोई अनुभव नहीं था और ना ही में ब्लॉग के बारे में जानता था ! में सबसे पहले फेसबुक पर साझा की गयी किसी ब्लॉग ( उस ब्लॉग का नाम मुझे याद नहीं रहा ) की पोस्ट  को पढ़ने के लिए उस ब्लॉग पर आया था ! तब ब्लॉग का डायरी के रूप में इस्तेमाल करने का विचार मेरे मन में आया ! और मैनें सोचा की फेसबुक पर तो पुरानी पोस्ट खोजनें में बहुत समय लगाना पड़ता है और यहाँ पर वैसा नहीं करना पड़ेगा ! बस यही सोचकर मैंने अपना ब्लॉग बना लिया ताकि जिस बात को सहेजकर रखना चाहे उसको रख सके ! उस समय नियमित ब्लोगिंग का मेरा कोई इरादा नहीं था और केवल डायरी के रूप में ही इस्तेमाल का इरादा था !

तब मैंने सहेजने के लिए कुछ आलेख पोस्ट किये और उन आलेखों पर मुझे अच्छी हौसलाअफजाई मिली ! जिसके कारण मुझे प्रोत्साहन मिला और फिर में अपनें ब्लॉग पर नियमित आलेख डालता गया ! शुरुआत में आदरणीय डा.रूपचंद शास्त्री जी , धीरेन्द्रसिंह भदौरिया जी ,दिनेशचंद्र गुप्ता "रविकर"जी ,कालीपद प्रसाद  जी,विनय जी ,विनीत नागपाल जी ,मनोज जायसवाल जी और अन्य कई लोग मेरे ब्लॉग के समर्थक बने और इनसे मुझे अच्छा सहयोग मिला ! जिसके कारण मुझे प्रोत्साहन मिला और में नियमित ब्लोगिंग करनें में आनंद आने लगा और उसके बाद मेरी पोस्टें चर्चामंच और लिंक लिखाड़ और अन्य सामूहिक ब्लोगों पर दिखाई देनें लगी ! 

बुधवार, 10 जुलाई 2013

महिलाओं को सुरक्षा देने में नाकाम होती सरकारें !!

देश की कोई भी राज्य सरकार हो अथवा केन्द्र की सरकार हो सब की सब महिलाओं को सुरक्षा देनें में नाकाम साबित हो रही है ! ऐसे में महिलाओं की सुरक्षा रामभरोसे वाली स्थति में ही चल रही है ! आखिर इतनें संसाधनों के बावजूद सरकारें नाकाम हो रही है तो इसमें सारा दोष सरकारों की कमजोर इच्छाशक्ति का ही माना जा रहा है ! दुर्भाग्यपूर्ण स्थति तो देखिये बेटी बचाओ आंदोलन का जोर शोर से प्रचार करनें वाले मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के राज्य में महिलाओं की सुरक्षा के हालात खराब नहीं बल्कि दयनीय स्थति बयान करते हैं !

मध्यप्रदेश के गृह मंत्री खुद विधानसभा में यह बताते हैं कि गुजरे साढे चार माह में राज्य से ८०७९ युवतियां गायब हुयी है ! जिसका सीधा अर्थ यह हुआ कि राज्य से रोजाना ६० के लगभग युवतियां गायब हुयी है ! इसके अलावा इसी समयावधि में ५९६ युवतियों का अपहरण और २४० युवतियों की हत्या हुयी है ! १७० युवतियों और ८३ नाबलिग लड़कियों के साथ दुष्कर्म की घटनाएं और ३२ युवतियों को जिन्दा जलानें की वारदातें हुयी है ! अब साढे चार माह के ये आंकड़े देनें में मंत्री महोदय को भले ही शर्म का अनुभव नहीं हुआ हो लेकिन आम आदमी के लिए ये आंकड़े जरुर शर्मनाक है !

हम सब जानते हैं कि हकीकत सरकारी आंकड़ों से ज्यादा भयावह होती है लेकिन अगर सरकारी आंकड़ों की बात ही करें तो जो आंकड़े मंत्री महोदय दे रहें है वो ही मध्यप्रदेश में महिलाओं की सुरक्षा की स्थति पर ना केवल प्रश्नचिन्ह लगा रहें बल्कि एक संजीदा सरकार के मंत्रियों और मुख्यमंत्री का सिर शर्म से झुक जाना चाहिए ! लेकिन अफ़सोस भारतीय राजनेताओं को तो देखकर शर्म को भी अपना सिर शर्म से झुकाना पड़ता है और शर्मिंदगी से तो इनका कोई वास्ता ही नहीं है ! अगर मुख्यमंत्री में थोड़ी शर्म हो तो स्थतियाँ सुधारने की और ध्यान देना चाहिए !!

मंगलवार, 9 जुलाई 2013

जानलेवा लापरवाही के लिए जिम्मेदारी तय होनी चाहिए !!

हमारे देश की व्यवस्था संभाल रहे लोग जब लापरवाही बरतते हैं तो उन पर कारवाई क्यों नहीं होनी चाहिए ! और लापरवाही ऐसी हो जिसके कारण लोगों की जानें चली जाती है तब तो मामला और ही संगीन हो जाता है और ऐसे मामलों में तो लापरवाही के लिए जिम्मेदार लोगों के विरुद्ध आपराधिक मामले दर्ज किये जाने चाहिए और उनकी जानलेवा लापरवाही के लिए उनको सजा दिलाने का प्रयास किया जाना चाहिए ! लेकिन हमारे यहाँ होता इसका उल्टा है और लापरवाही के लिए जिम्मेदार लोग साफ़ बच कर निकल जाते हैं !

हम हर आतंकवादी घटना के बाद ख़ुफ़िया तंत्र की नाकामी का रोना रोते हैं और सारा दोष ख़ुफ़िया तंत्र पर डाल देते हैं ! लेकिन खुफिया तंत्र की चेतावनी के बावजूद राज्य सरकारें और वहाँ की पुलिस सतर्क नहीं होती है और आतंकवादी अपने नापाक इरादों को अंजाम दे जाते हैं ! और ऐसा नाकामी के कारण नहीं होता बल्कि उस लापरवाही के कारण होता है जिसमें ख़ुफ़िया विभाग की चेतावनी को गंभीरता से नहीं लिया जाता है ! अभी बिहार में महाबोधि मंदिर में हुए बम धमाके हो या फिर इससे पहले आंध्रप्रदेश के हैदराबाद हुए बम धमाकों की बात हो ! दोनों जगहों पर हुयी वारदातों से पहले ख़ुफ़िया विभाग नें इस तरह की जानकारियाँ दे दी थी ! लेकिन इसके बावजूद धमाकों को नहीं रोका जा सका और उसका कारण एक ही था कि ख़ुफ़िया विभाग की चेतावनी को गंभीरता से नहीं लिया गया !

इसी तरह हमनें उतराखण्ड में देखा कि मौसम विभाग द्वारा दी गयी चेतावनी को नजरंदाज किया गया और उसके बाद उत्तराखण्ड में जो हुआ वो तो सबको पता ही है ! अगर मौसम विभाग की चेतावनी को गंभीरता से लिया जाता और उसी चेतावनी को ध्यान में रखकर चारधाम की यात्रा रोक दी जाती तो हजारों लोगों को मौत के मुहं में जाने से बचाया जा सकता था ! लेकिन ऐसा नहीं किया गया और मौसम विभाग की लिखित चेतावनी की अनदेखी करने के लिए और हजारों लोगों को मौत के मुहं में धकेलने के लिए कोई तो जिम्मेदार रहा ही होगा ! 

मंगलवार, 2 जुलाई 2013

देवभूमि की त्रासदी के जिम्मेदार कब तक अपनी जिम्मेदारी से भागेंगे !!

देवभूमि उतराखण्ड में आई आपदा के बाद जैसे जैसे दिन गुजरते जा रहे हैं वैसे वैसे इस आपदा के लिए जिम्मेदार कौन है यह भी साफ़ होता जा रहा है ! लेकिन निर्लज्जता की पराकाष्ठा तो देखिये जिनकी लापरवाही इतनीं मौतों के लिए जिम्मेदार है वो अपनी जिम्मेदारी लेनें के बजाय अभी भी राजनैतिक चालें चलने से बाज नहीं आ रहे हैं और जितनी भयानक यह आपदा थी उसको और भयावह बनाने के लिए प्रयासरत नजर आते हैं ! अब जो तथ्य सामनें आ रहे हैं उसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि उतराखण्ड सरकार की लापरवाही ही इतनीं मौतों के लिए जिम्मेदार है !

उतराखण्ड के मौसम विभाग के निदेशक आनंद शर्मा नें मीडिया को दिए अपनें बयान में कहा है कि हमनें उतराखण्ड सरकार को १४ जून को ही चेतावनी जारी की थी जिसमें कहा गया था कि भारी बारिश और भूस्खलन की आशंका है इसलिए चार धाम की यात्रा को अगले ४-५ दिनों के लिए रोक देना चाहिए ! उसके बाद भी उतराखण्ड सरकार नें कोई हरकत नहीं दिखाई ! उसके बाद १५ जून को उतराखण्ड मौसम विभाग नें लिखित चेतावनी उतराखण्ड सरकार को भेजी और उसमें भी वही कहा गया जो पहले कहा गया था ! उसके बाद भी उतराखण्ड सरकार सोती रही ! तब मौसम विभाग नें १६ जून को फिर विशेष इलाकों को लेकर फिर चेतावनी जारी की ! इन चेतावनियों के मिलनें की बात स्वीकारते हुए उतराखण्ड के आपदा राहत मंत्री यशपाल आर्य नें कहा कि हमें इस तरह का अंदेशा नहीं था और उतराखण्ड के मुख्यमंत्री तो इतनी बड़ी लापरवाही पर कुछ कहना ही नहीं चाहते हैं !

अब मौसम विभाग की इतनी साफ़ चेतावनी को केवल इस आधार पर उतराखण्ड सरकार नजरअंदाज कर देती है कि उसको इतनी बड़ी त्रासदी का अंदेशा नहीं था ! उतराखण्ड सरकार की इस अंदेशा लगाने वाली नाकारा सोच के लिए कौन जिम्मेदार है ! क्या खुद उतराखण्ड की सरकार की लापरवाही इस त्रासदी में हुयी मौतों के लिए जिम्मेदार नहीं है ! अगर १५ जून को मौसम विभाग की लिखित चेतावनी और सलाहों को मान कर चारधाम की यात्रा को रोक दिया जाता और यात्रियों को वहाँ से निकाल लिया जाता तो क्या १०००० से ज्यादा लोगों को बचाया नहीं जा सकता था ! सारे तथ्य उतराखण्ड सरकार को केवल कठघरे में ही नहीं खड़े करते बल्कि उसके लापरवाहीपूर्ण अपराध की गवाही देते हैं !

रविवार, 30 जून 2013

मुंडे नें ऐसा क्या कह दिया जिसका पता चुनाव आयोग को नहीं था !!

भाजपा के वरिष्ठ नेता गोपीनाथ मुंडे के चुनावी खर्च पर दिए गए बयान को लेकर चुनाव आयोग उनको नोटिस भेजने की तैयारी कर चूका है ! और अगर बयान सही पाया गया तो उनके ऊपर कार्यवाही भी की जा सकती है लेकिन आखिर गोपीनाथ मुंडे नें कोई ऐसी बात तो कही नहीं जिसके बारे में देश नहीं जानता हो ! हर कोई जानता है कि चुनावों में किस तरह पैसा पानी की तरह बहाया जाता है ! इस देश का हर विधायक और हर सांसद झूठा हलफनामा और चुनावी खर्च का ब्यौरा चुनाव आयोग को देता है ! फर्क यही है कि बाकी लोग अपनी बात को अपनें मुहं से स्वीकार नहीं करते हैं और गोपीनाथ मुंडे नें आवेग में आकर वो बात स्वीकार कर ली !  

आज जो चुनावी खर्च हो रहा है उसके बारे में पूरा देश जानता है तो क्या चुनाव आयोग में बैठे अधिकारी इस हकीकत से अनजान है ! जमीनी तौर पर आज की हकीकत को देखा जाए तो आज मनरेगा लागू होने के बाद कई जगह तो सरपंचों के चुनाव में सतर से अस्सी लाख रूपये खर्च किये जा रहे हैं ! जबकि हमारा चुनाव आयोग द्वारा सांसदों के लिए खर्च की सीमा चालीस लाख निर्धारित की गयी है और सरपंचों के लिए तो ये सीमा पांच हजार रूपये ही है ! सरपंचों के चुनावों में अधिकतम खर्च वाली चुनिन्दा जगहों को अलग भी कर दें तो भी पांच लाख से कम में तो आज कहीं भी सरपंच का चुनाव ही नहीं लड़ा जा रहा है ! जिसका जिक्र मैंने अपने एक आलेख "अवैध चुनावी चंदा ही भ्रष्टाचार की असल जड़ है " में किया था !

अब इस तरह से अंधाधुंध खर्च हो रहा है तो इसका जिम्मेदार कौन है ! क्या चुनाव आयोग इसके लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार नहीं है क्योंकि चुनावी खर्च की निगरानी का काम तो चुनाव आयोग का ही है ! अब ऐसा तो हो नहीं सकता कि चुनाव आयोग का दायित्व संभाल रहे लोग इससे अनभिज्ञ हो और अनभिज्ञ है तो यह तो और भी चिंता की बात है ! क्योंकि जो लोग खुद अनभिज्ञ है वो अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कैसे कर पायेंगे ! और अगर अनभिज्ञ नहीं है तो फिर उन्हें सोचना चाहिए कि क्यों वो जिन्दा मक्खी निगलने को तैयार है !